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________________ भगवई भत्तपच्चक्वायरस आहार- पदं ८२. भत्तपच्चक्खायए णं भंते! अणगारे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेति, अहे णं वीससाए कालं करे, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगदिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति ? हंता गोयमा ! भत्तपचक्खायए णं अणगारे मुच्छिए गिद्धे गढ़िए अज्झोववन्ने आहारमाहारेति, अहे णं वीससाए कालं करेइ, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति ॥ ८३. से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइभत्तपच्चक्खायए णं अणगारे मुच्छिए गिद्धे गढ़िए अज्झोववन्ने आहारमाहारेति, अहे णं वीससाए कालं करेइ, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगदिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति ? भत्तपच्चक्रवायए ण गोयमा ! अणगारे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारे भवइ, अहे णं वीससाए कालं करेइ, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने आहारे भवइ । से णणं आहारमाहारेति ॥ गोयमा ! जाव २१३ भक्तप्रत्याख्यातस्य आहार-पदम् भक्तप्रत्याख्यातकः भदन्त ! अनगारः मूर्च्छितः गृद्धः ग्रथितः अध्युपपन्नः आहारम् आहरति, अथ विस्रसया कालं करोति, ततः पश्चात् अमूर्च्छितः अगृद्धः अग्रथितः अनध्युपपन्नः आहारम् आहरति? भक्तप्रत्याख्यातकः हन्त गौतम ! अनगारः मूर्च्छितः गृद्धः ग्रथितः अध्युपपन्नः आहारम् आहरति, अथ विससया कालं करोति, ततः पश्चात् अमूर्च्छितः, अगृद्धः अग्रथितः अनध्युपपन्नः आहारम् आहरति । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यतेभक्तप्रत्याख्यातकः अनगारः मूर्च्छितः गृद्धः ग्रथितः अध्युपपन्नः आहारम् आहरति, अथ विस्रसया कालं करोति, ततः पश्चात् अमूर्च्छितः अगृद्धः अग्रथितः अनध्युपपन्नः आहारम् आहरति ? गौतम ! भक्तप्रत्याख्यातकः अनगारः मूर्च्छितः गृद्धः ग्रथितः अध्युपपन्नः आहारकः भवति, अथ विस्रसया कालं करोति, ततः पश्चात् अमूर्च्छितः अगृद्धः अग्रथितः अनध्युपपन्नः आहारकः भवति । Jain Education International तत् तेनार्थेन गौतम! यावत् आहारम् आहरति । १. सूत्र ८२-८३ अभयदेवसूरि ने इस आलापक के विषय में अपनी ओर से संक्षिप्त सी टिप्पणी की है। उसका आशय यह है- गौतम ने प्रश्न पूछा, भगवान् महावीर ने उसका अभ्युपगम किया और कहा- किसी-किसी भक्त प्रत्याख्यान करने वाले व्यक्ति में ऐसा हो सकता है। ' भाष्य जयाचार्य ने वृत्तिकार के मत का अनुसरण किया है। इस पर अपनी ओर से कोई टिप्पणी नहीं की। प्रस्तुत आलापक विमर्शनीय है। विमर्श का पहला बिन्दु यह है - इस आलापक का प्रतिपाद्य क्या है? यह प्रश्न उपस्थित कर गौतम क्या जानना चाहते हैं? यह स्पष्ट नहीं है। १. भ. वृ. १४ / ८२ - अत्रोत्तरं - हंता गोयमा ! इत्यादि, अनेन तु प्रश्नार्थ एव अभ्युपगतः कस्यापि भक्तप्रत्याख्यातुरेवंभूतभावस्य सद्भावादिति । श. १४ : उ. ७ : सू. ८२, ८३ भक्त प्रत्याख्यात का आहार पद ८२. भंते! भक्त प्रत्याख्यान करने वाला अनगार मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है। उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है-मारणान्तिक समुद्घात करता है। उसके पश्चात् वह अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त होकर आहार करता है ? हां गौतम ! भक्त प्रत्याख्यान करने वाला अनगर मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है। उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है, उसके पश्चात् अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित, अनासक्त होकर आहार करता है। ५३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - भक्त प्रत्याख्यान करने वाला अनगार मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है। उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है। उसके पश्चात् वह अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त होकर आहार करता है ? गौतम ! भक्त प्रत्याख्यान करने वाला अगर मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है। उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है, उसके पश्चात् वह अमूर्च्छित अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त होकर आहार करता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- यावत् आहार करता है। गौतम ने केवल स्थिति का निरूपण किया, इतना ही पर्याप्त है अथवा अनशन के बाद आहार करना उचित है या अनुचित, यह प्रतिपाद्य है? For Private & Personal Use Only यदि स्थिति का निरूपण मात्र है तो भगवान् महावीर के उत्तर से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऐसा हो सकता है। इससे अधिक कोई प्रतिपाद्य प्रतीत नहीं होता। विमर्श का दूसरा बिन्दु यह है - मारणान्तिक समुद्घात के लिए 'बीससाए कालं करेड' का प्रयोग क्यों किया गया? वृत्तिकार ने 'बीससाए कालं करे' का अर्थ मारणान्तिक समुद्घात क्यों किया? विमर्श का तीसरा बिन्दु यह है - क्या अनशन करने वाला आहार २. भ. जो. ढा. २६२. गाथा १-१३ www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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