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मूल
४०. नेरइया णं भंते! अणंतराहारा, ततो निव्वत्तणया, एवं परियारणापदं निरवसेसं भाणियव्वं ॥
१. सूत्र ४०
४१. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥
तइओ उद्देसो : तीसरा उद्देशक
संस्कृत छाया
नैरयिकाः भदन्त ! अनन्तराहारा, ततः निर्वर्तनं, एवं परिचारणापदं निरवशेषं भणितव्यम् ।
नैरयिक उत्पात क्षेत्र की प्राप्ति के प्रथम समय में ही आहार
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भाष्य
लेते हैं। उसके बाद शरीर की रचना करते हैं। इस विषय में प्रज्ञापना का परिचारणा पद द्रष्टव्य है।
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥
हिन्दी अनुवाद
४०. भंते! नैरयिक अनन्तर आहारक, उसके पश्चात् शरीर की निष्पत्ति, इसी प्रकार परिचारणा- पद (प्रज्ञापना पद ३४ ) निरवशेष वक्तव्य है।
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४१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
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