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________________ १८६ भगवई श. १४ : उ. १ : सू. ११-१४ गोयमा! जे णं नेरइया पढमसमय- निग्गया ते णं नेरइया अणंतरनिग्गया, जे णं नेरइया अपढमसमयनिग्गया ते णं नेरइया परंपरनिग्गया, जे णं नेरइया विग्गहगतिसमावन्नगा ते णं नेरइया अणंतर-परंपर-अनिग्गया। से तेणटेणं गोयमा! जाव अणंतर-परंपर-अनिग्गया वि। एवं जाव वेमाणिया॥ गौतम! ये नैरयिकाः प्रथमसमयनिर्गताः ते नैरयिकाः अनन्तरनिर्गताः, ये नैरयिकाः अप्रथमसमयनिर्गताः ते नैरयिकाः परम्परनिर्गताः, ये नैरयिकाः विग्रहगतिसमापन्नकाः ते नैरयिकाः अनन्तर-परम्पर-अनिर्गताः। तत् तेनार्थेन गौतम! यावत् अनन्तरपरम्पर-अनिर्गताः अपि। एवं यावत् वैमानिकाः। गौतम! जो नैरयिक प्रथम समय निर्गत हैं, वे नैरयिक अनंतर समय निर्गत हैं। जो नैरयिक अप्रथम-समय निर्गत हैं, वे नैरयिक परंपर निर्गत हैं। जो नैरयिक विग्रहगति समापन्नक हैं, वे नैरयिक अनंतर-परंपर अनिर्गत हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-यावत् अनंतर-परंपर अनिर्गत भी हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। ११. अणंतरनिग्गया णं भंते! नेरइया किं अनन्तरनिर्गताः भदन्तः नैरयिकाः किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाज्यं नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति यावत् देवायुष्कं पकरेंति? गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो __गौतम! नो नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति यावत् देवाउयं पकरेंति॥ नो देवायुष्कं प्रकुर्वन्ति। प्रकुर्वन्ति? ११. भंते! अनंतर निर्गत नैरयिक क्या नैरयिक आयुष्य का बंध करते हैं यावत् देव आयुष्य का बंध करते हैं? गौतम! नैरयिक आयुष्य का बर नहीं करते यावत् देव आयुष्य का बंध नहीं करते। १२. परंपरनिग्गया णं भंते! नेरइया कि परम्परनिर्गताः भदन्त! नैरयिकाः किं नेरइयाउयं पकरेंति-पुच्छा। नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति-पृच्छा। गोयमा! नेरइयाउयं पि पकरेंति जाव __ गौतम! नैरयिकायुष्कम् अपि प्रकुर्वन्ति देवाज्यं पि पकरेंति॥ यावत् देवायुष्कम् अपि प्रकुर्वन्ति। १२. भंते! परंपर निर्गत नैरयिक क्या नैरयिक आयुष्य का बंध करते हैं? पृच्छा। गौतम! नैरयिक आयुष्य का भी बंध करते हैं यावत् देव आयुष्य का भी बंध करते हैं। १३. भंते! अनंतर-परंपर अनिर्गत नैरयिक की पृच्छा। १३. अणंतरं-परंपर-अनिग्गया णं भंते! नेरइया-पुच्छा। गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाज्यं पकरेंति। निरवसेसं जाव। वेमाणिया॥ अनन्तर-परम्पर-अनिर्गताः भदन्त! नैरयिकाः-पृच्छा। गौतम! नो नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति यावत् नो देवायुष्कं प्रकुर्वन्ति। निरवशेषं यावत् वैमानिकाः। गौतम! नैरयिक आयुष्य का बंध नहीं करते यावत् देव आयुष्य का बंध नहीं करते। निरवशेष यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। भाष्य १. सूत्र :-१३ तक नहीं पहुंचा, संप्रति विग्रह गति में विद्यमान है, वह अनंतर निर्गत शब्द विमर्श और परंपर निर्गत दोनों से भिन्न है इसलिए वह अनंतर-परंपर अनिर्गत अनंतर निर्गत-जो जीव नरक से निकल कर दूसरे स्थान में पैदा कहलाता है। हो गया, वह उत्पत्ति के प्रथम समय में अनंतर निर्गत कहलाता है। अनंतर निर्गत के आयुष्य का बंध नहीं हेता। परंपर निर्गत के परंपर निर्गत-जो जीव नरक से निकल कर दूसरे स्थान में पैदा आयुष्य का बंध होता है आयुष्य बंध के समय के लिए द्रष्टव्य भगवई हो गया, वह उत्पत्ति के दूसरे आदि समयों में परंपर निर्गत कहलाता है। ५/५६-६१ का भाष्य। अनंतर-परंपर अनिर्गत-जो जीव नरक से निकलकर उत्पत्ति क्षेत्र १४. नेरइया णं भंते! किं अणंतर- नैरयिकाः भदन्त! किम् अनन्तर- १४. भंते! क्या नैरयिक अनंतर खेद के साथ खेदोववन्नगा? परंपरखेदोववनगा? खेदोपपन्नकाः? परम्परखेदोपपन्नकाः? उपपन्नक हैं? परंपर खेद के साथ उपपन्नक अणंतर-परंपर-खेदाणुववन्नगा? अनन्तर-परम्पर-खेदोपपन्नकाः? हैं? अनंतर-परंपर खेद के साथ अनुपपन्नक गोयमा! नेरइया अणंतरखेदोक्वनगा वि, परंपरखेदोववन्नगा वि, अणंतर-परंपर खेदाणुववन्नगा वि। एवं एएणं अभिलावेणं ते चेव चत्तारि दंडगा भाणियन्वा॥ गौतम! नैरयिकाः अनन्तरखेदोपपन्नकाः अपि, परम्परखेदोपपन्नकाः अपि, अनन्तर-परम्पर-खेदानुपपन्नकाः अपि। एवम् एतेन अभिलापेन ते चैव चत्वारः दण्डकाः भणितव्याः। गौतम! नैरयिक अनंतर खेद के साथ उपपन्नक भी हैं, परंपर खेद के साथ उपपन्नक भी हैं, अनंतर-परंपर खेद के साथ अनुपपन्नक भी हैं। इसी प्रकार इस अभिलाप की भांति चारों दंडक वक्तव्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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