SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई १. सूत्र ४-५ शब्द विमर्श अनंतर उपपन्नक- जिस नैरयिक के उपपात में एक समय का कालमान होता है, वह अनंतर उपपन्नक कहलाता है। परंपर उपपन्नक - जिस नैरयिक के उपपात में दो अथवा तीन समय ६. अणंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति ? तिरिक्खमणुस्सदेवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति ॥ ७. परंपरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पिपकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति ॥ ८. अनंतर परंपर- अणुववन्नगा णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति - पुच्छा । गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति । एवं जाव वेमाणिया, नवरं - पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोववन्नगा चत्तारि बि आउयाई पकरेंति । सेसं तं चैव ॥ ६. नेरइया णं भंते! किं अणंतरनिग्गया ? परंपरनिग्गया ? अणंतर- परंपर अनिग्गया ? गोयमा ! नेरइया अणंतरनिग्गया वि परंपरनिग्गया वि, अणंतर- परंपरअनिग्गया वि ॥ १८५ भाष्य १०. से केणद्वेणं जाव अणंतर- परंपरअनिग्गया वि? Jain Education International अनन्तरोपपन्नकाः भदन्त ! नैरयिकाः किं नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति ? तिर्यग्- मनुष्यदेवायुष्कं प्रकुर्वन्ति ? गौतम! नो नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति यावत् नो देवायुष्कं प्रकुर्वन्ति । का कालमान होता है, वह परंपर उपपन्नक कहलाता है। अनंतर परंपर अनुपपन्नक - जो नैरयिक विग्रह गति (अंतराल गति) में होता है, उसका उपपात अभी नहीं हुआ है इसलिए वह अनंतरपरंपर अनुपपन्नक कहलाता है। परंपरोपपन्नकाः भदन्त ! नैरयिकाः किं नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति यावत् देवायुष्कं प्रकुर्वन्ति? गौतम! नो नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति, तिर्यग्योनिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति, मनुष्यायुष्कं अपि प्रकुर्वन्ति, नो देवायुष्कं प्रकुर्वन्ति । १. सूत्र ६-८ अनन्तर उपपन्नक और अनन्तर- पंरपर अनुपपन्नक नैरयिकों में आयुष्य बंध के अनुरूप अध्यवसाय स्थान नहीं होता, इसलिए अनंतर- परम्पर-अनुपपन्नकाः भदन्त ! नैरयिकाः किं नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति ? - पृच्छा। गौतम! नो नैरयिकायुष्कं प्रकुर्वन्ति यावत् नो देवायुष्कं प्रकुर्वन्ति । एवं यावत् वैमानिकाः, नवरम् - पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः मनुष्याः च परम्परोपपन्नकाः चत्वारि अपि आयुष्कानि प्रकुर्वन्ति । शेषं तत् चैव । नैरयिकाः भदन्त ! किम् अनन्तरनिर्गताः ? परम्परनिर्गताः ? अनन्तर - परम्पर- अनिर्गताः ? गौतम! नैरयिकाः अनन्तरनिर्गताः अपि, परम्परनिर्गताः अपि अनन्तरपरम्पर- अनिर्गताः अपि । श. १४ : उ. १ : सू. ६-१० तत् केनार्थेन यावत् अनन्तर - परम्परअनिर्गताः अपि ? For Private & Personal Use Only ६. भंते! अनंतर उपपन्नक नैरयिक क्या नैरयिक आयुष्य का बंध करते हैं? क्या तिर्यंच, मनुष्य और देव आयुष्य का बंध करते हैं? गौतम! न नैरयिक आयुष्य का बंध करते हैं, यावत् न देव आयुष्य का बंध करते हैं। ७. भंते! परंपर उपपन्नक नैरयिक क्या नैरयिक, आयुष्य का बंध करते हैं यावत् देव आयुष्य का बंध करते हैं? भाष्य उनके आयुष्य का बंध नहीं होता। परंपर उपपन्नक के आयुष्य का बंध होता है। आयुष्य बंध के समय की जानकारी के लिए द्रष्टव्य भगवई ५/५६ - ६१ का भाष्य । गौतम ! नैरयिक आयुष्य का बंध नहीं करते, तिर्यक्योकि आयुष्य का बंध करते हैं, मनुष्य आयुष्य का भी बंध करते हैं, देव आयुष्य का बंध नहीं करते। ८. भंते! अनन्तर- परंपर अनुपन्नक क्या नैरयिक आयुष्य का बंध करते हैं- पृच्छा । गौतम! नैरयिक आयुष्य का बंध नहीं करते यावत् देव आयुष्य का बंध नहीं करते। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। इतना विशेष है-परंपर उपपन्नक पंचेन्द्रिय तिर्यक् योनिक और मनुष्य चारों गतियों के आयुष्य का बंध करते हैं, शेष पूर्ववत् । ६. भंते! क्या नैरयिक अनंतर निर्गत हैं? क्या परंपरा निर्गत हैं? क्या अनंतर परंपर अनिर्गत हैं? गौतम! नैरयिक अनंतर निर्गत भी हैं, परंपर निर्गत भी हैं, अनंतर परंपर अनिर्गत भी हैं-न अनंतर निर्गत हैं, न परंपर निर्गत हैं। १०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - यावत् अनंतर परंपर अनिर्गत भी हैं ? www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy