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भगवई
श. १३ : उ. ७ : सू. १२७,१२८
१६४ १२७. कतिविहे णं भंते ! मणे पण्णत्ते ? कतिविधं भदन्त! मनः प्रज्ञप्तम्?
गोयमा ! चउबिहे मणे पण्णत्ते, तं गौतम! चतुर्विधं मनः प्रज्ञाप्तम्? जहा-सच्चे, मोसे, सचामोसे, तद्यथा-सत्यं, मृषा, सत्यामृषम्, असचामोसे॥
असत्यामृषम्।
१२७. भंते! मन के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! मन के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सत्य,मृष, सत्यामृष,असत्यामृष।
काय-पदं १२८. आया भंते ! काये ? अण्णे काये ?
काय-पदम् आत्मा भदन्त! कायः? अन्यः कायः?
काय-पद १२८. भंते! काय आत्मा है? काय आत्मा से
अन्य है? गौतम! काय आत्मा भी है, काय आत्मा से अन्य भी है। भंते! काय रूपी है? काय अरूपी है? गौतम! काय रूपी भी है, काय अरूपी भी
भंते! काय सचित्त है? काय अचित्त है? गौतम! काय सचित्त भी है, काय अचित्त भी
गोयमा ! आया वि काये, अण्णे वि गौतम! आत्मा अपि कायः, अन्यः अपि काये।
कायः। रूविं भंते ! काये? अरूविं काय? रूपि भदन्त! कायः अरूपि कायः? गोयमा! रूविं वि काये, अरूविं वि गौतम! रूपि अपि कायः, अरूपि अपि काये।
कायः। सचित्ते भंते! काये ? अचित्ते काये? सचित्तः भदन्त! कायः? अचित्तः कायः? गोयमा! सचित्ते वि काये, अचित्ते वि गौतम! सचित्तः अपि कायः, अचित्तः काये।
अपि कायः। जीवे भंते! काये? अजीवे काये? जीवः भदन्त! कायः? अजीवः कायः? गोयमा! जीवे वि काये, अजीवे वि गौतम! जीवः अपि कायः, अजीवः अपि काये।
कायः। जीवाणं भंते! काये ? अजीवाणं काये? जीवानां भदन्त! कायः? अजीवानां
कायः? गोयमा! जीवाण विकाये, अजीवाण गौतम! जीवानाम् अपि कायः, विकाये।
अजीवानाम् अपि कायः। पुचि भंते! काये? कायिज्जमाणे पूर्वं भदन्त कायः? चीयमानः कायः? काये? कायसमयवीतिक्कते काये? कायसमयव्यतिक्रान्तः कायः?
भंते! काय जीव है? काय अजीव है? गौतम! काय जीव भी है, काय अजीव भी
है।
गोयमा ! पुचि वि काये, कायिज्जमाणे गौतम! पूर्वम् अपि कायः, चीयमानः विकाये, कायसमयवीतिकंते वि काये। अपि कायः, कायसमयव्यतिक्रांतः अपि
कायः। पुचि भंते! काये भिज्जति? पूर्वं भदन्त! कायः भिद्यते? चीयमानः कायिज्जमाणे काये भिज्जति? कायः भिद्यते? कायसमयव्यतिक्रांतः कायसमयवीतिक्कंते काये भिज्जति? कायः भिद्यते?
भंते! काय जीवों के होता है? काय अजीवों के होता है? गौतम! काय जीवों के भी होता है, काय अजीवों के भी होता है। भंते! पहले काय होता है? चीयमान अवस्था में काय होता है? काय का समय व्यतिक्रांत होने पर काय होता है? गौतम! पहले भी काय होता है, चीयमान अवस्था में भी काय होता है, काय का समय व्यतिक्रांत होने पर भी काय होता है। भंते! पहले काय का भेदन होता है? चीयमान अवस्था में काय का भेदन होता है? काय का समय व्यतिक्रांत होने पर काय का भेदन होता है? गौतम! पहले भी काय का भेदन होता है, चीयमान अवस्था में भी काय का भेदन होता है, काय का समय व्यतिक्रांत होने पर भी काय का भेदन होता है।
गोयमा ! पुचि वि काये भिज्जति, गौतम! पूर्वमपि कायः भिद्यते, चीयमानः कायिज्जमाणे वि काये भिज्जति, अपि कायः भिद्यते, कायसमयकायसमयवितिक्कंते वि काये व्यतिक्रांतः अपि कायः भिद्यते। भिज्जति॥
भाष्य १. सूत्र १२७-१२८
आत्मा शरीर में रहती है। उसके द्वारा अपनी प्रवृत्तियों का काय के विमर्श के पांच बिन्दु हैं
संचालन करती है। कर्म का बंध शरीर के माध्यम से होता है। शरीर पहला बिन्दु-काय आत्मा है अथवा आत्मा से भिन्न है ? ही कर्म वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करता है और वही उसका फल
इसका उत्तर है-शरीर और आत्मा में भेदाभेद है। आत्मा भोग करता है। शरीर से सर्वथा भिन्न नहीं है इसलिए शरीर आत्मा भी है। वह शरीर शरीर के साथ आत्मा का गहरा संबंध है। वृत्तिकार ने उसके से सर्वथा अभिन्न नहीं है इसलिए वह शरीर से भिन्न भी है। लिए तीन दृष्टांत प्रस्तुत किए हैं-जैसे क्षीर और नीर, अग्नि और
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