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भगवई
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श. १३ : उ. ४ : सू.७७-८०
७७. जत्थ णं भंते ! एगे जीवत्थिकाय
पदेसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? एक्को, एवं अधम्मत्थिकायपदेसा वि. एवं आगासस्थिकायपदेसा वि।
यत्र भदन्त! एकः जीवास्तिकायप्रदेशः अवगाढः तत्र कियन्तः धर्मास्तिकायप्रदेशाः अवगाढाः? एकः, एवम् अधर्मास्तिकायप्रदेशाः अपि, एवम् आकाशास्तिकायप्रदेशाः अपि।
७७. भंते ! जहां जीवास्तिकाय का एक प्रदेश
अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ है ? एक, इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेश भी, इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के प्रदेश भी वक्तव्य हैं। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं? अनंत। शेष धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्यता।
केवतिया जीवत्थिकायपदेसा ? अणंता। सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स॥
कियन्तः जीवास्तिकायप्रदेशाः? अनन्ताः। शेषं यथा धर्मास्तिकायस्य।
७८. जत्थ णं भंते ! एगे पोग्गलत्थि
कायपदेसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? एवं जहा जीवत्थिकायपदेसे तहेव निरवसेसं॥
यत्र भदन्त! एकः पुद्गलास्तिकायप्रदेशः ७८. भंते ! जहां पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढः तत्र कियन्तः धर्मास्तिकाय- अवगाढ है, वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशाः अवगाढाः?
प्रदेश अवगाढ हैं? एवं यथा जीवास्तिकायप्रदेशः तथैव इस प्रकार जैसे जीवास्तिकाय के प्रदेश की निरवशेषम्।
वक्तव्यता, वैसे ही निरवशेष वक्तव्यता।
भाष्य १. सूत्र ७४-७८
और आकाशास्तिकाय का एक-एक प्रदेश अवगाढ है। प्रस्तुत आलापक में प्रदेश के अवगाह, अवस्थिति अथवा अधर्मास्तिकाय की वक्तव्यता धर्मास्तिकाय के समान है। व्याप्ति का विषय निरूपित है।
आकाशास्तिकाय के प्रदेश लोक और अलोक-दोनों में धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय अखंड है। उनका प्रत्येक अवस्थित हैं इसलिए धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, प्रदेश लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश में अवस्थित है इसलिए पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय के प्रदेश की अवस्थिति की भजना धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के दूसरे प्रदेश से अवगाढ है। नहीं होता, उसके एक प्रदेश में दूसरा प्रदेश अवस्थित नहीं होता। लोकाकाश में अवस्थान का नियम धर्मास्तिकाय की भांति
जहां धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश है, वहां अधर्मास्तिकाय वक्तव्य है। अलोकाकाश में इन सबकी अवस्थिति नहीं होती।
७६. जत्थ णं भंते ! दो पोग्गलत्थिकाय- यत्र भदन्त! द्वौ पुद्गलास्तिकायप्रदेशौ ७६. भंते ! जहां पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश पदेसा ओगाढा तत्थ केवतिया अवगाढौ तत्र कियन्तः धर्मास्तिकाय- अवगाढ हैं वहां धर्मास्तिकाय के कितने धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? प्रदेशाः अवगाढाः?
प्रदेश अवगाढ हैं? सिय एक्को सिय दोण्णि, एवं । स्यात् एकः, स्याताम् द्वौ, एवम् स्यात् एक, स्यात् दो। इसी प्रकार अधम्मत्थिकायस्स वि, एवं अधर्मास्तिकायस्यापि, . एवम् अधर्मास्तिकाय की भी, इसी प्रकार आगासस्थिकायस्स वि। सेसं जहा आकाशास्तिकायस्यापि। शेषं यथा आकाशास्तिकाय की भी वक्तव्यता। शेष धम्मत्थिकायस्स॥ धर्मास्तिकायस्य।
धर्मास्तिकाय की भांति वक्तव्य है।
१०. जत्थ णं भंते ! तिण्णि पोग्गलत्थि- यत्र भदन्त! त्रयः पुद्गलास्तिकाय- ८०. भंते ! जहां पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश
कायपदेसा ओगाढा तत्थ केवतिया प्रदेशाः अवगाढाः तत्र कियन्तः । अवगाढ हैं, वहां धर्मास्तिकाय के कितने धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? धर्मास्तिकायप्रदेशाः अवगाढाः?
प्रदेश अवगाढ हैं? सिय एक्को, सिय दोण्णि, सिय स्यात् एकः, स्याताम् द्वौ, स्युः त्रयः, स्यात् एक, स्यात् दो, स्यात् तीन। इसी तिण्णि, एवं अधम्मत्थिकायस्स वि, एवं एवम् अधर्मास्तिकायस्यापि, एवम् प्रकार अधर्मास्तिकाय की भी, इसी प्रकार आगासत्थिकायस्स वि। सेसं जहेव आकाशास्तिकायस्यापि। शेषं यथैव आकाशास्तिकाय की भी वक्तव्यता। शेष दोण्हं, एवं एक्केको वड्डियव्वो पदेसो द्वयोः, एवम् एकैकः वर्धितव्यः प्रदेशः की दो प्रदेश की भांति वक्तव्यता। इसी आइल्लएहिं तिहिं अस्थिकाएहिं, सेसेहिं आदिमैः त्रिभिः अस्तिकायैः, शेषैः यथैव प्रकार प्रथम तीन अस्तिकायों में एक एक जहेब दोहं जाव दसण्हं सिय एक्को, द्वयोः यावत् दशानाम् स्यात् एकः, प्रदेश बढाना चाहिए। शेष की दो की भांति सिय दोण्णि, सिय तिण्णि जाव सिय स्याताम् द्वौ, स्युः त्रयः यावत् स्युः दश। वक्तव्यता यावत् दश प्रदेश में स्यात् एक,
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