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________________ १६६ भगवई श. १३ : उ.७ : सू. १२६-१३४ १२६. कतिविहे णं भंते ! काये पण्णत्ते ? गोयमा ! सत्तविहे काये पण्णत्ते, तं जहा–ओरालिए, ओरालियमीसए, वेउब्बिए, वेउब्वियमीसए, आहारए, आहारगमीसए, कम्मए॥ कतिविधं भदन्त! कायः प्रज्ञप्तम्? गौतम! सप्तविधः कायः प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- औदारिकं, औदारिकमिश्रकं, वैक्रियम्, वैक्रियमिश्रकं, आहारकं, आहारकमिश्रकं, कर्मकम्। १२६. भंते! काय के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं? गौतम! काय के सात प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र, कार्मणा मरण-पदं १३०. कतिविहे णं भंते ! मरणे पण्णत्ते? गोयमा! पंचविहे मरणे पण्णत्ते. तं जहा-आवीचियमरणे, ओहिमरणे, आतियंतियमरणे, बालमरणे, पंडियमरणे॥ मरण-पदम कतिविधं भदन्त! मरणं प्रज्ञप्तम्? गौतम! पञ्चविधं मरणं प्रज्ञप्तम. तद्यथा-आवीचिकमरणम्, अवधिमरणम्, आत्यन्तिकमरणम्, बालमरणम्, पण्डितमरणम्। मरण-पद १३०. भंते! मरण के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं? गौतम! मरण के पांच प्रकार प्रज्ञप्त है, जैसे-आवीचि मरण, अवधि मरण, आत्यंतिक मरण, बाल मरण, पंडित मरण। १३१. आवीचियमरणे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहादव्वावीचियमरणे, खेत्तावीचियमरणे, कालावीचियमरणे, भवावीचियमरणे, भावावीचियमरणे॥ आवीचिकमरणं भदन्त! कतिविधं प्रज्ञप्तम्? गौतम! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाद्रव्यावीचिकमरणम्, क्षेत्रावीचिकमरणम्, कालावीचिकमरणम्, भवावीचिकमरणम्, भावावीचिकमरणम्। १३१. भंते! आवीचि मरण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे द्रव्य आवीचि मरण, क्षेत्र आवीचि मरण, काल आवीचि मरण, भव आवीचि मरण, भाव आवीचि मरण। १३२.दव्वावीचियमरणे णं भंते ! कतिविहे द्रव्यावीचिकमरणं भदन्त! कतिविधं १३२. भंते! द्रव्य आवीचि मरण कितने प्रकार पण्णत्ते ? प्रज्ञप्तम्? का प्रज्ञप्त है? गोयमा ! चउब्बिहे पण्णत्ते, तं जहा- गौतम! चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- गौतम! चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेनेरइयदव्यावीचियमरणे, तिरिक्व- नैरयिकद्रव्यावीचिकमरणम्, तिर्यग्- नैरयिक द्रव्य आवीचि मरण, तिर्यक् योनिक जोणियदव्वावीचियमरणे, मणुस्स- योनिकद्रव्यावीचिकमरणम्, मनुष्य- द्रव्य आवीचि मरण, मनुष्य द्रव्य आवीचि दब्बावीचियमरणे, देवदव्यावी- द्रव्यावीचिकमरणम्, देवद्रव्यावीचिक- मरण, देव द्रव्य आवीचि मरणा चियमरणे॥ मरणम्। १३३. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- नेरइयदव्वावीचियमरणे . नेरइयदव्वा- नैरयिकद्रव्यावीचिकमरणं . नैरयिक- वीचियमरणे? द्रव्यावीचिकमरणम्? गोयमा ! जण्णं नेरइया नेरइए दव्वे गौतम! यत् नैरयिकाः नैरयिके द्रव्ये वट्टमाणा जाई दव्वाई नेरइयाउयत्ताए वर्तमानाः यानि द्रव्याणि नैरयिकागहियाई बधाई पुट्ठाई कडाई पट्टवियाई युष्कतया गृहीतानि स्पृष्टानि कृतानि निविट्ठाई अभिनिविट्ठाई अभिसमण्णा- प्रस्थापितानि निर्विष्टानि अभिनिगयाई भवंति ताई दव्वाई आवीचि- र्विष्टानि अभिसमन्वागतानि भवन्ति मणुसमयं निरंतरं मरंति त्ति कट्ट। से तानि द्रव्याणि आवीचिमनुसमयं निरन्तरं तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चइ-नेरइय- __ म्रियन्ते इति कृत्वा। दवावीचियमरणे, एवं जाव देवदव्वा- तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेवीचियमरणे॥ नैरयिकद्रव्यावीचिमरणम्, एवं यावत् देवद्रव्यावीचिमरणम्। १३३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिक द्रव्य आवीचि मरण नैरयिक द्रव्य आवीचि मरण है? गौतम! क्योंकि नैरयिक नैरयिक द्रव्य में वर्तमान जो द्रव्य नैरयिक आयुष्य के रूप में गृहीत, बद्ध, स्पृष्ट, कृत, प्रस्थापित, निविष्ट, अभिनिविष्ट और अभिसमन्यागत होते हैं, वे द्रव्य तरंग की भांति प्रतिक्षण निरंतर विच्युत होते रहते हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-गौतम! नैरयिक द्रव्य आवीचि मरण, इस प्रकार यावत् देव द्रव्य आवीचि मरण है। १३४. खेत्तावीचियमरणे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते? क्षेत्रावीचिकमरणं भदन्त! कतिविधं प्रज्ञप्तम्? १३४. भंते! क्षेत्र आवीचि मरण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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