________________
छट्ठो उद्देसो : छठा उद्देशक
मल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
संतर-निरंतर-उववज्जणादि-पदं ६५. रायगिहे जाव एवं वयासी-संतरं भंते!
नेरइया उववज्जंति ? निरंतरं नेरइया उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पि नेरइया उववज्जंति, निरंतरं पि नेरइया उववज्जंति। एवं असुरकुमारा वि। एवं जहा गंगेये तहेब दो दंडगा जाव संतरं पि वेमाणिया चयंति, निरंतरं पि चेमाणिया चयंति॥
सान्तर-निरन्तर-उपपन्नादि-पदम् राजगृहं यावत् एवमवादीत्-सान्तरं भदन्त! नैरयिकाः उपपद्यन्ते? निरन्तरं नैरयिकाः उपपद्यन्ते? गौतम! सान्तरमपि नैरयिकाः उपपद्यन्ते, निरन्तरमपि नैरयिकाः उपपद्यन्ते। एवम् असुरकुमाराः अपि। एवं यथा गाङ्गेये तथैव द्वौ दण्डको यावत् सान्तरमपि वैमानिकाः च्यवन्ते, निरन्तरमपि वैमानिकाः च्यवन्ते।
सान्तर-निरंतर उपपन्नादि पद १५. राजगृह नगर यावत् गौतम स्वामी इस
प्रकार बोले-भंते ! नैरयिक सांतर उपपन्न होते हैं ? निरंतर उपपन्न होते हैं? गौतम ! नैरयिक सांतर उपपन्न होते हैं, निरंतर भी उपपन्न होते हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों की वक्तव्यता। इस प्रकार जैसे गांगेय (भगवती/८०-८५) की वक्तव्यता वैसे ही दो दण्डक यावत् वैमानिक सांतर भी च्यवन करते हैं, निरन्तर भी च्यवन करते ह।
चमरचंच-आवास-पद
अमरिंदस्स
कुत्र भदन्त
चमरचंच आवास पद ६६. भंते ! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर का
चमरचंच नामक आवास कहां प्रज्ञप्त है?
चमरचञ्च-आवास-पदम् १६.कहि णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स कुत्र भदन्त! चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमाररण्णो चमरचंचे नाम
__ असुरकुमारराजस्य चमरचञ्चः नाम आवासे पण्णत्ते?
आवासः प्रज्ञप्तः? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स गौतम! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पन्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे पर्वतस्य दक्षिणे तिर्यग् असंख्येयाः दीवसमुद्दे-एवं जहा बितियसए द्वीपसमद्रा:-एवं यथा द्वितीयशते सभाउद्देसए बत्तब्बया सच्चेव अपरिसेसा सभोद्देशके वक्तव्यता सा चैव नेयव्वा। तीसे णं चमरचंचाए अपरिशेषा नेतव्या। तस्याः चमररायहाणीए दाहिणपञ्चत्थिमे णं चञ्चायाः राजधान्याः दक्षिण-पाश्चात्ये छक्कोडिसए पणपन्नं च कोडीओ षट्कोटिशतं पञ्चपञ्चाशत् कोटयः पणतीसं च सयसहस्साई पन्नासं च पञ्चत्रिंशत् च शतसहस्राणि पञ्चाशत् सहस्साई अरुणोदगसमुई तिरियं च सहस्राणि अरुणोदकसमुद्रं तिर्यक् वीइवइत्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स ___ व्यतिव्रज्य, अत्र चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमाररण्णो चमरचंचे नामं असुरकुमारराजस्य चमरचञ्चः नाम आवासे पण्णत्ते-चउरासीइं जोयण- आवासः प्रज्ञप्तः-चतुरशीतिः योजनसहस्साई आयामविक्खंभेणं, दो सहस्राणि आयामविष्कम्भेण, द्वे जोयणसयसहस्सा पन्नहिँ च सहस्साई योजनशतसहस्रे पञ्चषष्ठिः च छच बत्तीसे जोयणसए किंचि सहस्राणि षड़ च द्वाविंशतिः विसेसाहिए परिक्खेवेणं। से णं एगेणं योजनशतानि किंचित विशेषाधिकानि पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। परिक्षेपण। सः एकेन प्राकारेण सर्वतः से णं पागारे दिवढ जोयणसयं उर्ल्ड समन्तात् सम्परिक्षिप्तः। सः प्राकारः उच्चत्तेणं, एवं चमरचंचाए रायहाणीए व्यर्धं योजनशतम् ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन, एवं वत्तव्वया भाणियब्वा सभाविहूणा जाव चमरचञ्चायाः राजधान्याः वक्तव्यता
गौतम ! जंबूद्वीप द्वीप में मेरुपर्वत से दक्षिण भाग में तिरछे असंख्य द्वीप समुद्रों के पार चले जाने पर-इस प्रकार जैसे द्वितीय शतक (२/११८-१२१) में चमर-सभा उद्देशक की वक्तव्यता वही अपरिशेष ज्ञातव्य है। उस चमरचंचा राजधानी में दक्षिण-पश्चिम में अरुणोदय समुद्र में छह अरब, पचपन करोड़, पैंतीस लाख पचास हजार योजन तिरछा चले जाने पर वहां असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर का चमरचंच नामक आवास प्रज्ञप्त है-उसकी पीठिका लंबाई-चौड़ाई में चौरासी हजार योजन और परिधि में दो लाख पैंसठ हजार छह सौ
बत्तीस योजन से कुछ विशेषाधिक है। ___ वह एक प्राकार से चारों ओर से घिरा हुआ
है। वह प्राकार ऊंचाई में डेढ-सौ योजन ऊर्ध्व है। इस प्रकार चमरचंचा राजधानी की वक्तव्यता, वहां सभा नहीं है यावत् चार प्रासाद-पंक्ति हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org