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________________ भगवई १५६ श. १३ : उ. ६ : सू. १२०,१२१ १२०. तए णं तस्स अभीयिस्स कुमारस्स ततः तस्य अभीचेःकुमारस्य अन्यदा १२०. अभीचीकुमार ने किसी दिन पूर्वरात्र और अण्णदा कदाइ पुब्वरत्तावरत्तकाल- कदाचित् पूर्वरात्रापररात्रकालसमये अपररात्र काल समय में कुटुम्ब जागरिका समयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स कुटुम्ब-जागरिकां जाग्रतः अयमेतद्- की। जागरणा करते हुए इस प्रकार का अयमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पथिए। रूपः आध्यात्मिक: चिन्तितः प्रार्थितः आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, अभिलाषात्मक मणोगए संकप्पे समुष्पज्जित्था एवं मनोगतः संकल्पः समुदपादि-एवं खलु एवं मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-मैं उद्रायण खलु अहं उरायणस्स पुत्ते पभावतीए अहम् उद्रायणस्य पुत्रः प्रभावत्याः देव्याः का पुत्र प्रभावती देवी का आत्मज हूं। देवीए अत्तए, तए णं से उद्दायणे राया आत्मजः, ततः सः उद्रायणः राजा माम् उद्रायण राजा मुझे छोड़कर अपने भानजे ममं अवहाय नियगं भाइणेज्ज केसि अपहाय निजकं भागिनेयं केशिनं कुमारं केशीकुमार को राज्य में स्थापित कर श्रमण कुमारं रज्जे ठावेत्ता समणस्स भगवओ राज्ये स्थापयित्वा श्रमणस्य भगवतः भगवान् महावीर के पास मुंड होकर अगार महावीरस्म अंतियं मुंडे भवित्ता महावीरस्य अन्तिकं मुण्डः भूत्वा से अनगारिता में प्रव्रजित हो गए हैं-इस अगाराओ अणगारियं पन्बइए-इमेणं अगाराद् अनगारितां प्रव्रजितः-अनेन प्रकार के महान् अप्रीतिकर मनोमानसिक एयारूवेणं महया अप्पत्तिएणं मणो- एतद्पे ण महता अप्रीतिकेन दुःख से अभिभूत होकर अपने अंतःपुर माणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे मनोमानसिकेन दुःखेन अभिभूतः सन् परिवार से संपरिवृत होकर, अपने भांड और अंतेउरपरियालसंपरिबुडे सभंडमत्तो- अंतःपुरपरिवारसंपरिवृतः स्वभाण्ड- उपकरण लेकर वीतीभय नगर से निकल बगरणमायाए वीतीभयाओ नयराओ मात्रोपकरणमादाय वीतीभयाद् नगराद् गया, निकल कर क्रमानुसार विचरण और निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता पुव्वाणुपुचि निर्गच्छति, निर्गत्य पूर्वानुपूर्वी चरन् ग्रामानुग्राम घूमते हुए जहां चंपा नगरी थी, चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव ग्रामानुग्राम दवन् यत्रैव चम्पा नगरी, जहां कूणिक राजा था वहां आया, आकर चंपा नयरी, जेणेव कूणिए राया, तेणेव यत्रैव कोणिकः राजा, तत्रैव कूणिक राजा की शरण में रहने लगा। वह उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कूणियं रायं उपागच्छति, उपागम्य कोणिकं राजानम् वहां विपुल भोग समिति से समन्वागत था। उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तत्थ वि णं से उपसंपद्य विहरति। तत्रापि सः वह अभीचीकुमार श्रमणोपासक भी विउलभोगसमितिसमन्नागए यावि विप्लभोगसमितिसमन्वागतः चापि था-जीव-अजीव को जानने वाला यावत् होत्था। तए णं से अभीयीकुमारे ____ अभवत्। ततः स अभीचीकुमारः यथापरिगृहीत तपःकर्म के द्वारा अपने समणोवासए यावि होत्था-अभिगय- श्रमणोपासकः चापि अभवत्- आपको भावित करते हुए विहार करने लगा। जीवाजीवे जाव अहापरिग्गहिएहिं __ अभिगतजीवाजीवः यावत् यथा- उसके मन में उद्रायण राजर्षि के साथ वैर तबोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, परिगृहीतैः तपःकर्मभिः आत्मानं का अनुबंध हो गया। उदायणम्मि रायरिसिम्मि समणुबद्धवेरे ___ भावयन् विहरति, उद्रायणे राजर्षों यावि होत्था॥ समनुबद्धवैरः चापि अभवत्। १२१. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए निरय- अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां निरय- १२१. इस रत्नप्रभा पृथ्वी नरक के परिपार्श्व में परिसामंतेसु चोयटिं असुरकुमारा- परिसामन्तेषु चतुष्षष्टिः असुरकुमारा- चौसठ लाख असुरकुमार आवास प्रज्ञप्त हैं। वाससयसहस्सा पण्णत्ता। तए णं से वासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि। ततः सः इस अभीचीकुमार ने बहुत वर्षों तक अभीयीकुमारे बहूई वासाइं अभीचीकुमारः बहूनि वर्षाणि श्रमणो- श्रमणोपासक पर्याय का पालन किया। समणोवासगपरियागं पाउणइ, पासकपर्यायं प्राप्नोति, प्राप्य पालन कर अर्द्धमासिकी अनशन/संलेखना पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अर्द्धमासिक्या संलेखनया त्रिंशत् के द्वारा तीस भक्त का छेदन किया, छेदन तीसं भत्ताई अणसणाए छेएइ, छेएत्ता भक्तानि अनशनेन छिनत्ति, छित्त्वा तस्य कर उस स्थान की आलोचना प्रतिक्रमण तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते स्थानस्य अनालोचितप्रतिक्रान्तः किए बिना कालमास में मृत्यु को प्राप्त कर कालमासे कालं किचा इमीसे कालमासे कालं कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां इस रत्नप्रभा पृथ्वी नरक के परिसामंत में रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु पृथिव्यां निरयपरिसामन्तेषु चतुष्षष्टिः चौसठ लाख असुरकुमारावासों में से किसी चोयट्ठीए आयावाअसुरकुमारावास- आतापक-असुरकुमारावासशतसहस्रेषु एक आतापक असुरकुमारावास में आतापक सयसहस्सेसु अण्णयरंसि आयावा- अन्यतरे आतापक-असुरकुमारावासे असुरकुमार देव के रूप में उपपन्न हुआ। वहां असुरकुमारावासंसि आयावाअसुर- आतापक-असुरकुमारदेवत्वेन उपपन्नः । कुछ आतापक असुरकुमार देवों की स्थिति कुमारदेवत्ताए उववण्णो। तत्थ णं तत्र अस्त्येककानाम् आतापकानाम् एक पल्योपम प्रज्ञप्त है। वहां अभीचीकुमार अत्थेगतियाणं आयावगाणं असुर- असुरकुमाराणाम् देवानाम एकं पल्योपमं देव की एक पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। कुमाराणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई स्थितिः प्रज्ञप्ता, तत्र अभीचेः अपि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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