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________________ बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद २४. कतिविहा णं भंते ! देवा पण्णत्ता? कतिविधाः भदन्तः! देवाः प्रज्ञप्ताः? गोयमा! चउबिहा देवा पण्णत्ता, तं गौतम! चतुर्विधाः देवाः प्रज्ञप्ताः, जहा-भवणवासी, वाणमंतरा, तद्यथा-भवनवासिनः, वानमन्तराः, जोइसिया, वेमाणिया॥ ज्योतिष्काः, वैमानिकाः। २४. भंते! देव के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं? गौतम! देव के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-भवनवासी, वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक। २५. भंते! भवनवासी देव के कितने प्रकार प्रज्ञप्त २५. भवणवासी णं भंते! देवा कतिविहा भवनवासिनः भदन्त! देवाः कतिविधाः पण्णत्ता? प्रज्ञप्ताः? गोयमा! दसविहा पण्णत्ता, तं जहा- गौतम! दशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाअसुरकुमारा-एवं भेओ जहा। असुरकुमारा:-एवं भेदः यथा द्वितीयशते बितियसए देवुद्देसए जाव अपराजिया, देवोद्देशके यावत् अपराजिताः, सव्वट्ठसिद्धगा॥ सर्वार्थसिद्धकाः। गौतम! दस प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे असुरकुमार-इसी प्रकार भेद द्वितीय शतक के देव उद्देशक (२/११७) की भांति यावत् अपराजित, सर्वार्थसिद्धक। २६. केवतिया णं भंते! असुरकुमारा- कियन्ति भदन्त! असुरकुमारावास- २६. भंते! असुरकुमारों के कितने लाख आवास वाससयसहस्सा पण्णत्ता? शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि? प्रज्ञप्त हैं। गोयमा! चोयटिं असुरकुमारावास- गौतम! चतुष्षष्टिः असुरकुमारावास- गौतम! असुरकुमारों के आवास चौसठ लाख सयसहस्सा पण्णत्ता। शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि। प्रज्ञप्त हैं। ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा ? तानि भदन्त ! किं संख्येयविस्तृतानि? भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय असंखेज्जवित्थडा? असंख्येयविस्तृतानि? विस्तृत हैं? गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, गौतम! संख्येयविस्तृतानि अपि, गौतम! संख्येय-विस्तृत भी हैं, असंख्येय असंखेज्जवित्थडा वि॥ असंख्येयविस्तृतानि अपि। विस्तृत भी हैं। भाष्य १. सूत्र २६ असुरकुमार के चौसठ लाख आवास, द्रष्टव्य भगवती १/ २१२-२१५ का भाष्य। सबसे छोटे भवन जंबूद्वीप के समान हैं। मध्यम भवन संख्येय योजन विस्तार वाले हैं। उत्कृष्ट भवन असंख्येय योजन विस्तार वाले हैं।' २७. चोयट्ठीए णं भंते! असरकुमारा- चतुष्षष्टौ भदन्त! असुरकुमारावास- बाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु शतसहस्रेषु संख्येयविस्तृतेषु असुरकुमारावासेसु एगसमएणं केवतिया असुरकुमारावासेषु एकसमये कियन्तः । असुरकुमारा उबवज्जति जाव केवतिया असुरकुमाराः उपपद्यन्ते यावत् कियन्तः तेउलेस्सा उववज्जति ? केवतिया तेजोलेश्याः उपपद्यन्ते? कियन्तः कण्हपक्खिया उववज्जति ? कृष्णपाक्षिकाः उपपद्यन्ते? एवं जहा स्यणप्पभाए तहेव पुच्छा, एवं यथा रत्नप्रभायां तथैव पृच्छा। तथैव १. भ. वृ. प. १३/२६-इह गाथा-जंबुद्दीवसमा खलु भवणा, जे हुंति सव्व खुड्डागा। संखेज्ज वित्थड़ा मज्झिमा उ, सेसा असंखेज्जा। २७. भंते! असुरकुमार के चौसठ लाख आवासों में से संख्येय-विस्तृत असुरकुमारों के आवासों में एक समय में कितने असुरकुमार उपपन्न होते हैं? यावत् कितने तेजोलेश्या वाले उपपन्न होते हैं? कितने कृष्ण पाक्षिक उपपन्न होते हैं? इस प्रकार रत्नप्रभा की भांति वही पृच्छा और वही व्याकरण, For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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