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भगवई
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श. १४ : उ. ८ : सू. १२२ वस्त्र जंभक-वस्त्र को घटाने-बढाने आदि की शक्ति वाले भक पुष्प-फल जुंभक-पुष्प-फल दोनों की सुरक्षा और विनाश में समर्थ देव।
जुंभक देव। लयन जुंभक- मकान आदि की सुरक्षा और विनाश में समर्थ विद्या भक-विद्या को न्यून और अधिक करने की शक्ति वाले जुभंक देव।
मुंभक देव। शयन भक-शय्या आदि की सुरक्षा और विनाश में समर्थ भक अव्यक्त भक-पूर्ववर्ती जुंभक एक-एक क्रिया के संपादन में देव।
समर्थ होते हैं। अव्यक्त जुंभक के क्रिया संपादन का कोई विभाग नहीं पुष्प जूंभक-पुष्प की रक्षा और विनाश में समर्थ जुंभक देव। होता। वे संभवतः अनेक क्रियाओं के संपादन में समर्थ होते हैं। जयाचार्य फल भक-फल की रक्षा और विनाश में समर्थ भक देव। के अनुसार नाटक प्रमुख आदि के बिगाड़ने और सुधारने की शक्ति
वाले मुंभक देव।
१२२. सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति यावत् विहरति।
१२२. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है यावत् विहरण करने लगे।
१. भ. जो. ढा. ३०२ गाथा ४५॥ २. भ. वृ. १४/११७-१२१॥
३. भ. जो. ढा.३०२ गाथा ४५ :
विद्या मुंभक ते पर विद्या, उणी अधिक करीजिये। नाटक प्रमुख विगाड़े सुधारे, ते अव्यक्त जुंभगा लीजिए॥
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