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________________ मूल अगणिकायस्स अतिक्कमण-पदं ५४. नेरइए णं भंते! अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं बीइवएज्जा ? गोयमा ! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा ॥ कमइ । तत्थ णं जे से अविग्गहगतिसमावन्नए नेरइए से णं अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं नो बीइवएज्जा से तेणद्वेणं जाव नो बीइवएज्जा ॥ पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक ५५. से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइअत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा ? तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यतेअस्त्येककः व्यतिव्रजेत् अस्त्येककः नो व्यतिव्रजेत् ? य, च गोयमा ! नेरइया दुबिहा पण्णत्ता, तं गौतम ! नैरयिकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, जहा - विग्गहगतिसमावन्नगा तद्यथा-विग्रहगतिसमापन्नकाः अविग्गहगतिसमावन्नगा य । तत्थ णं जे अविग्रहगतिसमापन्नकाः च । तत्र यः सः विग्रहगतिसमापन्नकः नैरयिकः सः अग्निकायस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् । से विग्गहगतिसमावन्नए नेरइए से णं अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा । सेणं तत्थ झियाएज्जा ? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं संस्कृत छाया अग्निकायस्य अग्निकायस्य-अतिक्रमण-पदम् नैरयिकः भदन्त ! मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् ? गौतम ! अस्त्येककः व्यतिव्रजेत्, अस्त्येककः नो व्यतिव्रजेत् । सः तत्र धमेत् ? नो अयमर्थः समर्थः, नो क्रामति । Jain Education International तत्र यः सः अविग्रहगतिसमापन्नकः नैरयिकः सः अग्निकायस्य मध्यमध्येन नो व्यतिव्रजति। तत् तेनार्थेन यावत् नो व्यतिव्रजेत् । भाष्य १. सूत्र ५४-५५ प्रस्तुत प्रकरण में विग्रह गति का अर्थ अंतराल गति और अविग्रह गति का अर्थ उत्पत्ति स्थान है। नरक में बादर अग्निकाय नहीं होता इसलिए अविग्रह गति समापन्नक उसके मध्य से नहीं जाते। बादर अग्निकाय के विषय में वृत्तिकार ने कुछ विस्तार से लिखा है। बादर अग्निकाय केवल मनुष्य क्षेत्र में ही होता है। नरक में अग्नि का १. भ. वृ. १४ / ५४-५५ - नारकक्षेत्रे बादराग्निकायस्याभावात् मनुष्यक्षेत्र एव तद्भावात् यच्चोत्तराध्ययनादिषु श्रूयते - 'हुयासणे जलंतंमि दड्ढपुव्यो खलु तत्र शस्त्र हिन्दी अनुवाद अग्निकाय का अतिक्रमण पद ५४. भंते! क्या नैरयिक अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाता है ? गौतम ! कोई जाता है, कोई नहीं जाता। ५५. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैकोई जाता है, कोई नहीं जाता ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे - विग्रह गति समापन्नक और अविग्रह गति समापन्नक - नरक में अवस्थित। उनमें जो विग्रह गति समापन्नक नैरयिक हैं, वे अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाते हैं। For Private & Personal Use Only क्या वह अग्निकाय में जलता है ? यह अर्थ संगत नहीं है। वह शस्त्र से आक्रांत नहीं होता। जो अविग्रह गति समापन्नक नैरयिक हैं, वे अग्निकाय के बीचोंबीच होकर नहीं जाते। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- यावत् कोई नैरयिक अग्निकाय के बीचोंबीच होकर नहीं जाता। वर्णन है, वह अग्नि तुल्य द्रव्य है, जैसे-तेजोलेश्या के पुद्गल । ' द्रष्टव्य-उत्तरज्झयणाणि १६ / ४६ का टिप्पण | विग्रह गति में कार्मण शरीर होता है। वह सूक्ष्म है इसलिए वह अग्नि में दग्ध नहीं होता और न वह अग्नि-शस्त्र से आक्रांत होता । विग्रह गति के लिए द्रष्टव्य भगवई १ / ३३५-३३८ का भाष्य । अणेगसो ।' इत्यादि तदग्निसदृशद्रव्यान्तरापेक्षयाऽवसेयं संभवन्ति च तथाविधशक्तिमन्ति द्रव्याणि तेजोलेश्याद्रव्यवदिति । www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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