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________________ श. १४ : उ.७: सू. ८४-८७ २१४ भगवई कर सकता है? यदि कर सकता है तो क्या वह मुनि अवस्था में रह हैं। आगम के व्याख्या काल में यह मान्य रहा है कि अनशन काल में सकता है? यदि रह सकता है तो उसके लिए कोई प्रायश्चित्त का यदि असमाधि उत्पन्न हो तो वह आहार कर सकता है। क्या प्रस्तुत विधान है? आलापक में उसकी प्रतिध्वनि है? प्रस्तुत आलापक के अध्ययन से उठने वाले ये सारे प्रश्न अनुत्तरित लवसत्तम देव-पदं लवसप्तमदेव-पदम् लव सप्तम देव पद ८४. अत्यि णं भंते! लवसत्तमा देवा, अस्ति भदन्त! लवसप्तमाः देवाः, ८४. भंते! लवसप्तम देव लवसप्तम देव हैं? लवसत्तमा देवा? लवसप्तमाः देवाः? हंता अत्थि॥ हन्त अस्ति। हां, हैं। २५. से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- लवसत्तमा देवा लवसत्तमा देवा? लवसप्तमाः देवाः-लवसप्तमाः देवाः? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे गौतम! अथ यथानामकः कश्चित् पुरुषः जाव निउणसिप्पोवगए सालीण वा, तरुणः यावत् निपुणशिल्पोपगतः वीहीण वा, गोधूमाण वा, जवाण वा, शालीनां वा, व्रीहीनां वा, गोधूमानां वा, हरियाणं, हरियकंडाणं तिक्खणं परिजातानाम्, हरितानाम्, हरितकांडानां नवपज्जणएणं असिअएणं पडिसाहरिया- तीक्ष्णेण नवपायनकेन 'असिअएणं' पडिसाहरिया पडिसंखिविया-पडिसंखिविया (दे.) प्रतिसंहृत्य-प्रतिसंहृत्य प्रतिजाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्ट सत्त लवे संक्षिप्य प्रतिसंक्षिप्य यावत् इदमेवलएज्जा, जदि णं गोयमा! तेसिं देवाणं इदमेव इति कृत्वा सप्त लवान् लुनीयात्, एवतियं कालं आउए पहुप्पते तो णं ते यदि गौतम! तेषां देवानाम् एतावत् देवा तेणं च भवम्गहणेणं सिझंता कालम् आयुष्कं प्राभविष्यन् तदा ते देवाः बुझंता मुचंता परिनिव्वायंता सव्व- तेन चैव भवग्रहणे न असेत्स्यन् दुक्खाणं अंतं करेंता। से तेणट्ठणं 'बुज्झंता' अमोक्ष्यन् परिनिरवापयिष्यन् गोयमा! एवं बुचइ-लवसत्तमा देवा सर्वदुःखानाम् अंतम् अकरिष्यन्। तत् लवसत्तमा देवा॥ तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते-लवसप्तमाः देवाः लवसप्तमाः देवाः। ८५. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-लवसप्तम देव लवसप्तम देव हैं? गौतम! जैसे कोई पुरुष तरुण यावत् सूक्ष्म शिल्प से समन्वित है। पक्व करने योग्य अवस्था को प्राप्त, परिजात, हरित, हरित कांड वाले, तीक्ष्ण की हुई दांती से विकीर्ण नाल वाले, शाली, व्रीही, गेहूं, यव अथवा यवयव को इकट्ठा कर, मुट्ठी में पकड़कर यावत् अभी अभी ऐसा प्रदर्शित कर चिमुटी बजाने जितने समय में सात लवों को काट देता है, सात लवों को काटने में जितना समय लगता है यदि गौतम! उतने समय तक यदि साधु का जीवन और रह जाता तो वे देव उसी जन्म में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत हो जाते, सब दुःखों का अन्त कर देते। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-लवसप्तम देव लवसप्तम देव हैं। अणुत्तरोबवाइयदेव-पदं १६. अत्थि णं भंते! अणुत्तरोववाइया देवा अणुत्तरोववाइया देवा? हंता अस्थि॥ अनुत्तरोपपातिकदेव-पदम् अनुत्तरोपपातिक देव पद अस्ति भदन्त! अनुत्तरोपपातिकाः देवाः ८६. भंते! अनुत्तरोपपातिक देव अनुत्तरोपअनुत्तरोपपातिकाः देवाः? पातिक देव हैं? हन्त अस्ति। हां, हैं। ८७. से केणटेणं भंते! एवं बुचइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- ८७. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा अणुत्तरोबवाइया देवा अणुत्तरो- अनुत्तरोपपातिकाः देवाः अनुत्तरोप- है-अनुत्तरोपपातिक देव अनुत्तरोपपातिक देव ववाइया देवा? पातिकाः देवाः? हैं? गोयमा! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं गौतम! अनुत्तरोपपातिकानां देवानाम् गौतम! अनुत्तरोपपातिक देव अनुत्तर शब्द, अणुत्तरा सदा, अणुत्तरा रूवा, अणुत्तरा अनुत्तराः शब्दाः, अनुत्तराः रूपाः, अनुत्तर रूप, अनुत्तर गंध, अनुत्तर रस और गंधा, अणुत्तरा रसा, अणुत्तरा फासा। ___ अनुत्तराः गन्धाः, अनुत्तराः रसाः, अनुत्तर स्पर्श वाले होते हैं। गौतम! इस से तेणट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चइ- अनुत्तराः स्पर्शाः । तत् तेनार्थेन गौतम! अपेक्षा से यह कहा जा रहा हैअणुत्तरोववाइया देवा अणुत्तरोववाइया एवमुच्यते-अनुत्तरोपपातिकाः देवाः अनुत्तरोपपातिक देव अनुत्तरोपपातिक देव हैं। अनुत्तरोपपातिकाः देवाः। १. (क) व्य. सू. पी. चतुर्थः विभाग पृ. ४५ । जदि वा न निब्बहेज्जा, असमाधी वा से तम्मि गच्छम्मि। (ख) व्य. भा. २/११७ करणिज्जंऽणत्वगते, वबहारो पच्छ सुद्धो धा॥ देवा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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