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भगवई
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श. १३ : उ. ४ : सू. ५३-५४
सगडुद्धिसंठिया पण्णत्ता॥
संस्थिता, अलोकं प्रतीत्य 'शकरोद्धि' संस्थिता प्रज्ञप्ता।
लोक की अपेक्षा मुरज संस्थान वाली, अलोक की अपेक्षा शकट-उद्धि संस्थान वाली प्रज्ञप्त है।
५३. अग्गेयी णं भंते ! दिसा किमादीया, आग्नेयी भदन्त! दिशा किमादिका, ५३. भंते! आग्नेयी दिशा का आदि स्रोत क्या किंपवहा, कतिपएसादीया, कतिपएस- किंप्रवहा, कतिप्रदेशादिका, कतिप्रदेश- है? वह कहां से प्रवाहित है? आदि में वित्थिण्णा, कतिपएसिया, किंपज्जव. विस्तोर्णा, कतिप्रदेशिका, किंपर्यवसिता, कितने प्रदेश हैं? कितने प्रदेश का विस्तार सिया, किंसंठिया पण्णत्ता ? किंसंस्थिता प्रज्ञप्ता?
है? उसके कितने प्रदेश हैं? क्या वह
पर्यवसित है? संस्थान क्या है? गोयमा ! अग्गेयी णं दिसा रुयगादीया, गौतम! आग्नेयी दिशा रुचकादिका, गौतम! आग्नेयी दिशा का आदि स्रोत रुयगप्पवहा, एगपएसादीया एगपएस- रुचकप्रवहा, रुचकप्रदेशादिका, एक- रुचक है। वह रुचक से प्रवाहित है। आदि वित्थिण्णा-अणुत्तरा, लोगं पडुच्च प्रदेशविस्तीर्णा-अनुत्तरा, लोकं प्रतीत्य में एक प्रदेश है। एक प्रदेश का विस्तार है। असंखेज्जपएसिया, अलोगं पडुच्च असंख्येयप्रदेशिका, अलोकं प्रतीत्य उसके उत्तरोत्तर प्रदेश की वृद्धि नहीं होती। अणंतपएसिया, लोगं पडुच्च सादीया अनन्तप्रदेशिका, लोकं प्रतीत्य सादिका लोक की अपेक्षा असंख्येय प्रदेश हैं। सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च सादीया सपर्यवसिता, अलोकं प्रतीत्य सादिका अलोक की अपेक्षा अनंत प्रदेश हैं। लोक अपज्जवसिया, छिण्णमुत्तावलिसंठिया अपर्यवसिता, छिन्नमुक्तावलिसंस्थिता की अपेक्षा सादि-सपर्यवसित है। अलोक पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता।
की अपेक्षा सादि-अपर्यवसित है। वह छिन्न
मुक्तावलि संस्थान वाली प्रज्ञप्त है। जमा जहा इंदा, नेरई जहा यमा यथा इन्द्रा, नैर्ऋती यथा आग्नेयी।। याम्या इन्द्रा की भांति नैर्ऋति आग्नेयी की अग्गेयी। एवं जहा इंदा तहा दिसाओ एवं यथा इन्द्रा तथा दिशाः चतस्रः, यथा भांति वक्तव्य है। इस प्रकार इन्द्रा की चत्तारि, जहा अग्गेई तहा चत्तारि आग्नेयी तथा चतसः विदिशाः।
भांति चार दिशाएं वक्तव्य हैं। आग्नेयी की विदिसाओ॥
भांति चार विदिशाएं वक्तव्य हैं।
५४. विमला णं भंते ! दिसा किमादीया, विमला भदन्त! दिशा किमादिका, ५४. भंते ! विमला दिशा का आदि स्रोत क्या किंपवहा, कतिपएसादीया, कतिपएस- किंप्रवहा, कतिप्रदेशादिका, कति- है? वह कहां से प्रवाहित है ? आदि में वित्थिण्णा, कतिपएसिया, किंपज्ज- प्रदेशविस्तीर्णा, कतिप्रदेशिका, कितने प्रदेश हैं ? कितने प्रदेश का विस्तार वसिया, किसंठिया पण्णत्ता? किंपर्यवसिता, किंसंस्थिता प्रज्ञप्ता? है? उसके कितने प्रदेश वाली हैं? क्या
पर्यवसित है ? संस्थान क्या है ? गोयमा ! विमला णं दिसा रुयगादीया, गौतम! विमला दिशा रुचकादिका, गौतम ! विमला दिशा का आदि स्रोत रुचक रुयगप्पवहा, चउप्पएसादीया, दुपएस- रुचकप्रवहा, चतुःप्रदेशादिका, द्विप्रदेश- है। वह रुचक से प्रवाहित है। उसके आदि वित्थिण्णा-अणुत्तरा, लोगं पडुच्च विस्तीर्णा-अनुत्तरा, लोकं प्रतीत्य में प्रदेश चार हैं। दो प्रदेश का विस्तार है। असंखेज्जपएसिया, अलोगं पड़च असंख्येयप्रदेशिका. अलोकं प्रतीत्य
उसके उत्तरोत्तर प्रदेश की वृद्धि नहीं होती अणंतपएसिया, लोगं पडुच्च सादीया। अनन्तप्रदेशिका, लोकं प्रतीत्यं सादिका लोक की अपेक्षा असंख्येय प्रदेश हैं। सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च सादीया सपर्यवसिता, अलोकं प्रतीत्य सादिका अलोक की अपेक्षा अनंत प्रदेश हैं। लोक अपज्जवसिया, रुयगसंठिया पण्णत्ता। अपर्यवसिता, रुचकसंस्थिता प्रज्ञप्ता। की अपेक्षा सादि-सपर्यवसित है। अलोक एवं तमा वि॥ एवं तमा अपि।
की अपेक्षा सादि-अपर्यवसित है। वह रुचक संस्थान वाली प्रज्ञप्त है। इसी प्रकार तमा दिशा की वक्तव्यता।
भाष्य
१. सूत्र ४७-५४
दिशा के विषय में द्रष्टव्य भगवई १०/१-७ का भाष्य।
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