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भगवई
श. १३ : उ. ४ : सू. ४६-५२ ४६. कहि णं भंते! उद्दलोगस्स कुत्र भदन्त! ऊर्ध्वलोकस्य आयाममध्यं आयाममज्झे पण्णत्ते ?
प्रज्ञप्तम्? गोयमा! उप्पिं सणंकुमारमाहिंदाणं गौतम! उपरि सनत्कुमारमाहेन्द्राणां कप्पाणं हेटिं बंभलोए कप्पे रिट्ठविमाणे कल्पानाम् अधः ब्रह्मलोके अरिष्टविमानं पत्थडे, एत्य णं उद्दलोगस्स। प्रस्तृतम्, अत्र ऊर्ध्वलोकस्य आयाममज्झे पण्णत्ते॥
आयाममध्यं प्रज्ञप्तम्।
४६. भंते ! ऊर्ध्वलोक का आयाम-मध्य कहां
प्रज्ञप्त है? गौतम ! सनत्कुमार माहेन्द्रकल्प के ऊपर ब्रह्मलोक कल्प अरिष्ट विमान प्रस्तर के नीचे वहां ऊर्ध्वलोक का आयाम-मध्य प्रज्ञप्त है।
५०. कहि णं भंते ! तिरियलोगस्स कुत्र भदन्त! तिर्यग्लोकस्य आयाममध्यं ५०. भंते ! तिर्यक्लोक का आयाम-मध्य कहां आयाममज्झे पण्णत्ते? प्रज्ञप्तम्?
प्रज्ञप्त है? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स गौतम! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पवर्तस्य गौतम ! जंबूद्वीपद्वीप के मंदर पर्वत के पव्वयस्स बहुमज्झदेसभाए इमीसे बहुमध्यदेशभागे अस्याः रत्नप्रभायाः बहुमध्य देश-भाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेहिल्लेसु पृथिव्याः उपरितनाधस्तनेषु 'खुड्डग' उपरितन और अधस्तन इन दोनों क्षुल्लक खुडगपयरेसु, एत्थ णं तिरियलोग- प्रतरेषु, अत्र तिर्यग्लोकमध्ये प्रतरों में, तिर्यक्लोक का मध्य है वहां आठ मज्झे अट्ठपएसिए रुयए पण्णत्ते, जओ अष्टप्रदेशिक: रुचकः प्रज्ञप्तः, यतः रुचक प्रदेश प्रज्ञप्त हैं, जहां से ये दस दिशाएं णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति, तं इमाः दश दिशाः प्रवहन्ति, तद्यथा- निकलती हैं, जैसेजहा१. पुरत्थिमा २. पुरथिमदाहिणा १. पौरस्त्या २. पौरस्त्य-दक्षिणा १.पूर्व २. पूर्व-दक्षिण ३. दक्षिण ४. दक्षिण३. दाहिणा ४. दाहिणपचत्थिमा ३. दक्षिणा ४. दक्षिण-पाश्चात्या पश्चिम ५. पश्चिम ६. पश्चिम-उत्तर ५. पचत्थिमा ६. पचत्थिमुत्तरा ५. पाश्चात्या ६. पौरस्त्य-उत्तरा ७. उत्तर ८. उत्तर-पूर्व .. ऊर्ध्व १०. अधः। ७. उत्तरा ८. उत्तरपुरस्थिमा ६. उद्दा ७. उत्तरा ८. उत्तर-पौरस्त्या ६. ऊर्ध्वा १०. अहो॥
१०. अधः।।
५१. एयासिणं भंते ! दसण्हं दिसाणं कति
नामधेज्जा पण्णत्ता ? गोयमा ! दस नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहाइंदा अग्गेयी जमा य, नेरई वारुणी य वायव्वा। सोमा ईसाणी या, विमला य तमा य बोद्धब्वा॥१॥
एतासां दशानां दिशानां कति ५१. भंते ! इन दस दिशाओं के कितने नाम नामधेयानि प्रज्ञप्तानि?
प्रज्ञप्त हैं ? गौतम! दश नामधेयानि प्रज्ञप्तानि, गौतम ! दस नाम प्रज्ञप्त हैं जैसेतद्यथा
इन्द्रा आग्नेयी यमा च, इन्द्रा, आग्नेयी, याम्या, नैर्ऋति, वारुणी, नैर्ऋती वारुणी च वायव्या। वायव्या, सोमा, ईशानी, विमला और तमा सोमा ऐशानी च,
ज्ञातव्य है। विमला च तमा च बोद्धन्या॥
५२. इंदा णं भंते दिसा किमादीया, इन्द्रा भदन्त! दिशा किमादिका, किं- ५२. भंते ! इंद्रा दिशा का आदि स्रोत क्या है ? किंपवहा,
कतिपदेसादीया, प्रवहा, कतिप्रदेशादिका, कतिकतिपदेसादीया,
वह कहां से प्रवाहित है? आदि में उसके कतिपदेसुत्तरा, कतिपदेसिया, प्रदेशोत्तरा, कतिप्रदेशिका, कितने प्रदेश हैं? उत्तरोत्तर कितने प्रदेशों किंपज्जवसिया, किंसंठिया पण्णत्ता? किंपर्यवसिता,किंसंस्थिता प्रज्ञप्ता? की वृद्धि होती हैं? उसके कितने प्रदेश हैं?
क्या वह पर्यवसित है? उसका संस्थान क्या
गोयमा! इंदा णं दिसा रुयगादीया, गौतम! इन्द्रा दिशा रुचकादिका, रुयगप्पवहा, दुपएसादीया, दुपएसुत्तरा, रुचकप्रवहा, द्विप्रदेशादिका, लोगं पडुच्च असंखेज्जपएसिया, अलोगं द्विप्रदेशोत्तरा, लोकं प्रतीत्य पडुच्च अणंतपएसिया, लोगं पडुच असंख्येयप्रदेशिका, अलोकं प्रतीत्य सादीया सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च अनन्तप्रदेशिका, लोकं प्रतीत्य सादिका सादीया अपज्जवसिया, लोगं पडुच सपर्यवसिता, अलोकं प्रतीत्य सादिका मुरवसंठिया, अलोगं पडुच अपर्यवसिता, लोकं प्रतीत्य मुरज
गौतम ! इंद्रा दिशा का आदि स्रोत रुचक है। वह रुचक से प्रवाहित है, आदि में दो प्रदेश वाली है, उत्तरोत्तर दो दो प्रदेश की वृद्धि वाली है। लोक की अपेक्षा असंख्येय प्रदेश हैं, अलोक की अपेक्षा अनन्त प्रदेश हैं। लोक की अपेक्षा सादि-सपर्यवसित है। अलोक की अपेक्षा सादि-अपर्यवसित है।
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