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________________ भगवई श. १२ : उ. १० : सू. २२४,२२५ १०२ अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति । अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च। य। से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चइ- चउपएसिए खंधे सिय आया सिय नोआया सिय अवत्तव्वं-निक्खेवे ते चेव भंगा उच्चारेयब्वा जाव आयाति य नोआयाति य॥ तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेचतुष्प्रदेशिक: स्कन्धः स्यात् आत्मा स्यात् नो आत्मा स्यात् अवक्तव्यंनिक्षेपे ते चैव भनाः उच्चारयितव्याः यावत् आत्मा इति च नो आत्मा इति च। है इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा हैं, नो आत्मा है और अवक्तव्य-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-चतुष्प्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा है, स्यात् नो आत्मा है, स्यात् अवक्तव्य है-निक्षेप में वे ही भंग उच्चारणीय हैं यावत् आत्मा और नो आत्मा-दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २२४. आया भंते ! पंचपएसिए खंधे ? आत्मा भदन्त! पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः? अण्णे पंचपएसिए खंधे ? अन्य पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः? गोयमा! पंचपएसिए खंधे गौतम! पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः१. सिय आया १. स्यात् आत्मा २. सिय नोआया २. स्यात् नो आत्मा ३. सिय अवत्तब्वं- आयाति य नो- ३. स्यात् अवक्तव्यम्-आत्मा इति च आयाति य नो आत्मा इति च ४-७. सिय आया य नोआया य ४-७. स्यात् आत्मा च नो आत्मा च ८-११. सिय आया य अवत्तब्वं ८-११. स्यात् आत्मा च अवक्तव्यम् १२-१५. नोआया य अवत्तव्वेण य १२-१५. नो आत्मा च अवक्तव्येन च १६. सिय आया य नोआया य १६. स्यात् आत्मा च नो आत्मा च अवत्तव्वं अवक्तव्यम् १७. सिय आया य नोआया य १७. स्यात् आत्मा च नो आत्मा च अवत्तव्वाई अवक्तव्यानि १८. सिय आया य नोआयाओ य १८. स्यात् आत्मा च नो आत्मानः च अवत्तव्वं अवक्तव्यम् १६. सिय आया य नोआयाओ य १६. स्यात् आत्मा च नो आत्मानः च अवत्तम्बाई अवक्तव्यानि २०. सिय आयाओ य नोआया य २०. स्यात् आत्मानः च नो आत्मा च अवत्तव्वं अवक्तव्यम् २१. सिय आयाओ य नोआया य २१. स्यात् आत्मानः च नो आत्मा च अवत्तन्वाई अवक्तव्यानि २२. सिय आयाओ य नोआयाओ य २२. स्यात् आत्मानः च नो आत्मानः च अवत्तब्ब॥ अवक्तव्यम्। २२४. भंते! पांच-प्रदेशी स्कंध आत्मा है? पांच प्रदेशी स्कंध से भिन्न कोई आत्मा है? गौतम! पांच प्रदेशी स्कंध१. स्यात् आत्मा है। २. स्यात् नो आत्मा है। ३. स्यात् अवक्तव्य-आत्मा और नो आत्मा-दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४-७. स्यात् आत्मा है और नो आत्मा है। ८-११. स्यात् आत्मा है और अवक्तव्य है। १२-१५. नो आत्मा है और अवक्तव्य है। १६. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य है। १७. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य हैं। १८. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा हैं और अवक्तव्य है। १६.स्यात् आत्मा है, नो आत्मा हैं और अवक्तव्य हैं। २०. स्यात् आत्मा हैं, नो आत्मा है और अवक्तव्य है। २१. स्यात् आत्मा हैं, नो आत्मा है और अवक्तव्य हैं। २२. स्यात् आत्मा हैं, नो आत्मा हैं और अवक्तव्य है। २२५. से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- पंचपएसिए खंधे सिय आया जाव सिय पञ्चप्रदेशिक: स्कन्धः स्यात् आत्मा आयाओ य नोआयाओ य अवत्तव्वं? यावत् स्यात् आत्मानः च नो आत्मानः च अवक्तव्यम्? गोयमा ! १. अप्पणो आदिढे आया। गौतम! १. आत्मनः आदिष्टः आत्मा। २. परस्स आदिढे नोआया २. परस्य आदिष्टः नो आत्मा ३. तदभुयस्स आदिढे अवत्तव्यं ३. तदुभयस्य आदिष्टः अवक्तव्यम् २२५. भंते! किस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-पांच-प्रदेशी स्कंध स्यात् आत्मा है यावत् स्यात् आत्मा हैं, नो आत्मा हैं और अवक्तव्य है? गौतम! १. स्व पर्याय की अपेक्षा आत्मा है। २. पर पर्याय की अपेक्षा नो आत्मा है। ३. तदुभय पर्याय की अपेक्षा अवक्तव्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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