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भगवई
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श. १४ : उ. २ : सू. २६ २४. किंपत्तियं णं भंते! असुरकुमारा देवा किंप्रत्ययं भदन्त! असुरकुमाराः देवाः २४. भंते! असुरकुमार देव किस कारण से वर्षा बुट्टिकायं पकरेंति? वृष्टिकायं प्रकुर्वन्ति?
करते हैं? गोयमा! जे इमे अरहंता भगवंतो- गौतम! ये इमे अर्हतः भगवन्तः-एतेषां गौतम! जो ये अरहंत भगवान हैं, इनके जन्म एएसि णं जम्मणमहिमासु वा जन्ममहिमसु वा निष्क्रमणमहिमसु वा महिमा में, निष्क्रमण महिमा में, केवलज्ञान निक्खमणमहिमासु वा नाणुप्पाय- ज्ञानोत्पादमहिमसु वा परिनिर्वाण- उत्पत्ति महिमा में, परिनिर्वाण महिमा में। महिमासु वा परिनिव्वाणमहिमासु वा, महिमसु वा, एवं खलु गौतम! गौतम! इस प्रकार ये असुरकुमार देव वर्षा एवं खलु गोयमा! असुरकुमारा देवा असुरकुमाराः देवाः वृष्टिकायं प्रकुर्वन्ति । करते हैं। इस प्रकार नागकुमार भी, इसी बुट्टिकायं पकरेंति। एवं नागकुमारा वि, एवं नागकुमाराः अपि, एवं यावत् प्रकार यावत् स्तनितकुमार। इसी प्रकार एवं जाव थणियकुमारा। वाणमंतर- स्तनितकुमाराः । वानमन्तर ज्योतिष्क- वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की जोइसिय-वेमाणिया एवं चेव ॥ वैमानिकाः एवं चैव।
वक्तव्यता।
भाष्य १.सूत्र २१-२४
प्राचीन है अथवा उत्तरकालीन, यह अन्वेषणीय है। स्थानांग में देव कृत प्रस्तुत प्रकरण में वर्षा के दो कारणों का उल्लेख है- वर्षा का उल्लेख है। उसके अनुसार देव बादलों का एक स्थान से दूसरे १. प्राकृतिक रूप में होने वाली वर्षा।
स्थान पर संहरण कर लेते हैं किन्तु वहां बादलों के निर्माण की बात २. देव कृत वर्षा।
नहीं है।' असुरकुमार देव जन्म आदि महोत्सव के लिए जाते हैं, इसका तीर्थंकरों के जन्म, महाभिनिष्क्रमण, केवलज्ञान उत्पाद और उल्लेख भगवई ३/८७ में भी है। परिनिर्वाण महिमा-इन चार अवसरों पर देव वृष्टि करते हैं। यह उल्लेख तमुक्कायकरण-पदं
तमस्कायकरण-पदम्
तमस्कायकरण पद २५. जाहे णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया यदा भदन्त! ईशानः देवेन्द्रः देवराजः २५. भंते! जब देवराज देवेन्द्र ईशान तमस्काय तमुक्कायं काउकामे भवति से तमस्कायं कर्तुकामः भवति सः कथम् (सघन अंधकार) करना चाहता है, तब वह कहमियाणिं पकरेति ? इदानीं प्रकरोति?
कैसे करता है? गोयमा! ताहे चेव णं से ईसाणे देविंदे गौतम! तदा चैव सः ईशानः देवेन्द्रः गौतम! देवराज देवेन्द्र ईशान आभ्यंतर परिषद् देवराया अभितरपरिसए देवे सदावेति। देवराजः आभ्यन्तरपरिषत्कान् देवान् के देवों को बुलाता है। वे आभ्यंतर परिषद् के तए णं ते अम्भितरपरिसगा देवा शब्दयति। ततः ते आभ्यन्तरपरिषत्काः देव देवराज देवेन्द्र ईशान के निर्देश पर मध्यम सदाविया समाणा मज्झिमपरिसए देवे देवाः शब्दायिताः सन्तः मध्यमपरिषत्कान परिषद् के देवों को बुलाते हैं। मध्यम परिषद् सहावेति। तए णं ते मज्झिमपरिसगा देवा देवान् शब्दयन्ति। ततः ते मध्यम- के देव आभ्यंतर परिषद् के देवों के निर्देश पर सदाविया समाणा बाहिरपरिसए देवे परिषत्काः देवाः शब्दायिताः सन्तः बाह्य परिषद् के देवों को बुलाते हैं। बाह्य सद्दावेंति। तए णं ते बाहिरपरिसगा देवा बाह्यपरिषत्कान् देवान् शब्दयन्ति। ततः परिषद् के देव मध्यम परिषद् के निर्देश पर सदाविया समाणा बाहिरबाहिरगे देवे ते बाह्यपरिषत्काः देवाः शब्दायिताः बाह्यबाह्यक देवों को बुलाते हैं। वे बाह्यबाह्यक सद्दाति। तए णं ते बाहिरबाहिरगा देवा सन्तः बाह्यबाह्यकान् देवान् शब्दयन्ति। देव बाह्य परिषद् के देवों के निर्देश पर सदाविया समाणा आभिओगिए देवे ततः ते बाह्यबाह्यकाः देवाः शब्दायिता: आभियोगिक देवों को बुलाते हैं। वे सदाति। तए णं ते आभिओगिया देवा सन्तः आभियोगिकान्देवान् शब्दयन्ति। आभियोगिक देव बाह्यबाहक परिषद् के सद्दाविया समाणा तमुक्काइए देवे ततः ते आभियोगिकाः देवाः शब्दायिताः निर्देश पर तमस्कायिक देवों को बुलाते हैं। वे सद्दावेति। तए णं ते तमुक्काइया देवा सन्तः तमस्कायिकान्देवान् शब्दयन्ति। तमस्कायिक देव आभियोगिक देवों के निर्देश सदाविया समाणा तमुक्कायं पकरेंति। ततः ते तमस्कायिकाः देवाः शब्दायिताः पर तमस्काय करते हैं। गौतम! इस प्रकार एवं खलु गोयमा! ईसाणे देविंदे देवराया सन्तः तमस्कायं प्रकुर्वन्ति। एवं खलु देवराज देवेन्द्र ईशान तमस्काय करता है। तमुक्कायं पकरेति॥
गौतम! ईशानः देवेन्द्रः देवराजः तमस्कायं प्रकरोति।
२६. अस्थि णं भंते! असुरकुमारा वि देवा
तमुक्कायं पकरेंति ? हंता अत्थि॥ १. ठाणं ३/३५६-३६०
अस्ति भदन्त! असुरकुमाराः अपि देवाः तमस्कायं प्रकुर्वन्ति? हन्त अस्ति।
२६. भंते! क्या असुरकुमार देव भी तमस्काय
करते हैं? हां, करते हैं।
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