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श. १२ : उ. १० : सू. २०६-२०६
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भगवई
भाष्य
१. सूत्र २०५
चरित्र आत्मा सबसे अल्प है। वृत्तिकार के अनुसार चरित्र आत्मा संख्येय है।' जयाचार्य ने इसका विशद विवेचन किया है। चरित्र आत्मा का अर्थ सर्व विरति विवक्षित है। उसकी अपेक्षा से चरित्र आत्मा को संख्येय कहा गया है। ज्ञानात्मा चरित्रात्मा से अनंत गुण अधिक है।
सिद्ध और सम्यग् दृष्टि अनंत हैं। इस अपेक्षा से ज्ञानात्मा को चारित्रात्मा से अनंत गुण अधिक बतलाया गया है।
कषाय आत्मा ज्ञानात्मा से अनंत गुण अधिक है। कषायोदय
वाले जीव सिद्धों से अनंत गुण अधिक हैं।
योग आत्मा कषाय आत्मा से विशेषाधिक है। अकषाय जीव योगवान् होते हैं।
वीर्य आत्मा योग आत्मा से विशेषाधिक है। अयोगवान् जीवों के वीर्य आत्मा होती है। उपयोग, द्रव्य और दर्शन आत्मा सब जीवों में समान रूप से होती हैं इसलिए परस्पर तुल्य हैं। वीर्य आत्मा और सिद्ध-इन दोनों का योग होने पर तीनों आत्माएं वीर्य आत्मा से विशेषाधिक हो जाती हैं।
नाणदंसणाणं अत्तणा भेदाभेद-पदं २०६. आया भंते ! नाणे ? अण्णे नाणे?
ज्ञानदर्शनयोःआत्मनो-भेदाभेद-पदम आत्मा भदन्त! ज्ञानम् ? अन्यत् ज्ञानम्?
ज्ञान-दर्शन का आत्मा के साथ भेदाभेद पद २०६. भंते ! आत्मा ज्ञान है ? अथवा आत्मा से
भिन्न कोई ज्ञान है? गौतम ! आत्मा स्यात् ज्ञान है, स्यात् अज्ञान है। ज्ञान नियमतः आत्मा है।
गोयमा! आया सिय नाणे सिय गौतम! आत्मा स्यात् ज्ञानं स्यात् अण्णाणे, नाणे पुण नियमं आया॥ अज्ञानम्, ज्ञानं पुनः नियमम् आत्मा।
२०७. आया भंते ! नेरइयाणं नाणे?
अण्णे नेरइयाणं नाणे?
आत्मा भदन्त! नैरयिकाणां ज्ञानम्? अन्यत् नैरयिकाणां ज्ञानम्?
गोयमा ! आया नेरइयाणं सिय नाणे, सिय अण्णाणे। नाणे पुण से नियम आया। एवं जाव थणियकुमाराणं॥
गौतम! आत्मा नैरयिकाणां स्यात् ज्ञानम्, स्यात् अज्ञानम्। ज्ञानं पुनः तत् नियमम् आत्मा। एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम्।
२०७. भंते ! क्या नैरयिकों की आत्मा ज्ञान
है? अथवा नैरयिकों की आत्मा से भिन्न कोई ज्ञान है? गौतम ! नैरयिकों की आत्मा स्यात् ज्ञान है, स्यात् अज्ञान है। उनका ज्ञान नियमतः आत्मा है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार देवों की वक्तव्यता।
२०८. आया भंते! पुढविकाइयाणं आत्मा भदन्त! पृथिवीकायिकानाम् २०८. भंते ! पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा
अण्णाणे? अण्णे पुढविकाइयाणं अज्ञानम्? अन्यत् पृथिवीकायिकानाम् अज्ञान है ? पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा अण्णाणे? अज्ञानम्?
से भिन्न कोई अज्ञान है ? गोयमा ! आया पुढविकाइयाणं नियम गौतम! आत्मा पृथिवीकायिकानां गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा अण्णाणे, अण्णाणे वि नियमं आया। नियमम् अज्ञानम्, अज्ञानम् अपि नियमतः अज्ञान है, उनका अज्ञान भी नियमम् आत्मा।
नियमतः आत्मा है। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। बेइंदिय- एवं यावत् वनस्पतिकायिकानाम्। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तेइंदियाणं जाव वेमाणियाणं जहा द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियाणां यावत वैमानिकानां की वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय यावत् नेरइयाणं॥ यथा नैरयिकाणाम्।
वैमानिक देवों की नैरयिकों की भांति वक्तव्यता।
२०६. आया भंते ! दंसणे? अण्णे दंसणे? आत्मा भदन्त! दर्शनम्? अन्यत्
दर्शनम? गोयमा! आया नियमं दसणे, दंसणे ___ गौतम! आत्मा नियमं दर्शनम्, दर्शनम् वि नियमं आया॥
अपि नियमम् आत्मा।
२०६. भंते! क्या आत्मा दर्शन है ? क्या
आत्मा से भिन्न कोई दर्शन है? गौतम ! आत्मा नियमतः दर्शन है, दर्शन भी नियमतः आत्मा है।
३. भ. वृ. १२/२०५।
१. भ. वृ. १२/२०५-चरित्रिणां संख्यात्वात् २. भ. जो. ४/२६८.८६-६२।
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