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मूल
यादीणं किमाहारादि-पदं ७१. रायगिहे जाव एवं क्यासि - नेरइया णं भंते! किमाहारा, किं परिणामा, किंजोणिया, किंठितीया पण्णत्ता ?
गोयमा ! नेरइया णं पोग्गलाहारा, पोग्गल परिणामा, पोग्गलजोणिया, पोग्गलद्वितीया, कम्मोवगा, कम्मनियाणा, कम्मद्वितीया, कम्मुणामेव विप्परियासमेंति । एवं जाव वेमाणिया ।
छट्टो उद्देसो : छठा उद्देशक
७२. नेरइया णं भंते! किं वीचीदव्वाई आहारेति ? अवीचीदव्वाई आहारेति ? गोयमा ! नेरइया वीचीदव्वाई पि आहारेंति, अवीचीदव्वाई पि आहारेति ॥
नैरयिकानाम् किमाहारादि-पदम् राजगृहं यावत् एवमवादीत् - नैरयिकाः भदन्त ! किम् आहाराः, किं परिणामाः, किं योनिकाः, किं स्थितिकाः प्रज्ञप्ताः ?
१. सूत्र ७१
नैरयिक पुद्गल का आहार करने वाले हैं। ' नैरयिक पुद्गल योनि वाले हैं। उनकी योनि दो प्रकार की होती है-शीत योनि और उष्ण योनि । '
१. पण्ण. २८/५
२. वही, ६/२
गौतम ! नैरयिकाः पुद्गलाहाराः, पुद्गलपरिणामाः, पुद्गलयोनिकाः, पुद्गलस्थितिकाः, कर्मोपगाः, कर्मनिदानाः, कर्मस्थितिकाः, कर्म एव विपर्यासम् आयान्ति । एवं यावत् वैमानिकाः ।
प्रज्ञापना के अनुसार नैरयिक द्वारा आहार में गृहीत पुद्गलों का श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय आदि के रूप में परिणमन होता है।
भाष्य
रयिकों की स्थिति के हेतु आयुष्य कर्म के पुद्गल हैं। स्थिति का विशद विवेचन स्थिति पद में मिलता है । "
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३. वही, २८ / २४
४. वही, ४ / १-२४
५. भ. वृ. १४/७१ - 'कम्मोवगे त्यादि कर्म्म- ज्ञानावरणादि पुद्गलरूपमुपगच्छन्ति
नैरयिकाः भदन्त ! किं वीचिद्रव्याणि आहरन्ति ? अवीचिद्रव्याणि आहरन्ति ? गौतम! नैरयिका: वीचिद्रव्याणि अपि आहरन्ति अवीचिद्रव्याणि आहरन्ति ।
अपि
आहार, परिणाम, योनि और स्थिति- ये सब पौद्गलिक हैं। इनके कारण नैरयिक जीवों की अवस्था बदलती रहती है। उसका हेतु कर्म। इस विषय का विवरण चार पदों के द्वारा किया गया है। किसी जीव के कर्म का संग्रहण होता है, नरक पर्याय के निमित्तभूत कर्म का बंध होता है। उसी के आधार पर स्थिति का निर्धारण होता है। कर्म के द्वारा ही विपर्यास पर्यायान्तर होता है। कर्म के द्वारा होने वाले विपर्यास का नियम सभी जीव दंडकों पर लागू होता है।
हिन्दी अनुवाद
नैरयिक का आहार आदि पद
७१. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा- भंते! नैरयिक किन द्रव्यों का आहार करते हैं? उनका परिणमन किस रूप में होता है ? उनकी योनि क्या है? उनकी स्थिति का आधार क्या है ?
गौतम ! नैरयिक पुद्गल द्रव्यों का आहार . करते हैं। शरीर पोषक पुद्गल के रूप में उनका परिणमन होता है। योनि पौद्गलिक है। स्थिति का आधार आयुष्य कर्म के पुद्गल हैं। नैरयिक जीव कर्म का बंधन करने वाले हैं। उनके नारक होने का हेतु कर्म है। कर्म पुद्गल के कारण उनकी नारक के रूप में अवस्थिति है और कर्म के कारण ही वे विपर्यासपर्यायान्तर को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता ।
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७२. भंते! क्या नैरयिक वीचि द्रव्यों का आहार करते हैं? अवीचि द्रव्यों का आहार करते हैं? गौतम ! नैरयिक वीचि द्रव्यों का भी आहार करते हैं, अवीचि द्रव्यों का भी आहार करते हैं।
बंधनद्वारेणोपयान्तीति कर्मोपगाः, कर्म्मनिदानं नारकत्वनिमित्तं कर्मबंधनिमित्तं वा येषां ते कर्मनिदानाः तथा कर्म्मणः- कर्मपुद्गलेभ्यः सकाशात् स्थितिर्येषां ते कर्म्मस्थितयः तथा कम्मुणामेव विप्परियासमेतित्ति कर्मणैव हेतुभूतेन, मकार आगमिकः, विपर्यासं-पर्यायान्तरं पर्याप्तापर्याप्तादिकमायान्तिप्राप्नुवन्ति अतस्ते पुद्गलस्थितयो भवन्तीति ।
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