SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल केवलि - पदं १३८. केवली णं भंते! छउमत्थं जाणड़पासइ ? हंता जाणइ पासइ ॥ १३६. जहा णं भंते! केवली छउमत्थं जाणइ-पास, तहा णं सिद्धे वि छउमत्थं जाणइ पासइ ? हंता जाणइ-पास ॥ १४०. केवली णं भंते! आहोहियं जाणइपासइ ? एवं चैव । एवं परमाहोहियं, एवं केवलिं एवं सिद्धं जाव १४१. जहा णं भंते! केवली सिद्धं जाणइपासइ, तहा णं सिद्धे वि सिद्धं जाणइपासइ ? हंता जाणइ पासइ ॥ १४२. केवली णं भंते! भासेज्ज वा ? वागरेज्ज वा ? हंता भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा ॥ १४३. जहा णं भंते! केवली भासेज्ज वा वागरेज्ज वा, तहा णं सिद्धे वि भासेज्ज वा वागरेज्ज वा ? नोट्ठे समट्ठे ॥ १४४. से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइ - जहा पं केवली भासेज्ज वा बागरेज्ज वा नो तहा णं सिद्धे भासेज्ज वा वागरेज्ज वा ? गोयमा ! केवली णं सउट्टाणे सकम्मे Jain Education International दसमो उद्देसो : दसवां उद्देशक संस्कृत केवलि-पदम् केवली भदन्त ! छद्मस्थं जानाति - पश्यति? हन्त जानाति पश्यति । यथा भदन्त ! केवली छद्मस्थं जानाति - पश्यति, तथा सिद्धोऽपि छद्मस्थं जानाति पश्यति । हन्त जानाति पश्यति । केवली भदन्त ! आधोवधिकं जानातिपश्यति? एवं चैव । एवं परमाधोवधिकं, एवं केवलिनं, एवं सिद्धं यावत् यथा भदन्त ! केवली सिद्धं जानाति - पश्यति, तथा सिद्धोऽपि सिद्धं जानाति पश्यति? हन्त ! जानाति पश्यति । यथा भदन्त ! केवली भाषेत वा व्याकुर्यात् वा, तथा सिद्धोऽपि भाषेत वा व्याकुर्यात् वा? नो अयमर्थः समर्थः । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - यथा केवली भाषेत वा व्याकुर्यात् वा नो तथा सिद्धः भाषेत वा व्याकुर्यात् वा? गौतम! केवली सोत्थानः सकर्मा सबलः हिन्दी अनुवाद For Private & Personal Use Only केवली पद १३८. भंते! क्या केवली छद्मस्थ को जानता देखता है ? हां, जानता-देखता है। १३६. भंते! जैसे केवली छद्मस्थ को जानतादेखता है, वैसे सिद्ध भी छद्मस्थ को जानतादेखता है ? हां, जानता-देखता है। केवली भदन्त ! भाषेत वा? व्याकुर्यात् १४२. भंते! क्या केवली बोलते हैं ? व्याकरण वा? करते हैं ? हन्त भाषेत वा, व्याकुर्यात् वा । हां, बोलते हैं, व्याकरण करते हैं। १४०. भंते! केवली आधोवधिक को जानतादेखता है ? पूर्ववत् । इसी प्रकार केवली परमाधोवधिक को जानता देखता है। इसी प्रकार केवली को जानता देखता है। इसी प्रकार सिद्ध को जानता देखता है यावत् । १४१. भंते! जैसे केवली सिद्ध को जानतादेखता है, वैसे सिद्ध भी सिद्ध को जानतादेखता है। हां, जानता देखता है। १४३. भंते! जैसे केवली बोलते हैं, व्याकरण करते हैं, वैसे सिद्ध भी बोलते हैं ? व्याकरण करते हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। १४४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - जैसे केवली बोलते हैं, व्याकरण करते हैं, वैसे सिद्ध नहीं बोलते, व्याकरण नहीं करते ? गौतम ! केवली सउत्थान, सकर्म, सबल, www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy