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________________ श. १४ : उ ८ : सू. १०१-१०५ रुक्खाणं पुणब्भव-पदं १०१. एस णं भंते! सालरुक्खे उण्हाभिहए तहाभिहए दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! इहेब रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पच्चायाहिती। से णं तत्थ अच्चिय-बंदिय-पूइय-सक्कारियसम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविस्सइ ॥ १०२. से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥ १०३. एस णं भंते! साललट्ठिया उहाभिहया तहाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिषायमूले महेसरिए नगरीए सामलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिति । से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारियसम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविस्सः ॥ १०४. से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥ १०५. एस णं भंते! उंबरलट्ठिया उहाभिया तहाभिहया दवग्गिजालाभिया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालिपुत् नगरे पाडलिरुक्खत्ताए Jain Education International २१८ रुक्षाणां पुनर्भव-पदम् एषः भदन्त ! शालरुक्षः उष्णाभिहतः तृष्णाभिहतः दवाग्निज्वालाभिहतः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यते ? गौतम ! इहैव राजगृहे नगरे शालरुक्षत्वेन प्रत्याजनिष्यति । सः तत्र अर्चित-वन्दित-पूजित-सत्कृतसम्मानितः दिव्यः सत्यः सत्यावपातः सन्निहित प्रातिहार्यः लाउल्लोइयमहिए चापि भविष्यति । स भदन्त ! तस्मात् (तओहिंतो ) अनन्तरम् उद्वर्त्य कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यते ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति यावत् सर्वदुःखानाम् अन्तं करिष्यति । एषा भदन्त ! शालयष्टिका उष्णाभिहता तृष्णाभि दवाग्निज्वालाभिहता कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यते ? गौतम! इहैव जम्बुद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे विन्ध्यगिरिपादमूले महेश्वर्यां नगर्यां शाल्मलिवृक्षत्वेन प्रत्याजनिष्यति । सः तत्र अर्चित-वन्दित-पूजित-सत्कृतसम्मानितः दिव्यः सत्यः सत्यावपातः सन्निहितप्रातिहार्यः लाउल्लोइयमहिए चापि भविष्यति । सः भदन्त ! तस्मात् (तओहिंतो ) अनन्तरम् उद्वर्त्य कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यते ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति यावत् सर्वदुःखानाम् अन्तं करिष्यति । एषा भदन्त ! उदुम्बरयष्टिका उष्णाभिहता तृष्णाभिहता दवाग्निज्वालाभिहता कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यते? गौतम ! इहैव जम्बुद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे पाटलिपुत्रे पाटलिवृक्षत्वेन प्रत्याज For Private & Personal Use Only भगवई वृक्ष का पुनर्भव पद १०१. भंते! यह शालवृक्ष गर्मी से अभिहत, तृष्णा से अभिहत, दवाग्नि ज्वाला से अभिहत होकर कालमास में काल को प्राप्त कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम ! इस राजगृह नगर में शालवृक्ष के रूप में पुनः उपपन्न होगा। वह वहां अर्चित, वंदित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य (प्रधान), सत्य, सत्यावपात, सन्निहित प्रातिहार्य और लाउल्लोइयमहित - वृक्ष का भूमिभाग गोबर आदि से लिपा हुआ और भींत खड़िया से पुती हुई होगी। १०२. भंते! वह शालवृक्ष वहां से अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा। १०३. भंते! यह शालयष्टिक वृक्ष गर्मी से अभिहत, तृष्णा से अभिहत, दवाग्नि ज्वाला से अभिहत होकर कालमास में काल को प्राप्त कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! इस जंबूद्वीप द्वीप में, भारतवर्ष में विंध्यगिरि की तलहटी में महेश्वरी नगरी में शाल्मली वृक्ष के रूप में उपपन्न होगा। वह वहां अर्चित, वंदित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्नि हित प्रातिहार्य और 'लाउल्लोइयमहित' - वृक्ष का भूमिभाग गोबर आदि से लिपा हुआ और भींत खड़िया से पुती हुई होगी। १०४. भंते! वह वहां से अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा । १०५. भंते! यह उदुम्बरयष्टिका गर्मी से अभिहत, तृष्णा से अभिहत और दवाग्नि ज्वाला से अभिहत होकर कालमास में काल को प्राप्त कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! इसी जंबूद्वीप द्वीप में भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नगर में पाटली वृक्ष के रूप में पुनः www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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