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चउत्थो उद्देसो : चौथा उद्देशक
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
पोग्गल-जीव-परिणाम-पदं
पुद्गल-जीव-परिणाम-पदम् ४४. एस णं भंते! पोग्गले तीतमणतं एषः भदन्त! पुद्गलः अतीतमनन्तं सासयं समयं लुक्खी? समयं शाश्वतं समयं रुक्षी? समयम् अरुक्षी? अलुक्खी? समयं लुक्खी वा समयं रुक्षी वा अरुक्षी वा? पूर्वं च अलुक्खी वा? पुचि च णं करणेणं करणेन अनेकवर्णम् अनेकरूपं परिणाम अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणामं परिणमति? अथ सः परिणामः निर्जीर्णः परिणमइ ? अहे से परिणामे निज्जिण्णे भवति, ततः पश्चात् एकवर्णः एकरूपः भवइ, तओ पच्छा एगवण्णे एगरूवे स्यात्? सिया?
पुद्गल जीव परिणाम पद ४४. भंते! यह पुद्गल अनंत और शाश्वत
अतीत में किसी एक समय रुक्ष होता है? किसी एक समय अरूक्ष (स्निग्ध) होता है? किसी एक समय रूक्ष अथवा अरूक्ष होता है? पूर्व में जो एक वर्ण आदि परिणाम वाला है, वह करण के द्वारा अनेक वर्ण, अनेक रूप परिणाम का परिणमन करता है? वह परिणाम निर्जीर्ण होता है, उसके पश्चात् वह एक वर्ण, एक रूप हो जाता है? हां गौतम! यह पुद्गल अनंत और शाश्वत अतीत में किसी एक समय रूक्ष होता है, किसी एक समय अरूक्ष (स्निग्ध) होता है। किसी एक समय रूक्ष अथवा अरूक्ष होता है। पूर्व में जो एक वर्ण आदि परिणाम वाला है, वह करण के द्वारा अनेक वर्ण, अनेक रूप आदि परिणाम का परिणमन करता है। वह परिणाम निर्जीर्ण होता है, उसके पश्चात् एक वर्ण, एक रूप हो जाता है।
हंता गोयमा! एस णं पोग्गले तीतमणंतं सासयं समयं तं चेव जाव एगरूवे सिया॥
हन्त गौतम! एषः पुद्गलः अतीतमनन्तं शाश्वतं समयं तत् चैव यावत् एकरूपः स्यात्।
४५. एस णं भंते! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं लुक्खी ? एवं चेव॥
एषः भदन्त! पुद्गलः प्रत्युत्पन्नं शाश्वतं समयं रुक्षी? एवं चैव।
४५. भंते! पुद्गल शाश्वत वर्तमान में किसी एक समय रूक्ष होता है? पूर्ववत्।
४६. एस णं भंते ! पोग्गले अणागयमणतं सासयं समयं लुक्खी ? एवं चेव॥
एषः भदन्त! पुद्गलः अनागतमनन्तं शाश्वतं समयं रुक्षी? एवं चैव।
४६. भंते! यह पुद्गल अनंत और शाश्वत
अनागत में किसी एक समय रूक्ष होता है? पूर्ववत्।
४७. एस णं भंते! खंधे तीतमणतं सासयं
समयं लुक्खी ? एवं चेव खंधे वि जहा पोग्गले॥
एषः भदन्त! स्कन्धः अतीतमनन्तं शाश्वतं समयं रुक्षी? एवं चैव स्कन्धोऽपि यथा पुद्गलः ।
४७. भंते! यह स्कन्ध अनंत और शाश्वत
अतीत में किसी एक समय रूक्ष होता है? इसी प्रकार स्कन्ध भी पुद्गल की भांति वक्तव्य है।
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