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________________ श. १४ : उ. ८ : सू. ६५-१०० भगवई २१७ गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई ___ गौतम! असंख्येयानि योजनसहस्राणि अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥ अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम्। गौतम! असंख्येय हजार योजन का अबाधा अंतर प्रज्ञप्त है। ६५. सोहम्मीसाणाणं भंते! सणंकुमार- सौधर्मेशानानां भदन्त! सनत्कुमार- माहिंदाण य केवतिए अबाहाए अंतरे माहेन्द्राणां च कियत् अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम्? एवं चेव॥ एवं चैव। ९५. भंते! सौधर्म-ईशान और सनत्कुमारमाहेन्द्र के मध्य कितना अबाधा अंतर प्रज्ञप्त है? पूर्ववत्। पण्णत्ते? १६. भंते! सनत्कुमार-माहेन्द्र और ब्रह्मलोक कल्प के मध्य कितना अबाधा अंतर प्रज्ञप्त ६६. सणंकुमार-माहिंदाणं भंते! बंभ- सनत्कुमार-माहेन्द्राणां भदन्त! लोगस्स कप्पस्स य केवतिए अबाहाए ब्रह्मलोकस्य कल्पस्य च कियत् अंतरे पण्णत्ते? अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम्? एवं चेव॥ एवं चैव। पूर्ववत्। १७. बंभलोगस्स णं भंते! लंतगस्स य ब्रह्मलोकस्य च भदन्त ! लान्तकस्य च ६७. भंते! ब्रह्मलोक और लांतक कल्प के मध्य कप्पस्स केवतिए अवाहाए अंतरे कल्पस्य कियत् अबाधया अन्तरं कितना अबाधा अंतर प्रज्ञप्त है ? पण्णत्ते? प्रज्ञप्तम् ? एवं चेव॥ एवं चैव। पूर्ववत्। १८. भंते! लांतक और महाशुक्र कल्प के मध्य कितना अबाधा अंतर प्रज्ञप्त है? ६८. लंतयस्स णं भंते! महासुक्कस्स य लान्तकस्य भदन्त! महाशुक्रस्य च कप्पस्स केवतिए अबाहाए अंतरे कल्पस्य कियत् अबाधया अन्तरं पण्णत्ते? प्रज्ञप्तम्? एवं चेव। एवं महासुक्कस्स कप्पस्स एवं चैव। एवं महाशुक्रस्य कल्पस्य सहस्सारस्स य, एवं सहस्सारस्स सहसारस्य च, एवं सहस्रारस्य आनतआणयपाणयाण य कप्पाणं, एवं प्राणतानां च कल्पानाम्, एवं आनत- आणयपाणयाणं आरणचुयाण य प्राणतानाम्, आरणाच्युतानां च कप्पाणं, एवं आरणचुयाणं कल्पानाम् एवम् आरणाच्युतानां गेवेज्जविमाणाण य, एवं गेवेज्ज- ग्रैवेयकविमानानां च, एवं ग्रैवेयकविमाणाणं अणुत्तरविमाणाण य॥ विमानानाम् अनुत्तरविमानानां च। पूर्ववत्। इसी प्रकार महाशुक्र कल्प और सहस्रार के मध्य, इसी प्रकार सहसार और आनतप्राणत कल्प के मध्य, इसी प्रकार आनतप्राणत और आरण-अच्युत कल्प के मध्य, इसी प्रकार आरण-अच्युत और ग्रैवेयक विमान के मध्य, इसी प्रकार ग्रैवेयक विमान और अनुत्तर विमान के मध्य अबाधा अंतर की वक्तव्यता। ६६. भंते! अनुत्तर विमान और ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी के मध्य कितना अबाधा अंतर प्रज्ञप्त पचार १६. अणुत्तरविमाणाणं भंते! ईसिंपन्भा- राए य पुढवीए केवतिए अबाहाए अंतरे पण्णते? गोयमा! दुवालस जोयणे अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥ अनुत्तरविमानानां भदन्त! ईषत्- प्राग्भारायाः पृथिव्याः कियत् अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् ? गौतम! द्वादशयोजनम् अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम्। गौतम ! बारह योजन अवाधा अंतर प्रज्ञप्त है। १००. ईसिंपन्भाराए णं भंते! पुढवीए ईषत्प्राग्भारायाः भदन्त! पृथिव्याः १००. भंते! ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी और अलोक अलोगस्स य केवतिए अबाहाए अंतरे अलोकस्य च कियत् अबाधया अन्तरं के मध्य कितना अबाधा अंतर प्रज्ञप्त है? पण्णते? प्रज्ञप्तम्? गोयमा? देसूर्ण जोयणं अवाहाए अंतरे ___ गौतम! देशोनं योजनम् अबाधया गौतम! एक योजन से कुछ न्यून अबाधा अंतर पण्णत्ते॥ अन्तरं प्रज्ञप्तम्। भाष्य १. सूत्र १०० ईषत् प्राग्भारा के संदर्भ में उत्सेध अंगुल का निर्देश किया गया है।' १. भ. वृ. १४/१०० प्रज्ञप्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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