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________________ भगवई २३१ गोयमा! सुभे सूरिए, सुभा सूरियस्स गौतम! शुभः सूर्यः, शुभा सूर्यस्य छाया। छाया॥ श. १४ : उ. ६ : सू. १३५-१३६ गौतम! सूर्य शुभ है, सूर्य की छाया शुभ है। १३५. किमिदं भंते ! सरिए ? किमिदं भंते! सूरियस्स लेस्सा? गोयमा! सुभे सूरिए, सुभा सूरियस्स लेस्सा॥ किम् अयं भदन्त! सूर्यः? किम् इयं भदन्त! सूर्यस्य लेश्या? गौतम! शुभः सूर्यः, शुभा सूर्यस्य लेश्या। १३५. भंते ! यह सूर्य क्या है? भंते! सूर्य की लेश्या क्या है? गौतम! सूर्य शुभ है, सूर्य की लेश्या शुभ है। भाष्य १.सूत्र १३२-१३५ वृत्तिकार ने बतलाया है- सूर्य का विमान पृथ्वीकायिक जीवमय इस आलापक की व्याख्या पांचवें शतक (सूत्र २३६-२३८) के है। उन जीवों के आतप नाम कर्म की पुण्य प्रकृति का उदय है इसलिए आधार पर की जा सकती है। वहां बतलाया गया है-'दिन में पुद्गल वह लोक में प्रशस्त रूप में प्रतिष्ठित है। शुभ होते हैं और पुद्गल का परिणमन भी शुभ होता है।' सूर्य शब्द का अर्थ निरुक्त के आधार पर किया गया है-जो शूर सूर्य की विद्यमानता में पुद्गल का परिणमन शुभ होता है इसलिए व्यक्तियों के लिए-क्षमाशूर, तपःशूर, दान-शूर, संग्राम-शूर आदि के सूर्य को शुभ कहा गया है। सूर्य की प्रभा, छाया और लेश्या-ये स्वयं लिए हितकर होता है तथा जो शूर व्यक्तियों में साधु होता है, वह सूर्य शुभ हैं, शुभ पुद्गलों के परिणमन का हेतु बनते हैं इसलिए इन्हें शुभ है।' कहा गया है। समणाणं तेयलेस्सा-पदं श्रमणानां तेजोलेश्या-पदम् श्रमणों का तेजोलेश्या पद १३६. जे इमे भंते! अज्जत्ताए समणा ये इमे भदन्त! आर्यतया श्रमणाः १३६. भंते ! जो ये श्रमण निग्रंथ आर्य रूप में निग्गंथा विहरंति, ते णं कस्स तेयलेस्सं निर्ग्रन्थाः विहरन्ति, ते कस्य तेजोलेश्यां विहार करते हैं, वे किसकी तेजोलेश्या का वीईवयंति? व्यतिव्रजन्ति? व्यतिक्रमण करते हैं? गोयमा! मासपरियाए समणे निग्गंथे गौतम! मासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः गौतम! एक मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ वाणमंतराणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ। वानमन्तराणां देवानां तेजोलेश्यां वाणमंतर देवों की तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण व्यतिव्रजति। करता है। दुमासपरियाए समणे निग्गंथे । द्विमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः दो मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ असुरअसुरिंदवज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं असुरेन्द्रवर्जितानां भवनवासिनां देवानां कुमार को छोड़कर शेष भवनवासी देवों की तेयलेस्सं वीईवयइ। तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति। तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है। एवं एएणं अभिलावणं-तिमासपरियाए। एवम् एतेन अभिलापेन-त्रिमासपर्यायः इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार तीन समणे निग्गथे असुरकुमाराणं देवाणं श्रमणः निर्ग्रन्थः असुरकुमाराणां देवानां मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ असुरकुमार तेयलेस्सं वीईवयइ। तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति। देवों की तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है। चउम्मासपरियाए समणे निग्गंथे गह- चतुर्मासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः ग्रह- चार मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ ग्रह-गण गण-नक्खत्त-तारारूवाणं जोतिसियाणं गण-नक्षत्र-तारारूपाणां ज्योतिष्कानां नक्षत्र, तारा रूप ज्योतिष्क देवों की देवाणं तेयलेस्स वीईवयइ। देवानां तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति। तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है। पंचमासपरियाए समणे निग्गंधे चंदिम- पञ्चमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः चन्द्र- पांच मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ सरियाणं जोतिसिंदाणं जोतिसराईणं मस्सूर्याणां ज्यौतिषेन्द्राणां ज्योती- ज्योतिषेन्द्र जयोतिषराज चंद्र-सूर्य की तेयलेस्सं वीईवयइ। राजानां तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति। तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है। छम्मासपरियाए समणे निग्गंथे सोहम्मी- षण्मासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः सौधर्मे- छह मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ सौधर्मसाणाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ। शानानां देवानां तेजोलेश्या व्यतिव्रजति। ईशान देवों की तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है। सत्तमासपरियाए समणे निग्गंथे सप्तमासपर्यायः श्रमणः निर्ग्रन्थः सात मास पर्याय वाला श्रमण निग्रंथ सणंकुमार-माहिंदाणं देवाणं तेयलेस्सं सनत्कुमार-माहेन्द्राणां देवानां सनत्कुमार-माहेन्द्र देवों की तेजोलेश्या का वीईवयइ। तेजोलेश्या व्यतिव्रजति। व्यतिक्रमण करता है। १. भ. पृ. १४/१३३-१३५-शुभस्वरूपं सूर्यवस्तु, सूर्यविमान पृथ्वीकायिका- ज्योतिषकेन्द्रत्वाच तथा शुभः सूर्यशब्दार्थस्तथाहि सूरेभ्यः क्षमातपोदान नामातपाभिधानपुण्यप्रकृत्युदयवर्तित्वात् लोकेऽपि प्रशस्ततया प्रतीतत्वात् संग्रामादिवीरेभ्यो हितः सूरेषु वा साधुः सूर्यः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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