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भगवई
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श. १३ : उ. १: सू.
भाष्य
१. सूत्र ६
तीन गमक-उत्पत्ति, उद्वर्तना और सत्ता-ये तीन गमक हैं।
अवधिज्ञान और अवधिदर्शन के साथ उद्वर्तना करने वाले जीव बहुत थोड़े होते हैं इसलिए उन्हें संख्येय कहा गया है।
७. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए केवतिया शर्कराप्रभायां भदन्त! पृथिव्यां कियन्ति ७. भंते! शर्कराप्रभा पृथ्वी के कितने लाख निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता? निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि? नरकावास प्रज्ञप्त हैं? गोयमा! पणुवीस निरयावाससयसहस्सा गौतम! पञ्चविंशतिः निरयावासशत- 'गौतम! पच्चीस लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। पण्णत्ता।
सहस्राणि प्रज्ञप्तानि। ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा? ते भदन्त! किं संख्येयविस्तृताः? भंते! क्या वे संख्येय-विस्तृत हैं? असंख्येय असंखेज्जवित्थडा ? ' असंख्येयविस्तृताः?
विस्तृत हैं? एवं . जहा रयणपभाए तहा एवं यथा रत्नप्रभायां तथा शर्कराप्रभायां । इस प्रकार जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी की वैसे ही सक्करप्पभाए वि, नवरं-असण्णी तिसु अपि, नवरम्-असंज्ञी त्रिषु अपि गमकेषु शर्कराप्रभा पृथ्वी की वक्तव्यता, इतना वि गमएसु न भण्णति, सेसं तं चेव॥ नभण्यते, शेषं तच्चैव।
विशेष है-असंज्ञी के तीनों गमक वक्तव्य नहीं हैं, शेष पूर्ववत्।
८. वालुयप्पभाए णं-पुच्छा।
गोयमा ! पन्नरस निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, सेसं जहा सक्करप्पभाए, नाणतं लेसासु, लेसाओ जहा पढमसए॥
वालुकाप्रभायां-पृच्छा। गौतम! पञ्चदश निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि, शेषं यथा शर्कराप्रभायाम्, नानात्वं लेश्यासु, लेश्याः यथा प्रथमशते।
८. वालुकाप्रभा की पृच्छा। गौतम! पंद्रह लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। शेष शर्कराप्रभा की भांति वक्तव्य है, लेश्या में नानात्य है। लेश्या प्रथम शतक (१/२४४) की भांति वक्तव्य है।
६. पंकप्पभाए णं-पुच्छा।
पंकप्रभायां-पृच्छा। गोयमा! दस निरयावाससयसहस्सा गौतम! दश निरयावासशतसहस्राणि पण्णत्ता, एवं जहा सक्करप्पभाए, प्रज्ञप्तानि, एवं यथा शर्कराप्रभायाम, नवरं-ओहिनाणी ओहिंदसणी य न नवरम-अवधिज्ञानिनः अवधिदर्शिनः च उब्वटुंति, सेमं तं चेव॥
न उद्वर्तन्ते, शेषं तच्चैव।
६.पंकप्रभा की पृच्छा। गौतम! दस लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार शर्कराप्रभा की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी उदवर्तन नहीं करते। शेष पूर्ववत्।
१०. धूमप्पभाए णं-पुच्छा।
गोयमा! तिण्णि निरयावाससयसहस्सा, एवं जहा पंकप्पभाए॥
धूमप्रभायां-पृच्छा। गौतम! त्रीणि निरयावासशतसहस्राणि, एवं यथा पंकप्रभायाम्।
१०. धूमप्रभा की पृच्छा। गौतम! तीन लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार पंकप्रभा की भांति वक्तव्यता।
११. तमाए णं भंते ! पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे पंचूणे निरयावाससय- सहस्से पण्णत्ते। सेसं जहा पंकप्पभाए॥
तमायां भदन्त! पृथिव्यां कियन्ति ११. भंते! तमा पृथ्वी के कितने लाख निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि? नरकावास प्रज्ञप्त हैं? गौतम! एकं पञ्चोनं निरयावास- गौतम! पांच कम एक लाख (निन्यानवें शतसहस्रं प्रज्ञप्तम्। शेषं यथा हजार नौ सौ पिचानवें) नरकावास प्रज्ञप्त पंकप्रभायाम्।
हैं। शेष पंकप्रभा की भांति वक्तव्यता।
१२. अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए कति · अधःसप्तम्यां भदन्त! पृथिव्यां कति
अणुत्तरा महतिमहालया महानिरया अनुत्तराः महामहान्तः महानिरयाः पण्णत्ता?
प्रज्ञप्ताः ? ..
१२. भंते! अधःसप्तमी पृथ्वी के कितने अनुत्तर,
विशालतम महानरक प्रज्ञप्त हैं?
१. भ. वृ. १३/६-उववज्जंति, उव्यदृति पन्नत्तत्ति एते त्रयो गमाः।
२. वही, १३/६-ते हि तीर्थकरादय एव भवन्ति, ते च स्तोकाः स्तोकत्याच
संख्याता एवेति।
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