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________________ भगवई २६३ श. १५ : सू. ५६ सूत्र ५३-५६ १. प्रणीतभूमि 'पणियभूमीए'-इसका प्रयोग यहां दो बार-सू. ५३ तथा सू. ५६ में किया गया है। इसी शतक के सू. ८५ में भी ‘पणिय' शब्द का प्रयोग ‘पण्य' अर्थ में किया गया है। किन्तु प्रस्तुत सूत्र में यह 'प्रणीतभूमि' अर्थात् 'रमणीक भूमि' के अर्थ में प्रयुक्त है। टीकाकार अभयदेवसूरि ने इसके दो वैकल्पिक अर्थ दिए हैं १. भाण्डविश्रामस्थान २. मनोज्ञभूमि।' श्रीमज्जयाचार्य ने इसे 'रमणीक महि' बताया है। पज्जोसवणाकप्पो में भगवान् महावीर के वर्षावासों की सूची इस प्रकार दी गई है १ अस्थिग्राम ३ चंपा-पृष्ठचंपा १२ वैशाली-वाणिज्य ग्राम १४ राजगृह-नालंदा-बाहिरिका ६ मिथिला २ भदिया १ आलंभिया १ पणियभूमि १पावा इस सूची में आए हुए ‘पणियभूमि' से तात्पर्य निकलता है-भगवान् महावीर ने एक वर्षावास जो 'अनार्य भूमि' में किया, उसका उल्लेख यहां 'पणियभूमि' से किया गया है।' आवश्यक चूर्णि के अनुसार भगवान महावीर ने अनार्य भूमि में दो बार प्रवास किया था-अपने साधना-काल में पांचवें वर्ष में तथा नवें वर्ष में।' आचारांगभाष्य के अनुसार "लाढ प्रदेश उपसर्गबहुल था। वहां विचरण करना दुष्कर होता था। इसलिए वह प्रदेश दुश्चर कहलाता था। भगवान् ने आठवां चातुर्मास राजगृह में बिताया। वहां से विहार कर वे वजभूमि गए। इससे ज्ञात होता है कि साधनाकाल के नौवें वर्ष में भगवान का विहार अनार्य-देश में हआ। "चूर्णिकार के अनुसार वे वहां छह महीने तक रहे। आवश्यक चूर्णि के अनुसार यह ज्ञात होता है कि भगवान् ने अनार्य देश से आश्विन मास में निष्क्रमण किया था। "भगवान् ने नौवां चातुर्मास वजभूमि में किया था, ऐसा प्रतीत होता है। पर्युषणाकल्प में 'एग पणियभूमीए' ऐसा निर्देश पांचव वर्ष में केवल शेषकालीन प्रवास था, वर्षावास नहीं। नवें वर्ष का वर्षावास लाढ (राढ-देश), वज़-भूमि और सुम्हभूमि में १. (क) भ. वृ १५/५३-'पणियभूमीए' त्ति पणितभूमौ-भाण्डविश्रामस्थाने प्रणीतभूमौ वा-मनोज्ञभूमौ। (ख) वही, १५/५६-'पणिएभूमीए' त्ति पणितभूमेरारभ्य प्रणीतभूमौ वा मनोज्ञभूमौ विहतवानिति योगः। २. भ. जो. खं. ४, पृ. ३१२, शतक १५, पद्य १८५ कोल्लाग सन्निवेस रै, बाहिर महि रमणीक। ३. नवसुत्ताणि, पृ. ५२६, पज्जोवसणाकप्पो, सू. ८३-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे अट्ठियगाम नीसाए पढमं अंतरावासं वासावासं उवागए। चंपं च पिट्टिचंपं च नीसाए तओ अंतरावासे वासावासं उवागए। वेसालिं नगरिं वाणियगामं च नीसाए दुवालस अंतरावासे वासावासं उवागए। रायगिह नगरं नालंदं च बाहिरियं नीसाए चोद्दस अंतरावासे वासावासं उवागए। छ मिहिलाए, दो भदियाए, एगं आलभियाए, एगं सावत्थीए, एगं पणियभूमीए, एगं पावाए मज्झिमाए हथिपालगस्स रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए। ४. अनार्य भूमि में आदिवासियों के बीच भगवान महावीर के प्रयासों का बहुत ही रोचक एवं तथ्यात्मक विवरण आयारो, आवश्यक चूर्णि आदि में उपलब्ध है जिसके आधार पर श्रमण महावीर पृ. ३४-४० में व्याख्या की गई है। ५. (क) आय. चू.. पूर्वभाग, पृ. २६०-'भगवं चिंतेति-बहुं कम्म निज्जरेयव्वं लाढाविसियं वचामि, ते अणारिया, तत्थ णिज्जरेमि, तत्थ भगवं अत्थारिय दिद्रुतं करेति, ततो भगवं निग्गतो लाढविसयं पविट्ठो, कम्मनिज्जरातुरितो, तत्थ हीलणनिंदणाहिं बहुं निज्जरेति जहा यंभचेरेसु......एवं विहरंता भद्दियं णगरी गता, तत्थ वासारते चाउम्मास-खमणेण अच्छति, विचित्तं तवोकम्मं ठाणादीहिं। एत्थ गाथाओचोरा मंडब.......उवसग्गो॥४८० लाढेसु व उवसग्गा घोरा पुन्नेकलसा य दो तेणा। वज्जहया सक्केणं भदिय वासासु चउम्मासो॥४८१ (ख) आयारो, ६/३/१-१४: आ. चू., पृ. ३१७-३२०॥ (ग) आचारांगभाष्यम्, पृष्ठ ४३१-४३७-लाढप्रदेशे उपसर्गबहुलत्वात् चरणं दुष्करमासीत्, तेन स दुश्चरः प्रोक्तः। भगवान् अष्टम वर्षावासं राजगृहे कृतवान्। ततो विहारं कृत्वा वजभूमौ गतवान्। अनेन ज्ञायते साधनाकालस्य नवमे वर्षे अनार्यदेशे भगवतो विहार जातः। (आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ. २६६ : ततो विहरंता रायगिह गता। तत्थ अट्ठमं वासारत्तं। ......ताहे लाढा वज्जभूमिं सुद्धभूमि च वचति।) तत्र भगवान् षण्मासावधिं तस्थिवान् इति चूर्णिनिर्देशः। (आचारांग चूर्णि, पृ. ३१६ : एवं तत्थ छम्मासे अच्छितो भगवं) आवश्यकचूर्ण्यनुसारेण ज्ञायते भगवान् अनार्यदेशात् प्रथमशरदि-आश्विनमासे निष्क्रमणं कृतवान्। (आवश्यक चूर्णि, पूर्वभाग, पृ. २६७ : ततो निग्गया पढमसरयदे, सिद्धत्थपुरं गता, सिद्धत्थपुराओ य कुंमागामं संपत्थिया) भगवान् नवमं चतुर्मासं वजभूमौ कृतवानिति प्रतीयते। पर्युषणाकल्पे 'एगं पणियभूमीए' इति निर्देशो दृश्यते। (पज्जोसवणाकप्पो, सूत्र ८३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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