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________________ श. १४ : उ. ७ : सू. ८१ २१२ भगवई तुल्लअसंखेज्जगुणकालए वि, एवं पुद्गलः, एवं तुल्यासंख्येयगुणकालकः गुण कृष्ण की वक्तव्यता, इसी प्रकार समान तुल्लअणंतगुणकालए वि। अपि, एवं तुल्यानन्तगुणकालकः अपि। अनंत गुण कृष्ण की वक्तव्यता। जहा कालए, एवं नीलए, लोहियए, यथा कालकः, एवं नीलकः, लोहितकः, कृष्ण की भांति नील, लोहित, हारिद्र और हालिद्दए, सुक्किलए। एवं सुब्भिगंधे, एवं हारिद्रकः, शुक्लकः। एवं सुगन्धः, शुक्ल की वक्तव्यता। इसी प्रकार सुगंध और दुभिगंधे। एवं तित्ते जाव महरे। एवं एवं दुर्गन्धः । एवं तिक्तः यावत् मधुरः । दुर्गन्ध की वक्तव्यता। इसी प्रकार तिक्त कक्खडे जाव लुक्खे। ओदइए भावे एवं कक्खटः यावत् रुक्षः । औदयिकः यावत् मधुर रस की वक्तव्यता। इसी प्रकार ओदइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले, भावः औदयिकस्य भावस्य भावतः कर्कश यावत् रूक्ष स्पर्श की वक्तव्यता। ओदइए भावे ओदइयभाववइरित्तस्स तुल्यः, औदयिक: भावः औदयिक- औदयिक भाव औदयिक भाव से भावतः भावस्स भावओ नो तुल्ले, एवं भावव्यतिरिक्तस्य भावस्य भावतः नो । तुल्य है। औदयिक भाव औदयिक ओवसमिए, खइए, खओवसमिए, तुल्यः, एवम् औपशमिकः, क्षायिकः, व्यतिरिक्त भाव से भावतः तुल्य नहीं है। पारिणामिए। सन्निवाइए भावे सन्नि- क्षायोपशमिकः, पारिणामिकः इसी प्रकार औपशमिक, क्षायिक, वाइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले, सान्निपातिकः भावः सान्निपातिकस्य क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव की सन्निवाइए भावे सन्निवाइयभाव- भावस्य भावतः तुल्यः, सान्निपातिकः वक्तव्यता। सांनिपातिक भाव सांनिपातिक वइरित्तस्स भावस्स भावओ नो तुल्ले। भावः सान्निपातिकभावव्यतिरिक्तस्य भाव से भावतः तुल्य है, सांनिपातिक भाव भावस्य भावतः नो तुल्यः। सांनिपातिक व्यतिरिक्त भाव से भावतः तुल्य नहीं है। से तेणटेणं गोयमा! एवं बुचइ- तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते-भाव- गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है भावतुल्लए भावतुल्लए। तुल्यकः भावतुल्यकः। भाव-तुल्य भाव-तुल्य है। से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा संठाणतुल्लए संठाणतुल्लए? संस्थानतुल्यकः संस्थानतुल्यकः? है-संस्थान तुल्य संस्थान तुल्य है। गोयमा! परिमंडले संठाणे परिमंडलस्स गौतम! परिमंडलसंस्थानं परिमंडल- गौतम! परिमंडल संस्थान परिमंडल संस्थान संटाणस्स संठाणओ तुल्ले, परिमंडले संस्थानव्यतिरिक्तस्य संस्थानस्य से संस्थानतः तुल्य है। परिमंडल संस्थान संठाणे परिमंडलसंठाणवइरित्तस्स संस्थानतः तुल्यम्, परिमण्डल- परिमंडल संस्थान व्यतिरिक्त संस्थान से संठाणस्स संठाणओ नो तुल्ले, एवं बट्टे, संस्थानं-परिमण्डलसंस्थानव्यति- संस्थानतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार वृत्त, तसे, चउरंसे, आयए। समचउरंससंठाणे रिक्तस्य संस्थानस्य संस्थानतः नो चतुरस्र, आयत की वक्तव्यता। समचतुरस समचउरंसस्स संठाणस्स संठाणओ तुल्यम्, एवं वृत्तः, त्र्यसः, चतुरस्रः, संस्थान समचतुरस्त्र संस्थान से संस्थानतः तल्ले, समचउरंसे संठाणे समचउ- आयतः। समचतुरस्रसंस्थानं समचतु- तुल्य है। समचतुरस्र संस्थान समचतुरस्र रंससंटाणवइरित्तस्स संठाणस्स संटाणओ रसस्य संस्थानस्य संस्थानतः तुल्यम्, व्यतिरिक्त संस्थान से संस्थानतः तुल्य नहीं नो तुल्ले एवं परिमंडले वि, एवं साई एवं परिमंडलः अपि। एवं सादिः, है। इसी प्रकार परिमंडल संस्थान की खुज्जे वामणे हंडे। से तेणटेणं गोयमा! कुब्जः, वामनः, हुण्डः। तत् तेनार्थेन वक्तव्यता। इसी प्रकार सादि, कुब्ज, वामन एवं बुचइ-संठाणतुल्लए संठाणतुल्लए। गौतम! एवमुच्यते-संस्थानतुल्यक:- और हुंड संस्थान की वक्तव्यता। गौतम! इस संस्थानतुल्यकः। अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-संस्थान तुल्य संस्थान तुल्य है। भाष्य १.सूत्र८०-८१ पुद्गल से काल की दृष्टि से तुल्य है। यह काल तुल्य का निदर्शन है। अनेकांत दर्शन के आधार पर यह कहा जा सकता है- एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से भव की दृष्टि से तुल्य है। यह भव प्रत्येक वस्तु में सदृशता और विसदृशता का गुण-धर्म विद्यमान है। तुल्य का निदर्शन है।। प्रस्तुत आलापक में सदृशता और विसदृशता की छह दृष्टियों से एक गुण काला पुद्गल एक गुण काले पुद्गल से तुल्य है। औदयिक विचारणा की गई है। प्रस्तुत प्रकरण में द्रव्य का अर्थ है व्यक्ति। भाव औदयिक भाव से तुल्य है। यह भाव तुल्य का निदर्शन है। इसका निदर्शन है-एक परमाणु दूसरे परमाणु से द्रव्य की दृष्टि से परिमंडल संस्थान परिमंडल संस्थान से तुल्य है। यह संस्थान तुल्य है। इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध द्विप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की दृष्टि तुल्य का निदर्शन है! से तुल्य है। समचतुरस्र संस्थान आदि के लिए द्रष्टव्य ठाणं ६/३१ का एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल से क्षेत्र की टिप्पण। अणुओगद्दाराई सूत्र २३४-२३५ का टिप्पण। दृष्टि से तुल्य है। यह क्षेत्र तुल्य का निदर्शन है। __ भाव के लिए भगवई १७/१६-१७ का भाष्य, ठाणं ६/१२४ का एक समय की स्थिति वाला पुद्गल एक समय की स्थिति वाले टिप्पण तथा अणुआगद्दाराई सूत्र २७१-२८७ का टिप्पण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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