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________________ मूल आहार- पदं ६३. नेरइया णं भंते! किं सचित्ताहारा ? अचित्ताहारा ? मीसाहारा ? गोयमा ! नो सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, नो मीसाहारा । एवं असुरकुमारा, पढमो नेरइयउद्देसओ निरवसेसो भाणियव्वो ।। ६४. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥ Jain Education International पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक संस्कृत छाया आहार-पदम् नैरयिका : भदन्त ! किं सचित्ताहाराः ? अचित्ताहाराः ? मिश्राहाराः ? गौतम! नो सचित्ताहाराः, अचित्ताहाराः, नो मिश्राहाराः। एवम् असुरकुमाराः। प्रथमः नैरयिकोद्देशकः निरवशेषः भणितव्यः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति । For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद आहार पद ९३. भंते! क्या नैरयिक सचित्त आहार वाले हैं ? क्या अचित्त आहार वाले हैं ? क्या मिश्र आहार वाले हैं ? गौतम ! सचित्त आहार वाले नहीं हैं, अचित्त आहार वाले हैं, मिश्र आहार वाले नहीं हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों की वक्तव्यता । प्रथम नैरयिक उद्देशक (पण्णवणा २८ / १ ) निरवशेष वक्तव्य है। ६४. भंते! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है। www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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