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भगवई
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श. १३ : उ. ४ : सू. ८४-८६
तीन अनंत वक्तव्य हैं यावत् अद्धासमय। यावत् कितने अद्धासमय अवगाढ हैं ?
अणंता भाणियब्बा जाव अद्धासमयो भणितव्याः यावत् अद्धासमयः इति । त्ति जाव केवतिया अद्धासमया यावत् कियन्तः अद्धासमयाः अवगाढाः? ओगाढा ? नत्थि एक्को वि॥
नास्ति एकोऽपि।
एक भी नहीं।
भाष्य
१. सूत्र ७६-८३
व्यणुक स्कंध एक आकाश प्रदेश में भी अवगाढ हो सकता है
और दो आकाश प्रदेशों में भी अवगाढ हो सकता है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के नियम भी आकाश की भांति वक्तव्य हैं।
५४. जत्थ णं भंते! एगे पुढविक्काइए
ओगाढे तत्थ णं केवतिया पुढविक्काइया ओगाढा ? असंखेज्जा। केवतिया आउक्काइया ओगाढा ? असंखेज्जा। केवतिया तेउकाइया ओगाढा ?
यत्र भदन्त! एकः पृथिवीकायिकः ५४. भंते ! जहां एक पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ अवगादः तत्र कियन्तः पृथिवीकायिकाः है, वहां कितने पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ अवगाढाः? असंख्येयाः।
असंख्येय। कियन्तः अप्कायिकाः अवगाढाः? । कितने अपकायिक जीव अवगाढ हैं? असंख्येयाः।
असंख्येय। कियन्तः तेजस्कायिकाः अवगाढाः? कितने तैजसकायिक जीव अवगाढ हैं ? असंख्येयाः।
असंख्येय। कियन्तः वायुकायिकाः अवगाढाः? कितने वायुकायिक जीव अवगाढ हैं ? असंख्येयाः।
असंख्येया कियन्तः वनस्पतिकायिकाः अवगाढाः? कितने वनस्पतिकायिक जीव अवगाढ हैं ? अनन्ताः ।
अनंत।
असंखेज्जा।
केवतिया वाउकाइया ओगाढा ? असंखेज्जा। केवतिया वणस्सइकाइया ओगाढा ? अणंता।
८५. जत्थ णं भंते! एगे आउक्काइए यत्र भदन्त! एकः अप्कायिकः अवगाढः ८५. भंते ! जहां एक अप्कायिक जीव अवगाढ
ओगाढे तत्थ णं केवतिया पुढविक्काइया तत्र कियन्तः पृथिवीकायिकाः है, वहां कितने पृथ्वीकायिक जीव अवगाढ ओगाढा?
अवगाढाः? असंखेज्जा। असंख्येयाः।
असंख्येय। केवतिया आउक्काइया ओगाढा ? कियन्तः अपकायिकाः अवगाढाः? कितने अप्कायिक जीव अवगाढ हैं? असंखेज्जा। असंख्येयाः।
असंख्येय। एवं जहेव पुढविक्काइयाणं वत्तव्वया एवं यथैव पृथिवीकायिकानां वक्तव्यता इस प्रकार जैसे पृथ्वीकायिक जीवों की तहेव सञ्बेसि निरवसेसं भाणियब्वं जाव तथैव सर्वेषां निरवशेषं भणितव्यं यावत् वक्तव्यता वैसे ही सबकी निरवशेष वणस्सइकाइयाणं जाव केवतिया वनस्पतिकायिकानां यावत कियन्तः वक्तव्यता, यावत् वनस्पतिकायिक यावत् वणस्सइकाइया ओगाढा? वनस्पतिकायिकाः अवगाढाः?
कितने वनस्पतिकायिक जीव अवगाढ हैं ? अणता॥ अनन्ताः ।
अनंत।
भाष्य १. सूत्र ८४-८५
समग्र लोक इनसे व्याप्त है। उनकी व्याप्ति का नियम यहां बतलाया प्रस्तुत दो सूत्रों में पांच स्थावर काय की वक्तव्यता है। प्रथम चार गया है। पांच स्थावर काय के जीव दो प्रकार के होते हैं सूक्ष्म और स्थावर काय के जीव असंख्य हैं। वनस्पतिकाय के जीव अनंत हैं। बादर। इस नियम का निर्देश सूक्ष्म स्थावर काय के लिए किया गया है। १६. एयंसि णं भंते! धम्मत्थिकाय- एतस्मिन् भदन्त! धर्मास्तिकाय- ८६. भंते ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय,
अधम्मत्यिकाय - आगासत्थिकार्यसि अधर्मास्तिकाय . आकाशास्तिकाये आकाशास्तिकाय-इनमें कोई जीव रहने, चक्किया केई आसइत्तए वा सइत्तए वा ___ 'चक्किया' कश्चित् आसितुं वा शयितुं सोने, ठहरने, बैठने और करवट बदलने में चिहित्तए वा निसीयत्तए वा तुयट्टित्तए वा स्थातुं वा निषीदितुं वा त्वग्वर्तितुं समर्थ है ? वा?
वा? १. उत्त. ३६/७०,८४,६२,१०८,११७।
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