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________________ श. १२ : उ. १० : सू. २२२,२२३ १०० १३. देसे आदिद्वे सब्भावपज्जवे देसे १३. देशः आदिष्ट: सदभावपर्यवः देशः आदिढे असम्भावपज्जवे देसे आदिष्टः असद्भावपर्यवः देशः आदिढे तदुभयपज्जवे तिपएसिए आदिष्टः तदुभयपर्यवः त्रिप्रदेशिकः खंधे आया य नोआया य स्कन्धः आत्मा च नो आत्मा च अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च। भगवई अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १३. त्रिप्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय पर्याय के रूप में आदिष्ट है इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा, नो आत्मा और अवक्तव्य हैआत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-त्रिप्रदेशिक स्कंध स्यात् आत्मा है पूर्ववत् यावत् (आत्मा) नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। य। से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुचइ- तिपएसिए खंधे सिय आया तं चेव जाव नोआयाति य॥ तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेत्रिप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा तच्चैव यावत् नो आत्मा इति च। २२२. आया भंते ! चउप्पएसिए खंघे? अण्णे चउप्पएसिए खंधे ? गोयमा! चउप्पएसिए खंधे१. सिय आया २. सिय नोआया सिय अवत्तव्वं- आयाति य नोआयाति य आत्मा भदन्त! चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः? अन्यः चतुष्प्रदेशिक: स्कन्धः? गौतम! चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः१. स्यात् आत्मा २. स्यात् नो आत्मा ३. स्यात् अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च ४-७. सिय आया य नोआया य ४-७. स्यात् आत्मा च नो आत्मा च ८-११. सिय आया य अवत्तव्वं ८-११. स्यात् आत्मा च अवक्तव्यम् १२-१५. सिय नोआया य अवत्तव्वं १२-१५. स्यात् नो आत्मा च अवक्तव्यम् १६. सिय आया य नोआया य १६. स्यात् आत्मा च नो आत्मा च अवत्तब्वं- आयाति य नोआयति अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च १७. सिय आया य नोआया य १७. स्यात् आत्मा च नो आत्मा च अवत्तव्वाई-आयाओ अवक्तव्यानि-आत्मानः च नो नोआयाओ य आत्मानः च १८. सिय आया य नोआयाओ य १८. स्यात् आत्मा च नो आत्मानः च अवत्त-आयाति य नोआयाति अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च १६. सिय आयाओ य नोआया य १६. स्यात् आत्मानः च नो आत्मा च अवत्तवं-आयाति य नोआयाति अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा य॥ इति च। २२२. भंते ! चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा है? चतुष्प्रदेशी स्कंध से भिन्न कोई आत्मा है ? गौतम! चतुष्प्रदेशी स्कंध१. स्यात् आत्मा है। २. स्यात् नो आत्मा है। ३. स्यात् अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४-७. स्यात् आत्मा है और नो आत्मा है। ८-११. स्यात् आत्मा और अवक्तव्य है। १२-१५. स्यात् नो आत्मा है और अवक्तव्य है। १६. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १७. स्यात् आत्मा, नो आत्मा और अवक्तव्य हैं-आत्मा और नो आत्मादोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १८. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा हैं और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १६. स्यात् आत्मा हैं, नो आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २२३. से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- चउप्पएसिए खंधे सिय आया य चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा च नोआया य अवत्तव्यं-तं चेव अढे ___ नो आत्मा च अवक्तव्यं तच्चैव अर्थे पडिउच्चारेयब्बं? प्रत्युचारयितव्यम्? २२३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-चतुष्प्रदेशिक स्कंध स्यात् आत्मा, नो आत्मा और अवक्तव्य-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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