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भगवई
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श. १४ : उ. १ : सू. १५
भाष्य
१. सूत्र १४ शब्द विमर्श
अनंतर-खेदोपपन्नक-जो नैरयिक खेद प्रधान उपपत्ति के प्रथम समय में विद्यमान होता है, वह अनंतर खेदोपपन्नक कहलाता है।
परंपर-खेदोपपन्नक-जो नैरयिक खेद प्रधान द्वितीय आदि समय में विद्यमान होता है, वह परंपर खेदोपपन्नक कहलाता है।
अनंतर-परंपर-खेद-अनुपपन्नक-विग्रहगति में विद्यमान नैरयिक अनंतर-परंपर खेद-अनुपपन्नक कहलाता है। चार दण्डक
१. अनंतर खेदोपपन्नक आदि का प्रश्न। २. अनंतर खेदोपपन्नक आदि के आयुष्य का प्रश्न। ३. अनंतर खेद निर्गत आदि का प्रश्न। ४. अनंतर खेद निर्गत आदि के आयुष्य का प्रश्न।
१५. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति यावत् विहरति।
१५. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे।
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