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श. १४ : उ. ७ : सू. ८०, ८१
वि देवा एयमहं
अणुत्तरोववाइया जाणंति - पासंति ? गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं अनंताओ मणोदव्ववग्गणाओ लगाओ पत्ताओ अभिसमण्णागयाओ भवंति से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-वयं एयमहं जाणामो- पासामो, तहा णं अणुत्तरोवाइया वि देवा एयमहं जाणंतिपासंति ॥
तुल्लय-पदं
८०.
कतिविहे णं भंते! तुल्लए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहे तुल्लए पण्णत्ते, तं जहा - दव्वतुल्लए, खेत्ततुल्लए, कालतुल्लए, भवतुल्लए, भावतुल्लए,
ठाणतुल्लए॥
१. सूत्र ७८ ७६
प्रस्तुत सूत्र के 'एम' इस वाक्यांश का तात्पर्यार्थ है- हमारा वार्तालाप | महावीर और गौतम ने वार्तालाप किया। गौतम के मन में प्रश्न उठा-क्या हमारे वार्तालाप को अनुत्तरोपपातिक देव जान सकते हैं? भगवान् महावीर ने इस प्रश्न का उत्तर 'हां' में दिया । इस विषय
८१. से केणट्टेणं भंते! एवं बुचड़दव्वतुल्लए दब्बतुल्लए? गोयमा !
परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वओ तुल्ले, परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलवइरित्तस्स दव्वओ नो तुल्ले | दुपएसिए खंधे दुपएसियस्स खंधस्स दव्वओ तुल्ले, दुपएसिए खंधे दुपए सियवइरित्तस्स खंधस्स दव्वओ नो तुल्ले । एवं जाव दसपएसिए । तुल्लसंखेज्जपएसिए खंधे तुल्लसंखेज्जएसियस्स खंधस्स दब्बओ तुल्ले, तुल्लसंखेज्जपएसिए खंधे तुल्लसंखेज्जपएसियवइरित्तस्स खंधस्स दव्वओ नो तुल्ले, एवं तुल्लअसंखेज्जपएसि वि एवं तुल्लअणतपएसए से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं 'वुच्चइ-दव्वतुल्लए दब्बतुल्लए ।
से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइखेत्ततुल्लए खेत्ततुल्लए?
२१०
अनुत्तरोपपातिकाः अपि देवाः एतमर्थं जानन्ति पश्यन्ति ?
गौतम! अनुत्तरोपपातिकानाम् अनन्ताः मनोद्रव्यवर्गणाः लब्धाः प्राप्ताः अभिसमन्वागताः भवन्ति । तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते - आवाम् एतमर्थं जानीवः पश्यावः, तथा अनुत्तरोपपातिकाः अपि देवाः एतमर्थं जानन्तिपश्यन्ति ।
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भाष्य
की विशद जानकारी के लिए द्रष्टव्य भगवई ५ / १०३-१०६ सूत्र तथा
उसका भाष्य ।
तुल्यक-पदम्
कतिविधः भदन्त ! तुल्यकः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! षड्विधः तुल्यकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - द्रव्यतुल्यकः, क्षेत्रतुल्यकः, कालतुल्यकः भवतुल्यकः, भावतुल्यकः, संस्थानतुल्यकः ।
मानसिक स्तर पर प्रश्न और उत्तर- भवगई ५/८३-८८ । केवली के मन और वचन - भगवई ५ / १००-१०२
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यतेद्रव्यतुल्यकः द्रव्यतुल्यकः ? गौतम !
भगव
अनुत्तरोपपातिक देव भी इस अर्थ को जानतेदेखते हैं ?
परमाणुपुद्गलः परमाणुपुद्गलस्य द्रव्यतः तुल्यः, परमाणुपुद्गलः परमाणुपुद्गलव्यतिरिक्तस्य द्रव्यतः नो तुल्यः । द्विप्रादेशिकः स्कन्धः द्विप्रादेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यतः तुल्यः, द्विप्रादेशिकः स्कन्धः द्विप्रादेशिकव्यतिरिक्तस्य स्कन्धस्य द्रव्यतः नो तुल्यः । एवं यावत् दशप्रादेशिकः । तुल्यसंख्येयप्रादेशिकः स्कन्धः तुल्यसंख्येयप्रादेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यतः तुल्यः, तुल्यसंख्येयप्रादेशिकः स्कन्धः तुल्यसंख्येय प्रादेशिक व्यतिरिक्तस्य स्कन्धस्य द्रव्यतः नो तुल्यः, एवं तुल्यासंख्येयप्रादेशिकः अपि एवं तुल्यानन्तप्रादेशिकः अपि । तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते - द्रव्यतुल्यकः द्रव्यतुल्यकः । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - क्षेत्र - तुल्यकः क्षेत्रतुल्यकः ?
गौतम ! अनुत्तरोपपातिक देवों को अनंत मनोद्रव्य वर्गणाएं लब्ध प्राप्त और अभिसमन्वागत हो जाती हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जैसे हम इस अर्थ को जानते-देखते हैं, वैसे अनुत्तरोपपातिक देव भी इस अर्थ को जानते-देखते हैं।
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तुल्य पद
८०. भंते! कितने प्रकार के तुल्य प्रज्ञप्त है ? गौतम ! छह प्रकार के तुल्य प्रज्ञप्त है, जैसे- द्रव्य तुल्य, क्षेत्र तुल्य, काल तुल्य, भव तुल्य, भाव तुल्य, संस्थान तुल्य ।
८१. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - द्रव्य तुल्य द्रव्य तुल्य है? गौतम ! परमाणु-पुद्गल परमाणु- पुद्गल से द्रव्यतः तुल्य है। परमाणु- पुद्गल परमाणु पुद्गल व्यतिरिक्त से द्रव्यतः तुल्य नहीं है। द्विप्रदेशिक स्कंध द्विप्रदेशिक स्कंध से द्रव्यतः तुल्य है। द्विप्रदेशिक- स्कंध द्विप्रदेशिक व्यतिरिक्त स्कंध से द्रव्यतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार यावत् दस प्रदेशी की वक्तव्यता । समान संख्येय- प्रदेशी स्कंध समान संख्येय- प्रदेशी स्कंध से द्रव्यतः तुल्य है। समान संख्येय प्रदेशी स्कंध समान संख्येय- प्रदेशी व्यतिरिक्त स्कंध से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार समान असंख्येय प्रदेशी स्कंध की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार समान अनंत- प्रदेशी स्कंध की भी वक्तव्यता । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा हैद्रव्य तुल्य द्रव्य तुल्य है।
भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - क्षेत्र तुल्य क्षेत्र-तुल्य है ?
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