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भगवई
श. १४ : उ.६ : सू. ७६
२०८ तहेव अट्ठजोयणिया। तीसे णं मणि- योजनशतानि विष्कम्भेण, मणिपीठिका पेढियाए उरि, एत्थ णं महेगं सीहासणं तथैव अष्टयोजनिका। तस्याः च विउब्वइ, सपरिवार भाणियव्यं । तत्थ णं मणिपीठिकायाः उपरि, अत्र महान्तम् सणकुमारे देविदे देवराया बावत्तरीए एकं सिंहासनं विकरोति, सपरिवार सामाणियसाहस्सीहि जाव चउहि य भणितव्यम्। तत्र सनत्कुमारः देवेन्द्रः बावत्तरीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि य देवराजा द्वासप्ततिभिः सामानिकबहूहि सणंकुमारकप्पवासीहिं वेमाणिएहिं ___ साहस्रीभिः यावत् चतुर्भिः द्वासप्ततिभिः देवेहि य देवीहि य सद्धिं संपरिबुडे आत्मरक्षदेवसाहस्रीभिः बहभिः महयाहयनट्ट जाव विहरइ। एवं जहा सनत्कुमारकल्पवासिभिः वैमानिकैः देवैः सणंकुमारे तहा जाव पाणओ अच्चुओ, च देवीभिः च साधू सम्परिवृतः महत्नवरं-जो जस्स परिवारो सो तस्स आहतनाट्य यावत् विहरति। एवं यथा भाणियब्यो। पासायउच्चत्तं-जं सएस- सनत्कुमारः तथा यावत् प्राणतः सएसु कप्पेसु विमाणाणं उच्चत्तं, अद्धद्धं अच्युतः, नवरम्-यः यस्य परिवारः सः वित्थारो जाव अचुयस्स नवजोयणसयाई तस्य भणितव्यः। प्रासादोचत्वम्-यत् । उई उच्चत्तेणं, अद्धपंचमाइं जोयणसयाई स्वकेषु-स्वकेषु कल्पेषु विमानानाम् विक्खंभेणं। तत्थ णं अचुए देविंदे उचत्वम्, अर्धाधु विस्तारः यावत् देवराया दसहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव अच्युतस्य नवयोजनशतानि ऊर्ध्वम् विहरइ, सेसं तं चेव॥
उच्चत्वेन, अर्द्धपञ्चानि योजनशतानि विष्कम्भेण। तत्र अच्युतः देवेन्द्रः देवराजा दशभिः सामानिकसाहसीभिः यावत् विहरति, शेषं तत् चैव।
तीन सौ योजन, उसी प्रकार मणिपीठिका आठ योजन की। उस मणिपीठिका के ऊपर एक महान् सिंहासन का निर्माण करता है, परिवार सहित वक्तव्य है। देवराज देवेन्द्र सनत्कुमार बहत्तर हजार सामानिक देव यावत् दो लाख इठ्यासी हजार आत्मरक्षक देव सनत्कुमार-कल्पवासी बहुत वैमानिक देवता, देवियों के साथ संपरिवृत होकर आहत नाट्यों यावत् विहरण करता है। इस प्रकार जैसे सनत्कुमार उसी प्रकार यावत् प्राणत, अच्युत की वक्तव्यता, इतना विशेष है-जो जिसका परिवार है, वह उसका वक्तव्य है। प्रासाद की ऊंचाई-अपने-अपने कल्प के विमानों की ऊंचाई, विस्तार उससे आधा यावत् अच्युत के प्रासादावतंसक की ऊंचाई नौ सौ योजन, उसका विस्तार साढ़े चार सौ योजन है। वहां देवराज देवेन्द्र अच्युत दस हजार सामानिकों के साथ यावत् विहरण करता है। शेष पूर्ववत्।
भाष्य
१. सूत्र ७४-७५ शब्द-विमर्श
नेमि प्रतिरूपक-चक्र के आकार वाला, गोलाकार भवन।'
७६. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति
७६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
१. भ. पृ. १४/७३ नेमिः चक्रधारा तद्योगाचक्रमपि नेमिः तत्प्रतिरूपकं-वृत्ततया तत्सदृशं स्थानमिति शेषः।
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