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________________ भगवई २६. केवितया णं भंते ! वाससयसहस्सा पण्णत्ता ? वाणमंतरा गोयमा ! असंखेज्जा वाणमंतरा वाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा ? असंखेज्जवित्थडा ? गोयमा ! संखेज्जवित्थडा, नो असंखेज्जवित्थडा ॥ १. सूत्र २६ वाणमंतर देवों के आवास संख्येय योजन विस्तार वाले हैं। संग्रह गाथा में उसके तीन प्रकार बतलाए गए हैं ३०. संखेज्जेसु णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सेसु एगसमएणं केवतिया वाणमंतरा उववज्जंति ? एवं जहा असुरकुमाराणं संखेज्जवित्थडे तिणि गमगा तहेव भाणियव्वा वाणमंतराण वि तिण्णि गमगा ॥ ३१. केवतिया णं भंते! जोइसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा जोइसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा ? एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाण वि तिणि गमगा भाणियव्वा नवरंएगा तेउलेस्सा। उबवज्जंतेसु पण्णत्तेसु य असण्णी नत्थि, सेसं तं चैव ॥ १. भ. वृ. १३/२६ : १२१ कियन्ति भदन्त ! शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! असंख्येयानि वानमन्तरावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । तानि भदन्त ! किं संख्येयविस्तृतानि ? असंख्येयविस्तृतानि ? गौतम ! संख्येयविस्तृतानि, नो असंख्येयविस्तृतानि । भाष्य २. (क) पण्ण. १७ / ५३ । Jain Education International वानमन्तरावास संख्येयेषु भदन्त ! वानमन्तरावासशतसहस्रेषु एकसमये वानमन्तराः उपपद्यन्ते ? कियन्तः जंबूद्दीवसमा खलु उक्कोसेणं हवंति ते नगरा । खुड्डा खेत्तसमा खलु विदेह समगा उ मज्झिमगा ।। उत्कृष्ट आवास जंबूद्वीप के समान । जघन्य आवास खेत के समान । मध्यम आवास विदेह के समान । ' एवं यथा असुरकुमाराणां संख्येयविस्तृतेषु त्रयः गमकाः तथैव भणितव्याः वानमन्तराणाम् अपि त्रयः गमकाः । १. सूत्र ३१ वाणमंतर देवों में चार लेश्याएं बतलाई गई हैं। ज्योतिष्क देवों में केवल एक तेजोलेश्या होती है।' वाणमंतर देवों में असंज्ञी उत्पन्न ३२. सोहम्मे णं भंते! कप्पे केवतिया सौधर्मे भदन्त ! कल्पे कियन्ति विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? विमानावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? गोयमा ! बत्तीसं विमाणावासगौतम ! द्वात्रिंशत् विमानावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । सयसहस्सा पण्णत्ता । कियन्ति भदन्त ! ज्योतिष्कविमानावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! असंख्येयानि ज्योतिष्कविमानावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । तानि भदन्त ! किं संख्येयविस्तृतानि ? एवं यथा वनमन्तराणां तथा ज्योतिष्काणाम् अपि त्रयः गमकाः भणितव्याः, नवरम् - एका तेजोलेश्या । उपपद्यमानेषु प्रज्ञप्तेषु च असंज्ञी नास्ति, शेषं तच्चैव । श. १३ : उ. २ : सू. २६-३२ २६. भंते! वाणमंतरों के आवास कितने लाख प्रज्ञप्त हैं? गौतम! वाणमंतरों के असंख्येय लाख आवास प्रज्ञप्त हैं। भंते! क्या वे संख्येय - विस्तृत हैं? असंख्येय- विस्तृत हैं? गौतम! संख्येय- विस्तृत हैं। असंख्येयविस्तृत नहीं हैं। ३०. भंते! वाणमंतरों के संख्येय लाख आवासों में एक समय में कितने वाणमंतर उपपन्न होते हैं ? For Private & Personal Use Only इस प्रकार जैसे संख्येय- विस्तृत असुरकुमारों के तीन गमक वक्तव्य हैं वैसे ही वाणमंतरों के तीन गमक वक्तव्य हैं। ३१. भंते! ज्योतिष्क देवों के कितने लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं ? गौतम! असंख्येय लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं। भाष्य होते हैं। ज्योतिष्क देवों में वे उत्पन्न नहीं होते इसलिए उनकी सत्ता भी नहीं होती। भंते! क्या वे संख्येय- विस्तृत हैं? इस प्रकार वाणमंतरों की भांति ज्योतिष्क देवों के तीनों गमक वक्तव्य हैं, इतना विशेष है- केवल एक तेजोलेश्या होती है। असंज्ञी का उपपात और सत्ता नहीं होती, शेष पूर्ववत् । ३२. भंते! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं? गौतम! बत्तीस लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं। (ख) भ. वृ. १३/३१ - व्यंतरेषु लेश्याचतुष्टयमुक्तमेतेषु तु तेजोलेश्यैवैका वाच्या । ३. भ. वृ. १३/३१ - व्यन्तरेष्वसंज्ञिनः उत्पद्यन्त इत्युक्तमिह तु तन्निषेधः, प्रज्ञप्तेष्वपीह तन्निषेध उत्पादाभावादिति । www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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