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________________ श. १४ : उ.८ : सू. ११०-१११ २२२ भगवई किचा बभलोए कप्पे देवत्ताए उववण्णा। प्रतिक्रान्ताः समाधिप्राप्ताः कालमासे तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं कालं कृत्वा ब्रह्मलोके कल्पे देवत्वेन उववाए पण्णत्ते। उपपन्नाः। तत्र तेषां गतिः, तत्र तेषां स्थितिः, तत्र तेषाम् उपपातः प्रज्ञप्तः। बहु भक्त का छेदन किया, छेदन कर आलोचना और प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्ण दशा में कालमास में काल को प्राप्त कर ब्रह्मलोक कल्प में देव के रूप में उपपन्न हुए। वहीं उनकी गति, वहीं उनकी स्थिति और वहीं उनका उपपात प्रज्ञप्त है। भंते ! उन देवों की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त है? गौतम! दस सागरोपम की स्थिति प्रज्ञप्त है। तेसि णं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! दससागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।। अस्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इट्टी इ वा जुई इ वा जसे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा? तेषां भदन्त! देवानां कियत् कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता? गौतम! दशसागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। अस्ति भदन्त! तेषां देवानां ऋद्धिः इति वा, द्युतिः इति वा, यशः इति वा, बलम् इति वा, वीर्यम् इति वा, पुरुषाकारपराक्रमः इति वा? हन्त अस्ति। ते भदन्त! देवाः परलोकस्य आराधकाः? हन्त अस्ति। भंते! उन देवों के ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम है? हंता अत्थि। ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? हंता अत्थि॥ हां, है। भंते! वे देव परलोक के आराधक हैं? हां, है। अम्मड-चरिया-पदं अम्बड-चर्या-पदम् अम्मड-चर्या-पद ११०, बहुजणे णं भंते! अण्णमण्णस्स बहुजनः भदन्त! अन्योऽन्यम् ११०. भंते! बहुत लोग परस्पर इस प्रकार का एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं एवमाख्याति एवं भासते एवं प्रज्ञापयति आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिवायए ___ एवं प्ररूपयति-एवं खलु अम्बडः करते हैं-अम्मड परिव्राजक कंपिलपुर नगर के कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, परिव्राजकः काम्पिल्यपुरे नगरे गृहशते सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते? आहारम् आहरति, गृहशते वसतिम् निवास करता है। भंते! यह कैसे है? उपैति। तत् कथमेतद्? भदन्त! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजणे एवं खलु गौतम! यत् सः बहुजनः गौतम! जो बहत लोग परस्पर इस प्रकार अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ अन्योन्यम् एवमाख्याति एवं भासते एवं आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे प्रज्ञापयति एवं प्ररूपयति-एवं खलु करते हैं-अम्मड परिव्राजक कंपिलपुर नगर में परिवायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए अम्बडः परिव्राजकः काम्पिल्यपुरे नगरे सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उबेइ, सच्चे गृहशते आहारम् आहरति, गृहशते निवास करता है। यह अर्थ सत्य है। गौतम! मैं णं एसमझे। अहंपि णं गोयमा! वसतिम् उपैति, सत्योऽयमर्थः। अहम् । भी इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन एवमाइक्वामि एवं भासामि एवं पण्ण- अपि गौतम! एवमाख्यामि एवं भाषे एवं और प्ररूपण करता हूं-अम्मड परिव्राजक वेमि एवं परूवेमि-एवं खलु अम्मडे प्रज्ञापयामि एवं प्ररूपयामि-एवं खलु कंपिलपुर नगर के सौ घरों में आहार करता परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए अम्बडः परिव्राजकः काम्पिल्यपुरे नगरे है, सौ घरों में निवास करता है। आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उबेइ॥ गृहशते आहारम् आहरति, गृहशते वसतिम् उपैति। १११. से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइ-अम्मडे तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- १११. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए अम्बडः परिव्राजकः काम्पिल्यपुरे नगरे है-अम्मड़ परिव्राजक कंपिलपुर नगर में सौ आहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ ? गृहशते आहारम् आहरति, गृहशते घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास गोयमा! अम्मडस्स णं परिवायगस्स __ वसतिम् उपैति? करता है? पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइ- गौतम! अम्बडस्य परिव्राजकस्य गौतम! अम्मड परिव्राजक प्रकृति से भद्र और पतणुकोहमाणमायालोहयाए मिउमद्दव- प्रकृतिभद्रतया प्रकृत्युपशान्ततया । उपशान्त है। उसके क्रोध, मान, माया और संपण्णयाए अल्लीणयाए विणीययाए प्रकृति-प्रतनुक्रोधमानमायालोभेन लोभ प्रकृति से प्रतनु हैं। वह मृदु मार्दव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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