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________________ भगवई गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहानेरइयखेत्तावीचियमरणे देवखेत्तावीचियमरणे ॥ जाव १३५. से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइनेरइयखेत्तावीचियमरणे नेरइयखेत्तावीचियमरणे ? गोयमा ! जण्णं नेरइया नेरइयखेत्ते ट्टमाणा जाई दव्बाई नेरइयाउयत्ताए गहियाई एवं जहेब दव्वावीचियमरणे तहेब खेत्तावीचियमरणे वि । एवं जाव भावावीचियमरणे ॥ · १३६. ओहिमरणे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहादव्वोहिमरणे, खेत्तोहिमरणे, कालोहिमरणे, भवोहिमरणे, भावोहिमरणे ॥ १३७. दव्वोहिमरणे णं भंते कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहानेरइयदव्वोहिमरणे जाव देवदव्वोहिमरणे ॥ १३८. से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइ - इदव् वोहि मरणे ? गोयमा ! जे णं नेरइया नेरइयदव्वे माणा जाई व्वाई संपयं मरंति, ते णं नेरइया ताई दव्वाइं अणागए काले पुणो वि मरिस्संति से तेणद्वेणं गोयमा ! जाव दब्वोहिमरणे । एवं तिरिक्खजोणिय- मणुस्स - देवदव्बोहिमरणेवि । एवं एएणं गमेणं खेत्तोहिमरणे वि, कालोहिमरणे वि, भवोहिमरणे वि, भावोहिमरणे वि ॥ १३६. आतियंतियमरणे णं भंते ! - पुच्छा । गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहादव्वातियंतियमरणे, खेत्तातियंतिय Jain Education International १६७ गौतम! चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथानैरयिकक्षेत्रावीचिकमरणम् यावत् देवक्षेत्रावीचिकमरणम्। तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यतेनैरयिक क्षेत्रावीचिकमरणं नैरयिकक्षेत्रावीचिकमरणम् ? गौतम ! यत् नैरयिकाः नैरयिकक्षेत्रे वर्त्तमानाः यानि द्रव्याणि नैरयिकायुष्कतया गृहीतानि एवं यथैव द्रव्यावीचिकमरणं तथैव क्षेत्रावीचिकमरणम् अपि । एवं यावत् भावावीचिकमरणम् । अवधिमरणं भदन्त! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाद्रव्यावधिमरणम्, क्षेत्रावधिमरणम्, भवावधिमरणम्, कालावधिमरणम्, भावावधिमरणम् । द्रव्यावधिमरणं भदन्त ! प्रज्ञप्तम् ? गौतम! चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथानैरयिकद्रव्यावधिमरणम् देवद्रव्यावधिमरणम्। यावत् कतिविधं तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यतेनैरयिकद्रव्यावधिमरणं नैरयिकद्रव्यावधिमरणम् ? गौतम! ये नैरयिकाः नैरयिकद्रव्ये वर्तमानाः यानि द्रव्याणि साम्प्रतं म्रियन्ते, ते नैरयिकाः तानि द्रव्याणि अनागते काले पुनः अपि मरिष्यन्ति । तत् तेनार्थेन गौतम! यावत् द्रव्यावधिमरणम् । एवं तिर्यग्योनिकमनुष्यदेवद्रव्यावधिमरणम् अपि । एवम् एतेन गमेन क्षेत्रावधिमरणम् अपि, कालावधिमरणम् अपि भवावधिमरणम् अपि, भावावधिमरणम् अपि । आत्यन्तिकमरणं भदन्त ! पृच्छा । गौतम! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाद्रव्यात्यन्तिकमरणम्, क्षेत्रात्यन्तिक For Private & Personal Use Only श. १३ : उ. ७ : सू. १३५ - १३६ गौतम! चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेनैरयिक क्षेत्र आवीचि मरण यावत् देव क्षेत्र वीचिमरण १३५. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - नैरयिक क्षेत्र आवीचिमरण नैरयिक क्षेत्र आवीचिमरण है? गौतम! जो नैरयिक नैरयिक क्षेत्र में वर्तमान जो द्रव्य नैरयिक आयुष्य के रूप में गृहीत होते हैं, इस प्रकार जैसे द्रव्य आवीचिमरण की वक्तव्यता वैसे ही क्षेत्र आवीचिमरण भी वक्तव्य है। इसी प्रकार यावत् भव आवीचि मरण। १३६. भंते! अवधि मरण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य अवधि - मरण, क्षेत्र अवधि - मरण, कालअवधि मरण, भव अवधि-मरण, भावअवधि मरणा १३७. भंते! द्रव्य अवधि मरण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेनैरयिक द्रव्य अवधि - मरण यावत् देव द्रव्य अवधि मरण। १३८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - नैरयिक द्रव्य अवधिमरण नैरयिक द्रव्य अवधिमरण है? गौतम! जो नैरयिक नैरयिक- द्रव्य में वर्तमान जिन द्रव्यों से संप्रति मरते हैं, वे नैरयिक उन्हीं द्रव्यों से अनागत काल में पुनरपि मरेंगे। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- यावत् द्रव्य अवधि-मरण है । इसी प्रकार तिर्यक् योनिक, मनुष्य और देव द्रव्य अवधि मरण की वक्तव्यता। इसी प्रकार इस गमक से क्षेत्र अवधि-मरण, काल अवधि-मरण, भव अवधि - मरण और भाव अवधि मरण की वक्तव्यता। १३६. भंते! आत्यंतिक मरण की 'पृच्छा । गौतम! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य आत्यंतिक मरण, क्षेत्र आत्यंतिक मरण www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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