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________________ बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद उम्माद-पदं उन्माद-पदम् उन्माद पद १६. कतिविहे णं भंते! उम्मादे पण्णत्ते? कतिविधः भदन्त! उन्मादः प्रज्ञप्तः? १६. भंते! उन्माद कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गोयमा! दुविहे उम्मादे पण्णत्ते, तं गौतम! द्विविधः उन्मादः प्रज्ञप्तः, गौतम! उन्माद दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जहा–जक्खाएसे य, मोहणिज्जस्स य तद्यथा-यक्षावेशः च, मोहनीयस्य च । जैसे-यक्षावेश और मोहनीय कर्म के उदय से कम्मस्स उदएणं। तत्थ णं जे से कर्मणः उदयेन। तत्र यः सः यक्षावेशः सः । होने वाला। जो यक्षावेश का उन्माद है वह जक्खाएसे से णं सुहवेयणतराए चेव सुखवेदनतराक: चैव, सुखविमोचन- सुख वेदनतर है, उसका वेदन अतिशय क्लेश सुहविमोयणतराए चेव। तत्थ णं जे से तराकः चैव। तत्र यः सः मोहनीयस्य । रहित होता है और सुख विमोचनतर है, मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं से णं कर्मणः उदयेन सः दुःखवेदनतराक: चैव उससे अतिशय क्लेश के बिना मुक्ति होती है। दुहवेयणतराए चेव दुहविमोयणतराए दुःखविमोचनतराकः चैव। जो मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला उन्माद है, उसका वेदन यक्षावेश के उन्माद की अपेक्षा अतिशय क्लेशपूर्वक होता है और वह दुःखविमोचनतर है, उससे यक्षावेश उन्माद की अपेक्षा अतिशय क्लेशपूर्वक मुक्ति होती है। चेव॥ १७. नेरइयाणं भंते! कतिविहे उम्मादे नैरयिकानां भदन्त! कतिविधः उन्मादः १७. भंते! नैरयिकों के कितने प्रकार का उन्माद पण्णत्ते? प्रज्ञप्तः? प्रज्ञप्त है? गोयमा! दुविहे उम्मादे पण्णत्ते, तं गौतम! द्विविधः उन्मादः प्रज्ञप्तः, गौतम! दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है, जैसेजहा-जक्खाएसे य, मोहणिज्जस्स य तद्यथा-यक्षावेशः च, मोहनीयस्य च यक्षावेश और मोहनीय कर्म के उदय से होने कम्मरस उदएणं॥ कर्मणः उदयेन। वाला। १८. से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- १८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा नेरइयाणं दुविहे उम्मादे पण्णत्ते, तं नैरयिकानां द्विविधः उन्मादः प्रज्ञप्तः, है-नैरयिकों के दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त जहा-जक्खाएसे य, मोहणिज्जस्स य तद्यथा-यक्षावेशः च, मोहनीयस्य च है, जैसे-यक्षावेश और मोहनीय कर्म के उदय कम्मस्स उदएणं? कर्मण: उदयेन? से होने वाला? गोयमा! देवे वा से असुभे पोग्गले गौतम! देवः वा सः अशुभान् पुद्गलान् गौतम! देव अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करते हैं, पक्खिवेज्जा, से णं तेसिं असुभाणं प्रक्षिपेत्, सः तेषाम् अशुभानां उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से नैरयिक पोग्गलाणं पक्खिवणयाए जक्खाएसं पुद्गलानां प्रक्षेपनया यक्षावेशम् उन्मादं यक्षावेश के उन्माद को प्राप्त होते हैं। उम्मादं पाउणेज्जा, मोहणिज्जस्स वा प्राप्नुयात्, मोहनीयस्य वा कर्मणः मोहनीय कर्म के उदय से नैरयिक मोहनीय के कम्मस्स उदएणं मोहणिज्जं उम्मायं उदयेन मोहनीयं उन्मादं प्राप्नुयात्। उन्माद को प्राप्त होते हैं। पाउणेज्जा। से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुच्चइ-नेरइयाणं तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते- गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा दविहे उम्मादे पण्णत्ते, तं जहा- नैरयिकानां द्विविधः उन्मादः प्रज्ञप्तः, तद् है-नैरयिकों के दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त जक्वाएसे य, मोहणिज्जस्स य कम्मस्स। यथा-यक्षावेशः च, मोहनीयस्य च है, जैसे-यक्षावेश और मोहनीय कर्म के उदय उदएणं॥ कर्मणः उदयेन। से होने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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