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सत्तमो उद्देसो : सातवां उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
गोयमस्स आसासण-पदं ७७. रायगिहे जाव परिसा पडिगया।
गौतमस्य आश्वासन-पदम् राजगृहः यावत् परिषद् प्रतिगता।
गोयमादी! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासीचिर संसिट्ठोसि मे गोयमा! चिरसंथुओसि मे गोयमा! चिरपरिचिओसि मे गोयमा!
गौतम अयि! श्रमणः भगवान् महावीरः भगवन्तं गौतमम् आमन्त्र्य एवमवादीत्चिरसंसृष्टः असि मम गौतम! चिरसंस्तुतः असि मम गौतम! चिरपरिचितः असि मम गौतम!
गौतम का आश्वासन पद ७७. राजगृह नगर यावत् परिषद् वापस नगर में चली गई। अयि गौतम! श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम को आमंत्रित कर इस प्रकार कहागौतम! तुम चिर काल से मेरे संसर्ग में रहे हो। गौतम! तुम मुझसे चिर संस्तुत रहे हो। गौतम! तुम चिर काल से मुझसे परिचित रहे
हो।
चिरजुसिओसि मे गोयमा! चिरजुष्टः असि मम गौतम!
गौतम! तुम मुझसे चिर काल से प्रीति
परायण रहे हो। चिराणुगओसि मे गोयमा! चिरानुगतः असि मम गौतम!
गौतम! चिरकाल से तुम मेरा अनुगमन करते
रहे हो। चिराणुवत्तीसि मे गोयमा! चिरानुवृत्तिः असि मम गौतम! गौतम! तुम चिर काल से मेरा अनुवर्तन करते
रहे हो। अणंतरं देवलोए अणंतरं माणुस्सए अनन्तरं देवलोके अनन्तरं मानुष्यके अनंतर (व्यवधान रहित) देवलोक में, अनंतर भवे, किं परं मरणा कायस्स भेदा इओ भवे, किं परं मरणात् कायस्य भेदात् मनुष्य जन्म में भी। और क्या मृत्यु के होने चुता दो वि तुल्ला एगट्ठा अविसेसम- इतः च्युतौ द्वौ अपि तुल्यौ एकार्थों पर-शरीर के छूट जाने पर यहां से च्युत णाणत्ता भविस्सामो॥
अविशेषम् अनानात्वौ भविष्यावः। होकर हम दोनों तुल्य, एकार्थक, अभिन्न ७८. जहा णं भंते! वयं एयमढे जाणामो- यथा भदन्त! आवाम् एतमर्थं जानीवः- और नानात्व से रहित होंगे।
भाष्य १.सूत्र ७७
दूसरी कथा अभयदेवसूरि ने प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या में प्रस्तुत गौतम स्वामी के मन में किसी घटना विशेष के कारण विचिकित्सा की है। वह प्रामाणिक प्रतीत नहीं होती। द्रष्टव्य-उत्तरज्झयणाणि के और अधृति पैदा हो गई। इस विषय में दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली दसवें अध्ययन का आमुख। कथा उत्तराध्ययन नियुक्ति और बृहद्वृत्ति में उपलब्ध है। पासामो, तहा णं अणुत्तरोववाइया वि पश्यावः, तथा अनुत्तरोपपातिकाः अपि ७८. भंते! जैसे हम इस अर्थ को जानते-देखते देवा एयमढे जाणंति-पासंति?
देवाः एतमर्थं जानन्ति पश्यन्ति? हैं, वैसे अनुत्तरोपपातिक देव भी इस अर्थ को हंता गोयमा! जहाणं वयं एयमढे जाणामो- हन्त गौतम! यथा आवाम् एतमर्थं । जानते-देखते हैं? पासामो, तहाणं अणुत्तरोववाइया वि देवा जानीवः पश्यावः, तथा अनुत्तरोपपातिकाः हां, गौतम! जैसे हम इस अर्थ को जानतेएयमढे जाणंति-पासंति॥ अपि देवाः एतमर्थं जानन्ति-पश्यन्ति। देखते हैं, वैसे अनुत्तरोपपातिक देव भी इस
अर्थ को जानते-देखते हैं।
७६. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-वयं एयमढे जाणामो-पासामो, तहा णं
तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- आवाम् एतमर्थं जानीवः पश्यावः, तथा
७६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जैसे हम इस अर्थ को जानते-देखते हैं वैसे
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