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________________ श. १३ : उ.६ : सू. १०३,१०४ भगवई १५३ उद्दायणस्स रण्णो नियए भाइणेज्जे- विहरति। तस्य उद्रायणस्य राज्ञः केसी नाम कुमारे होत्था-सुकुमाल- निजकः भागिनेयः केशी नाम कुमारः पाणिपाए जाव सुरूवे। से णं उदायणे आसीत्-सुकुमारपाणिपादः यावत् राया सिंधूसोवीरप्पामोक्खाणं सोलसण्हं सुरूपः। सः उद्रायण: राजा सिन्धुजणवयाणं वीतीभयप्पामोक्खाणं तिण्हं सौवीरप्रमुख्यानां षोडशानां जनतेसट्ठीणं नगरागरसयाणं, महसेणप्पा- पदानाम्, वीतीभय-प्रमुख्यानां त्रयाणां मोक्खाणं दसण्हं राईणं बद्धमउडाणं त्रिषष्ठीनां नगरा-करशतानाम्, महाविदिन्नछत्त - चामर - बालवीयणाणं, सेनप्रमुख्यानां दशानां राज्ञां बद्धअण्णेसिं च बहुणं राईसर - तलवर - मुकुटानां विदत्तछत्र-चामर-बालमाडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ - सेट्ठि - वीजनानाम्, अन्येषां च बहूनां राजेश्वरसेणावइ-सत्यवाहप्पभिईणं आहेवच्चं तलवर - माडम्बिक - कौटुम्बिक-इभ्यपोरेवचं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर- श्रेष्ठि - सेनापति - सार्थवाहप्रभृतीनाम् सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे । आधिपत्यं पौरपत्यं स्वामित्वं भर्तृत्वम् समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव आज्ञा-ईश्वर-सैनापत्यं कारयन् पालयन् अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं श्रमणोपासकः . अभिगतजीवाजीवः भावमाणे विहरइ॥ यावत् यथापरिगृहीतैः तपःकर्मभिः । आत्मानं भावयन् विहरति। भागिनेय केशी नाम का कुमार था-सुकुमाल हाथ पैर वाला यावत् सुरूप। वह उद्रायण राजा सिन्धु सौवीर आदि सोलह जनपद, वीतीभय नगर आदि तीन सौ तेसठ नगर, आकर, छत्र, चामर, बाल वीजन आदि प्रदत्त महासेन आदि दस मुकुटवत् राजों का, अन्य बहुत राजे, युवराज, कोटवाल, मडंबपति, कुटुम्बपति, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि का आधिपत्य, पौरपत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व (पोषण) तथा आज्ञा देने में समर्थ और सेनापतित्य करता हुआ, अन्य से आज्ञा का पालन करवाता हुआ वह श्रमणोपासक जीव अजीव को जानने वाला यावत् यथापरिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ रह रहा था। "पा भाष्य १. सूत्र १०२ वृत्तिकार ने सिन्धु सौवीर का अर्थ सिन्धु नदी का पार्श्ववर्ती सौवीर जनपद किया है।' उद्रायण के दो महारानियां थी-पद्मावती और प्रभावती। पद्मावती के विषय में कोई प्रामाणिक स्रोत उपलब्ध नहीं है। १०३. तए णं से उद्दायणे राया अण्णया ततः सः उद्रायणः राजा अन्यदा १०३. वह उद्रायण राजा किसी दिन जहां पौषध कयाइ जेणेव पोसहसाला तेणेव कदाचित् यत्रैव पौषधशाला तत्रैव शाला थी, वहां आया। शंख श्रावक की उवागच्छइ, जहा संखे जाव पोसहिए। उपागच्छति, यथा शंखः यावत् भांति यावत् मैं उपवास करूं, ब्रह्मचारी रहूं, बंभचारी ओमुक्कमणिसुवण्णे बवगय- पौषधिकः ब्रह्मचारी उन्मुक्तमणिसुवर्णः सुवर्ण मणि को छोड़कर, माला, सुगंधित माला-वण्णग-विलेवणे निक्खित्त- व्यपगतमाला-वर्णक-विलेपनः निक्षिप्त- चूर्ण और विलेपन से रहित, शस्त्र, मूसल सत्थ-मुसले एगे अबिइए दन्भ- शस्त्र-मुसलः एकः अद्वितीयः आदि का वर्जन कर, अकेला, दूसरों के संथारोवगए पक्खियं पोसहं दर्भसंस्तारोपगतः पाक्षिकं पौषधं साहाय्य से निरपेक्ष, दर्भ-संस्तारक पर बैठ पडिजागरमाणे विहरइ॥ प्रतिजाग्रत् विहरति। कर पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करूं। १०४. तए णं तस्स उद्दायणस्स रण्णो ततः तस्य उद्रायणस्य राज्ञः पूर्वरात्रा- १०४. उस उद्रायण राजा के पूर्वरात्र-अपररात्र पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म- पररात्रकालसमये धर्मजागरिकायां काल में धर्म जागरणा करते हुए इस प्रकार जागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाग्रतः अयमेतद्प: आध्यात्मिकः का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए चिन्तितः प्रार्थितः मनोगतः संकल्पः अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न संकरपे समुपज्जित्था-धन्ना णं ते समुदपादि-धन्याः ते ग्रामाकर नगर- हुआ-धन्य हैं वे ग्राम, आकर, नगर, गामागर - नगर • खेड-कब्बड-मडंब- खेट - कर्बट - मडम्ब-द्रोणमुखपत्तना- निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडम्ब, दोणमुह-पट्टणा-सम - संबाहसण्णिवेसा श्रमसम्बाधसन्निवेशाः यत्र श्रमणः द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संबाध, सनिवेश, जत्थ ण समणे भगवं महावीरे विहरइ, भगवान् महावीरः विहरति, धन्याः ते जहां श्रमण भगवान् महावीर विहरण कर धन्ना णं ते राईसर-तलवर-माडंबिय- राजेश्वर-'तलवर' माडम्बिक- रहे हैं। धन्य हैं वे राजे, युवराज, कोटवाल, कोडुबिय - इब्भ - सेटि-सेणावइ-सत्थ- कौटुम्बिक - इभ्य - श्रेष्ठि - सेनापति- मडम्बपति, कुटुम्बपति, इभ्य, सेठ, वाहप्पभितयो जे णं समणं भगवं सार्थवाहप्रभृतयः ये श्रमणं भगवन्तं सेनापति, सार्थवाह आदि, जो श्रमण १. भ. चू. १३/१०२-सिन्धु सौवीरेसु त्ति सिन्धुनद्याः आसनाः, सौवीराः-जनपदविशेषाः सिन्धुसौवीरास्तेषु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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