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भगवई
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श. १३ : उ.१ : सू. ५
भाष्य
१. सूत्र ४
उद्वर्तना का अर्थ है नरक से निर्गमन होना। वृत्तिकार के अनुसार यह पर-भव के प्रथम समय में होती है। नारक जीव असंज्ञी
में उत्पन्न नहीं होते इसलिए रत्नप्रभा से असंज्ञी की उद्वर्तना का निषेध किया गया है।
संखेज्जवित्थडेस नरएम सत्ता-पदं संख्येयविस्तृतेषु नरकेषु सत्ता-पदम् संख्येय-विस्तृत नरकों में सत्ता पद ५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए अस्यां भदन्त! रत्नप्रभायां पृथिव्यां ५. भंते! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख
तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्ज- विंशति निरयावासशतसहस्रेषु संख्येय- नरकावासों में से संख्येय विस्तृत नरकों में वित्थडेसु नरएसु केवतिया नेरइया विस्तृतेषु नरकेषु कियन्तः नैरयिकाः कितने नैरयिक प्रज्ञप्त हैं? कितने कापोत पण्णत्ता? केवतिया काउलेस्सा जाव प्रज्ञप्ताः? कियन्तः कापोतलेश्याः यावत् लेश्या वाले यावत् कितने अनाकार उपयोग केवतिया अणागारोवउत्ता पण्णत्ता? कियन्तः अनाकारोपयुक्ताः प्रज्ञप्ताः? वाले प्रज्ञप्त है ? कितने अनन्तर उपपन्नककेवतिया अणंतरोववण्णगा पण्णत्ता? कियन्तः अनन्तरोपपन्नकाः प्रज्ञप्ताः? । प्रथम समय में उपपन्न होने वाले प्रज्ञप्त हैं ? केवतिया परंपरोववण्णगा पण्णत्ता? कियन्तः परम्परोपपन्नकाः प्रज्ञप्ताः? कितने परंपर-उपपन्नक-द्वितीय आदि समय केवतिया अणंतरोवगाढा पण्णत्ता? कियन्तः अनन्तरावगाढाः प्रज्ञप्ताः? में उपपन्न होने वाले प्रज्ञप्त हैं? कितने केवतिया परंपरोवगाढा पण्णत्ता? । कियन्तः परम्परावगाढाः प्रज्ञप्ताः? अनंतर अवगाढ-अवगाहन करने वाले प्रज्ञप्त केवतिया अणंतराहारा पण्णत्ता? कियन्तः अनन्तराहाराः प्रज्ञप्ताः? हैं? कितने परंपर अवगाढ प्रज्ञप्त हैं? कितने केवतिया परंपराहारा पण्णत्ता ? कियन्तः परम्पराहाराः प्रज्ञप्ताः? अनंतर-आहार वाले प्रज्ञप्त हैं? कितने केवतिया अणंतरपज्जत्ता पण्णत्ता? कियन्तः अनन्तरपर्याप्ताः प्रज्ञप्ताः? परंपर-आहार वाले प्रज्ञप्त हैं? कितने केवतिया परंपरपज्जत्ता पण्णत्ता? कियन्तः परम्परपर्याप्ताः प्रज्ञप्ताः? अनंतर-पर्याप्तक प्रज्ञप्त हैं? कितने परंपरकेवतिया चरिमा पण्णत्ता ? केवतिया । कियन्तः चरमाःप्रज्ञप्ताः? कियन्तः पर्याप्तक प्रज्ञप्त हैं? कितने चरम भव वाले अचरिमा पण्णत्ता? अचरमाः प्रज्ञप्ता:?
प्रज्ञप्त हैं? कितने अचरम भव वाले प्रज्ञप्त
गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए गौतम! अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्ज- विंशति निरयावासशतसहस्रेषु संख्येय- नरकावासों में से संख्येय-विस्तृत नरकों में वित्थडेसु नरएसु संखेज्जा नेरझ्या विस्तृतेषु नरकेषु संख्येयाः नैरयिकाः संख्येय नैरयिक प्रज्ञप्त हैं, संख्येय कापोत पण्णत्ता, संखेज्जा काउलेस्सा पण्णत्ता, प्रज्ञप्ताः, संख्येयाः कापोतलेश्याः लेश्या वाले प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार यावत् एवं जाव संखेज्जा सण्णी पण्णत्ता। प्रज्ञप्ताः, एवं यावत् संख्येयाः संज्ञिनः संख्येय संज्ञी प्रज्ञप्त हैं। असंज्ञी स्यात् है, असण्णी सिय अत्थि, सिय नत्थि। जइ प्रज्ञप्ताः। असंज्ञी स्यात् अस्ति, स्यात् स्यात् नहीं है। यदि है तो जघन्यतः एक, दो अस्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि नास्ति। यदि अस्ति जघन्येन एकः वा द्वौ अथवा तीन उत्कृष्टतः संख्येय प्रज्ञप्त हैं। वा, उक्कोसेणं संखेज्जा पण्णत्ता। वा त्रयः वा, उत्कर्षेण संख्येयाः प्रज्ञप्ताः । संख्येय भविसिद्धिक प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार संखेज्जा भवसिद्धिया पण्णत्ता। एवं संख्येयाः भवसिद्धिकाः प्रज्ञप्ताः। एवं यावत् संख्येय परिग्रह-संज्ञा-उपयुक्त प्रज्ञप्त जाब संखेज्जा परिग्गहसण्णोबउत्ता यावत् संख्येयाः परिग्रहसंज्ञोपयुक्ताः हैं। स्त्रीवेदक नहीं हैं, पुरुषवेदक नहीं हैं, पण्णत्ता। इत्थिवेदगा नत्थि, पुरिसवेदगा प्रज्ञप्ताः। स्त्रीवेदकाः न सन्ति, संख्येय नपुंसकवेदक प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार नत्थि, संखेज्जा नपुंसगवेदगा पण्णत्ता। पुरुषवेदकाः न सन्ति, संख्येयाः क्रोध कषाय वाले, मान कषाय वाले असंज्ञी एवं कोहकसाई वि, माणकसाई जहा नपुंसकवेदकाः प्रज्ञप्ताः। एवं क्रोधकषायी की भांति प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार यावत् लोभ असण्णी, एवं जाव लोभकसाई। अपि, मानकषायी यथा असंज्ञी, एवं कषाय वाले। संख्येय श्रोत्रेन्द्रिय उपयुक्त संखेज्जा सोइंदियोवउत्ता पण्णत्ता, एवं यावत् लोभकषायी। संख्येयाः प्रज्ञप्त हैं, इसी प्रकार यावत् स्पर्शनेन्द्रियजाव फासिदियोवउत्ता। नोइंदियोवउत्ता श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्ताः प्रज्ञप्ताः, एवं यावत् उपयुक्त प्रज्ञप्त हैं। नोइंद्रिय उपयुक्त जहा असण्णी। संखेज्जा मणजोगी स्पशन्द्रियोपयुक्ताः। नोइन्द्रियोपयुक्ताः असंज्ञी की भांति प्रज्ञप्त हैं। संख्येय मन पण्णत्ता। एवं जाव अणागारोवउत्ता। यथा असंज्ञी। संख्येया: मनोयोगिनः योग वाले प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार यावत् अणंतरोवण्णगा सिय अस्थि, सिय प्रज्ञप्ताः। एवं यावत् अनाकारोपयुक्ताः । अनाकार उपयोग वाले प्रज्ञप्त हैं। अनंतरनत्थि। जइ अस्थि जहा असण्णी।। अनन्तरोपपन्नकाः स्यात् अस्ति स्यात् उपपन्नक स्यात् हैं, स्यात् नहीं हैं। यदि हैं
संखेज्जा परंपरोववण्णगा पण्णत्ता। एवं नास्ति। यदि अस्ति यथा असंज्ञी। तो असंज्ञी की भांति प्रज्ञप्त हैं। संख्येय १. भ. वृ. १३/४-उद्वर्तना हि परभवप्रथमसमये स्यात् न च नारका असज्ञिषूत्पद्यन्तेऽतस्तेऽसज्ञिनः सन्तो नोद्वर्तन्त इत्युच्यते।
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