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मूल
भावियप विउव्वणा-पदं १४६. रायगिहे जाब एवं वयासी - से जहानामए केइ पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगएणं अप्पाणेणं उड वेहासं उप्पएज्जा ?
हंता उप्पएज्जा ॥
१५०. अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाई पभू केयाघडियाकिच्चहत्थगयाई रुवाई विउब्वित्तए ? गोयमा ! से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्करस वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणगारे वि भाविअप्पा वेउब्वियसमुग्धाणं समोहरणइ जाव पभू णं गोयमा ! अणगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थिरूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए । एस णं गोयमा ! अणगारस्स भाविअप्पणो अयमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विउव्विसु वा विव्वति वा विउव्विस्मति
वा।।
१५१. से जहानामए केइ पुरिसे हिरण्णपेलं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा हिरण्णपेलहत्थकिञ्चगएणं अप्पाणेणं उडुं वेहासं उप्पएज्जा ?
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नवमो उद्देसो : नवां उद्देशक
संस्कृत छाया
भावितात्म-विकरण-पदम्
राजगृहं यावत् एवमवादीत् सः यथानामकः कश्चित् पुरुषः 'केयाघडियं' गृहीत्वा गच्छेत्, एवमेव अनगारोऽपि भावितात्मा 'केयाघडिया' कृत्यहस्तगतेन आत्मना ऊर्ध्वं विहायसम् उत्पतेत् ?
हन्त ! उत्पतेत्।
अनगारः भदन्त ! भावितात्मा कियन्ति प्रभुः 'केयाघडिया' कृत्य हस्तगतानि रूपाणि विकर्तुम्?
गौतम! सः यथानामकः युवतिं युवा हस्तेन हस्तौ गृहणीयात्, चक्रस्य वा नाभिः अरकायुक्ता स्यात् एवमेव अनगारोऽपि भावितात्मा वैक्रियसमुद्घातेन समवहन्यते यावत् प्रभुः गौतम! अनगारः भावितात्मा केवलकल्पं जम्बूद्वीपं द्वीपं बहुभिः स्त्रीरूपैः आकीर्णं व्यतिकीर्णम् उपस्तृतं संस्तृतं स्पृष्टम् अवगाढावगाढं कर्तुम् । एषः गौतम ! अनगारस्य भावितात्मनः अयमेतद्रूपः विषयः, विषयमात्रम् उक्तः, नो चैव सम्प्राप्त्या व्यकार्षीत् वा विकरोति वा विकरिष्यति वा ।
अथ यथानामकः कश्चित् पुरुषः हिरण्यपेटां गृहीत्वा गच्छेत् एवमेव अनगारोऽपि भावितात्मा हिरण्यपेटाहस्तकृत्यगतेन आत्मना ऊर्ध्वं विहायसम् उत्पतेत्?
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हिन्दी अनुवाद
भावितात्म-विक्रिया-पद
१४६. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा - भंते! जैसे कोई पुरुष रज्जु से बंधी घटिका लेकर जाए, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी क्या हाथ में रज्जु से बंधी घटिका ले स्वयं कृत्यागत होकर (माया या विद्या का प्रयोग कर) ऊपर आकाश में उड़ता है ? हां, उड़ता है।
१५०. भंते! भावितात्मा अनगार हाथ में रज्जु से बंधी घटिका ले, स्वयं कृत्यागत होकर कितने रूपों का निर्माण करने में समर्थ है ? गौतम! जैसे कोई युवक युवती का हाथ प्रगाढता से पकड़ता है तथा गाड़ी के चक्के की नाभि आरों से युक्त होती है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है यावत् गौतम ! वह भावितात्मा अनगार संपूर्ण जंबूद्वीप द्वीप को अनेक स्त्री रूपों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत (बिछौना साबिछाया हुआ ) संस्तृत (भली भांति बिछौना सा बिछाया हुआ ) स्पृष्ट और अवगाढावगाढ ( अत्यन्त सघन रूप से व्याप्त) करने में समर्थ है। गौतम! भावितात्मा अनगार की विक्रिया शक्ति का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है । भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा।
१५१. जैसे कोई पुरुष हिरण्य-पेटी को लेकर जाए, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार हाथ में हिरण्य पेटी को ले, कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है?
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