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श. १४ : उ. ६ : सू. १३७
भगवई अट्टमासपरियाए समणे निग्गथे । अष्टमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः । आठ मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ बंभलोग-लंतगाणं देवाणं तेयलेस्सं ब्रह्मलोक-लान्तकानां देवानां । ब्रह्मलोक-लांतक देवों की तेजोलेश्या का वीईवयइ। तेजोलेश्या व्यतिव्रजति।
व्यतिक्रमण करता है। नवमासपरियाए समणे निग्गंथे महा- नवमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः नौ मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ महाशुक्रसुक्क-संहस्साराणं देवाणं तेयलेस्सं महाशुक्र-सहखाराणाम् देवानां तेजो- सहस्त्रार देवों की तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण वीईवयइ। लेश्या व्यतिव्रजति।
करता है। दसमासपरियाए समणे निग्गंथे आणय- दशमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः आनत- दस मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ आनतपाणय-आरणचुयाणं देवाणं तेयलेस्सं प्राणत-आरणा-च्युतानां देवानां तेजो- प्राणत, आरण और अच्युत देवों की वीईवयइ। लेश्यां व्यतिव्रजति।
तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है। एक्कारसमासपरियाए समणे निग्गंथे एकादशमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः ग्यारह मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ ग्रैवेयक गेवेज्जगाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ।। ग्रैवेयकानां देवानां तेजोलेश्यां देवों की तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है।
व्यतिव्रजति। बारसमासपरियाए समणे निग्गंथे द्वादशमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः बारह मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ अणुत्तरोवबाइयाणं देवाणं तेयलेस्सं अनुत्तरोपपातिकानां देवानां तेजोलेश्यां अनुत्तरोपपातिक देवों की तेजोलेश्या का वीईवयइ। व्यतिव्रजति।
व्यतिक्रमण करता है। तेण परं सुक्के सुक्काभिजाए भवित्ता तेन परं शुक्लः शुक्लाभिजातः भूत्वा उससे आगे शुक्ल, शुक्लाभिजात होकर तओ पच्छा सिज्झति बुज्झति मुचति ततः पश्चात् सिध्यति 'बुज्झति' उसके पश्चात् सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिब्वायति सम्बदक्खाणं अंतं मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम् अन्तं परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अंत करता करेति॥
करोति।
भाष्य १. सूत्र १३६
की लेश्या विकसित होती है। इस प्रकार उत्तरोत्तर देवों की तेजोलेश्या प्रस्तुत सूत्र में देवों क. तेजोलेश्या और साधनाजन्य तेजोलेश्या विकसित होती है। का तुलनात्मक विमर्श किया गया है। इस विषय में आर्य शब्द पर आर्यत्व की साधना करने वाला श्रमण निग्रंथ एक वर्ष के साधना ध्यान देना आवश्यक है। जो श्रमण निग्रंथ आर्य रूप में विहार करते हैं, काल में अनुत्तर विमान के देवों की तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण कर वे देवों की तेजोलश्या का अतिक्रमण कर देते हैं।
देता है। उसके पश्चात् वह शुक्ल, शुक्लाभिजात होकर सिद्ध हो जाता 'जो हेय धर्म का परित्याग कर चुका है, वह आर्य है-यह आर्य पद का सामान्य अर्थ है। प्रज्ञापना में नौ प्रकार के आर्य बतलाए गए हैं, वृत्तिकार ने तेजोलेश्या का अर्थ सुखासिका किया है। शुक्ल उनमें तीन प्रकार हैं-ज्ञानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य।' प्रस्तुत प्रकरण शब्द शुक्ल लेश्या की ओर संकेत करता है। शुक्लाभिजात शब्द परम में ज्ञानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य विवक्षित हैं। ज्ञान, दर्शन और शुक्ल लेश्या की ओर संकेत करता है। वृत्तिकार ने इनके लक्षणों का चारित्र की सम्यक् आराधना करने वाले श्रमण की तेजोलेश्या उत्तरोत्तर भी निर्देश दिया है। विकसित होती जाती है। व्यंतर देवों से असुरेन्द्र वर्जित भवनपति देवों
१३७. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति यावत् विहरति।
१३७. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे।
१. पण्ण, १/१२। २. भ. वृ. १४/१३६-तेजोलेश्या-सुखासिका, तेजोलेश्या हि प्रशस्त
लेश्योपलक्षणं सा च सुखासिकाहेतुरिति कारणे कार्योपचारात् तेजोलेश्या
शब्देन सुखासिका विवक्षितेति। ३. भ. वृ. १४/१३६।
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