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________________ ६७ श. १२ : उ. १० : सू. २१६,२२० भगवई ४. सिय आया य नोआया य ५. सिय आया य अवत्तव्वं-आयाति - य नोआयाति य ४. स्यात् आत्मा च नो आत्मा च ५. स्यात् आत्मा च अवक्तव्यम्आत्मा इति च नो आत्मा इति च ४. स्यात् आत्मा और नो आत्मा है ५. स्यात् आत्मा और अवक्तव्य-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ६. स्यात् नो आत्मा और अवक्तव्यआत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ६. सिय नोआया य अवत्तव्वं आयाति य नोआयाति य॥ ६. स्यात् नो आत्मा च अवक्तव्यम्आत्मा इति च नो आत्मा इति च। २१६. से केणटेणं भंते ! एवं तं चेव जाव नोआया य अवत्तवं- आयाति य नोआयाति य? तत् केनार्थेन भदन्त! एवं तच्चैव यावत् नो आत्मा च अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च? . गोयमा ! १. अण्पणो आदिढे आया गौतम! १. आत्मनः आदिष्टः आत्मा २. परस्स आदिढे नोआया २. परस्य आदिष्ट: नो आत्मा ३. तभयस्स आदिढे अवत्तव्यं ३. तदुभयस्य आदिष्ट: अवक्तव्यं दुपएसिए खंधे-आयाति य नो- द्विप्रदेशिकः स्कन्धः-आत्मा इति च नो आयाति य आत्मा इति च ४. देसे आदितु सम्भावपज्जवे देसे ४. देशः आदिष्ट: सदभावपर्यवः देश: आदिढे असन्भावपज्जवे आदिष्टः असद्भावपर्यवः द्विप्रदेशिक: दुप्पएसिए खंधे आया य नोआया स्कन्धः आत्मा च नो आत्मा च २१६. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-इसी प्रकार पूर्ववत् यावत् नो आत्मा और अवक्तव्य-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है? गौतम ! १. स्वपर्याय की अपेक्षा आत्मा है २. परपर्याय की अपेक्षा से नो आत्मा है ३. दोनों की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कंध अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४. द्विप्रदेशी स्कंध का देश सद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इस प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा भी है, नो आत्मा भी देसे आदिढे सम्भावपज्जवे देसे ५. देशः आदिष्टः सदभावपर्यवः देश: आदितु तदुभयपज्जवे दुपएसिए आदिष्टः तदुभयपर्यवः द्विप्रदेशिकः खंधे आया य अवत्तव्वं-आयाति स्कन्धः आत्मा च अवक्तव्यम्-आत्मा य नोआयाति य इति च नो आत्मा इति च। ६. देसे आदिढे असन्भावपज्जवे देसे आदिढे तदुभयपज्जवे दुपएसिए खंधे नोआया य अवत्तव्वंआयाति य नोआयाति य। ६. देशः आदिष्ट: असद्भावपर्यवः देशः आदिष्टः तदुभयपर्यवः द्विप्रदेशिक: स्कन्धः नो आत्मा च अवक्तव्यम्आत्मा इति च नो आत्मा इति च। ५. उसका देश सद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है और उसका देश तदुभय पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इस प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ६. उसका देश असद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय पर्याय के रूप में आदिष्ट है इसलिए द्विप्रदेशी स्कंध नो आत्मा और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है। यावत् नो आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। से तेणटेणं तं चेव जाव नोआया य अवत्तब्वं-आयाति य नोआयाति य॥ तत् तेनार्थेन तच्चैव यावत् नो आत्मा च अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च। २२०. आया भंते! तिपएसिए खंधे? अण्णे तिपएसिए खंधे ? गोयमा! तिपएसिए खंधे १. सिय आत्मा भदन्त! त्रिप्रदेशिक: स्कन्धः? अन्यः त्रिप्रदेशिक: स्कन्धः? गौतम! त्रिप्रदेशिक: स्कन्धः १. स्यात् आत्मा २. स्यात् नो आत्मा २२०. भंते ! त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा है? त्रिप्रदेशिक स्कंध से भिन्न कोई आत्मा है ? गौतम ! त्रिप्रदेशिक स्कंध १. स्यात् आत्मा आया २. सिय नोआया २. स्यात् आत्मा है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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