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श. १३ : उ. ६ : सू. १६५, १६६
जाव
चक्कोणा, समतीरा, अणुपुब्बसुजायवप्पगंभीरसीयलजला सहुन्नइयमहुरसरणादिया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एवामेव अणगारे वि भाविअप्पा पोक्खरणीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उद्धं वेहासं उप्पएज्जा ?
हंता उप्पएज्जा ।
१६५. अणगारे णं भंते! भाविअप्पा केवतियाई पभू पोक्खरणीकिच्चगयाई रूबाई विउब्वित्तए ?
सेसं तं चैव जाव विउब्विस्सति वा ॥
१६६. से भंते! किं मायी विउब्वति ? अमायी विव्वति ?
गोयमा ! मायी विउव्वति, नो अमायी विउव्वति । मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालं करेइ, नत्थि तरस आराहणा । अमायी णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेड़, अत्थि तस्स आराहणा ॥
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चतुष्कोणा, समतीरा, अनुपूर्वसुजातवप्रगम्भीरशीतलजला यावत् शब्दोन्नतिकमधुरस्वरनादिता प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा प्रतिरूपा, एवमेव अनगारः अपि भावितात्मा पुष्पकरिणी कृत्यगतेन आत्मना ऊर्ध्वं विहायसम् उत्पतेत् ?
हन्त! उत्पतेत्।
अनगारः अपि भदन्त ! भावितात्मा कियन्ति प्रभुः पुष्पकरणीकृत्यगतानि रूपाणि विकर्तुम्?
शेषं तत् चैव यावत् विकरिष्यति वा ।
अथ भदन्त ! किं मायी विकरोति ? अमायी विकरोति ?
गौतम! मायी विकरोति, नो अमायी विकरोति । मायी तस्य स्थानस्य अनालोचितप्रतिक्रान्तः कालं करोति, नास्ति तस्य आराधना । अमायी तस्य स्थानस्य आलोचितप्रतिक्रान्तः कालं करोति, अस्ति तस्य आराधना ।
१. सूत्र १४६ - १६६
प्रस्तुत आगम में भावितात्मा अनगार के विषय में अनेक सूत्र उपलब्ध हैं
१. भ. ३ / १८६ - १६३ ।
२. (क) जैनेन्द्र कोश - ऋद्धि शब्द ।
भाष्य
• भगवई ३ / १५४ - १६३
• भगवई ३ / १८६-२४३
भावितात्मा अनगार नाना रूपों की विक्रिया (निर्माण) करने में समर्थ होता है। इसका उल्लेख भगवती के तीसरे शतक में भी उपलब्ध है। ' विवरण के लिए द्रष्टव्य ३ / १६६ - २२० का सूत्र एवं
भाष्य ।
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प्रस्तुत प्रकरण में भावितात्मा के द्वारा की जाने वाली विक्रिया के अनेक प्रकारों का उल्लेख किया गया है।
स्थानांग में छह प्रकार के ऋद्धिमान पुरुष बतलाए गए हैं। उनमें चारण और विद्याधर का उल्लेख है। '
धवला और तत्त्वार्थवार्तिक में ऋद्धि के अनेक प्रकार बतलाए गए हैं।' प्रस्तुत प्रकरण में भावितात्मा की बहुविध विक्रिया का
भगवई
वाली, समतीर वाली, क्रमशः सुन्दर तट वाली, गंभीर और शीतल जल वाली यावत् जिसमें उन्नत शब्द और मधुर स्वर का नाद हो रहा है, वह चित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं पुष्पकरिणी कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है ?
हां, उड़ता है।
१६५. भंते! भावितात्मा अनगार कितने पुष्पकरिणी कृत्यागत रूपों का निर्माण करने में समर्थ है ?
शेष पूर्ववत् यावत् विक्रिया करेगा।
१६६. भंते! क्या मायी विक्रिया करता है? अमायी विक्रिया करता है?
निरूपण किया गया है। इस निरूपण में प्राणी के साथ भावितात्मा की विक्रिया का वर्णन तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
शब्द विमर्श
उठाता हुआ ।
गौतम! मायी विक्रिया करता अमायी विक्रिया नहीं करता। मायी इस स्थान की आलोचना-प्रतिक्रमण किए बिना काल को प्राप्त होता है, उसके आराधना नहीं होती। अमायी उस स्थान की आलोचनाप्रतिक्रमण कर काल को प्राप्त होता है, उसके आराधना होती है।
वियलकडं - बांस की खपाचियों से बनी हुई चटाई (अथवा ) टाटी | सुंब कडं - खस से बनी हुई टाटी ।
चंब कडं - चमड़े से गुंथी हुई खाट ।
कंबल कडं - ऊनी कंबल ।
उल्लंबिया - लटका कर ।
उब्बिहिय उब्बिहिय - उछाल उछाल कर ।
बीजबीजक - बबीला |
जीवजीवक - चकोर |
बल्गुलिका - छोटी चमगादड़ ।
समतुंरगेमाणे- दोनों पैरों को एक साथ समतुल्य रेखा में
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(ख) ठा. ६ / ३१ का टिप्पण |
३. जैनेन्द्र कोश - ऋद्धि शब्द ।
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