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________________ १३८ भगवई श. १३ : उ. ४ : सू. ६८-६६ उक्कोसपदे सत्तावीसाए। छ पोग्गल- द्वादशभिः, उत्कर्षपदे सप्तविंशत्या। षड् थिकायस्स पदेसा जहण्णपदे चोद्दसहि, पुद्गलास्तिकायस्य प्रदेशाः जघन्यपदे उक्कोसपदे बत्तीसाए। सत्त पोग्गल- चतुर्दशभिः, उत्कर्षपदे द्वात्रिंशता। थिकायस्स पदेसा जहण्णपदे । सप्त पुद्गलास्तिकायस्य प्रदेशाः सोलसहि, उक्कोसपदे सत्ततीसाए। अट्ठ जघन्यपदे षोडशैः, उत्कर्षपदे पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा जहण्णपदे सप्तत्रिंशता। अष्ट पुद्गलास्तिकायस्य अट्ठारसहिं, उक्कोसपदे बायालीसाए। प्रदेशाः जघन्यपदे अष्टादशभिः, उत्कर्षपदे द्वाचत्वारिंशता। नव पोग्गलस्थिकायस्स पदेसा जहण्ण- नव पुद्गलास्तिकायस्य प्रदेशाः पदे वीसाए, उक्कोसपदे सीयालीसाए। जघन्यपदे विंशत्या, उत्कर्षपदे दस पोग्गलत्थिकायस्स पदेसा सप्तचत्वारिंशता। दश पुद्गलास्तिजहण्णपदे बावीसाए, उक्कोसपदे । कायस्य प्रदेशाः जघन्यपदे द्वाविंशत्या, बावन्नाए। आगासस्थिकायस्स सम्वत्थ उत्कर्षपदे द्विपञ्चाशता। आकाशाउक्कोसगं भाणियब्वं॥ स्तिकायस्य सर्वत्र उत्कर्षकं भणितव्यम्। प्रदेश जघन्य पद में बारह से। उत्कृष्ट पद में सत्ताईस से। पुद्गलास्तिकाय के छह प्रदेश जघन्य पद मे चौदह से, उत्कृष्ट-पद में बत्तीस से। पद्गलास्तिकाय के सात प्रदेश जघन्य-पद में सोलह से, उत्कृष्ट-पद में सैंतीस से। पुद्गलास्तिकाय के आठ प्रदेश, जघन्य-पद में अठारह से, उत्कृष्ट-पद में बयालीस से। पुद्गलास्तिकाय के नौ प्रदेश जघन्य-पद में बीस से, उत्कृष्ट-पद में सैंतालीस में। पुद्गलास्तिकाय के दस प्रदेश जघन्य-पद में बाईस से, उत्कृष्ट-पद में बावन से। आकाशास्तिकाय सर्वत्र उत्कृष्टतः वक्तव्य ६८. संखेज्जा भंते! पोग्गलत्थि- संख्येयाः भदन्त! पुद्गलास्तिकाय- ६८. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के संख्येय प्रदेश कायपदेसा केवतिएहिं धम्मत्थि- प्रदेशाः कियद्भिः धर्मास्तिकायप्रदेशैः धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? कायपदेसेहिं पुट्ठा! स्पृष्टाः? जहण्णपदे तेणेव संखेज्जएणं दुगुणेणं जघन्यपदे तेनैव संख्येयेन द्विगुणेन । जघन्य-पद में उसी संख्येय से। दो अधिक दुरूवाहिएणं, उक्कोसपदे तेणेव । द्विरूपाधिकेन, उत्कर्षपदे तेनैव द्विगुण संख्येय से। उत्कृष्ट-पद मे उसी संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं। संख्येयेन पञ्चगुणेन द्विरूपाधिकेन। संख्येय से दो अधिक पंच गुणित संख्येय से। केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं ? कियद्भिः अधर्मास्तिकायप्रदेशैः स्पृष्टः? कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट एवं चेव। केवतिएहिं आगासत्थिकायपदेसेहिं ? एवं चैतत्। कियद्भिः आकाशास्तिकायप्रदेशः स्पृष्टः? तेनैव संख्येयन पंचगणेन द्विरूपाधिकेन। पूर्ववत्। आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं। केवतिएहिं जीवत्थिकायपदेसेहिं ? कियद्भिः जीवास्तिकायप्रदेशैः स्पृष्टः? उसी संख्येय से दो अधिक पंच गुणित संख्येय से। जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होते हैं? अनंत से। पुदगलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट अणंतेहि। केवतिएहिं पोग्गलत्थिकायपदेसेहिं ? अणंतेहि। केवतिएहिं अद्धासमएहिं ? सिय पुढे, सिय नो पुढे। जइ पुढे नियम अणंतेहिं॥ अनंतैः। कियद्भिः पुद्गलास्तिकायप्रदेशैः स्पृष्टः? अनंतैः। कियद्भिः अद्धासमयैः स्पृष्टः? स्यात् स्पृष्टः स्यात् नो स्पृष्टः। यदि स्पृष्टः नियमम् अनंतैः। अनंत से। कितने अद्धासमय से स्पृष्ट हैं? स्यात् स्पृष्ट है, स्यात् स्पृष्ट नहीं है। यदि स्पृष्ट हैं तो नियमतः अनंत से। ६६. भंते ! पुदगलास्तिकाय के असंख्येय प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं? ६६. असंखेज्जा भंते ! पोग्गलत्थिकाय- असंख्येयाः भदन्त! पुदगलास्ति- पदेसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं कायप्रदेशाः कियद्भिः धर्मास्तिकाय- प्रदेशैः स्पृष्टाः? जहण्णपदे तेणेव असंखेज्जएणं दुगुणेणं । जघन्यपदे तेनैव असंख्येयेन द्विगुणेन दुरूवाहिएणं, उक्कोसपदे तेणेव । द्विरूपाधिकेन, उत्कर्षपदे तेनैव असंखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवा- असंख्येयेन पञ्चगुणेन द्विरूपाधिकेन। जघन्य-पद में उसी असंख्येय से दो अधिक द्विगुणित असंख्येय से, उत्कृष्ट-पद में उसी असंख्येय से दो अधिक पंच गुणित असंख्येय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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