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________________ भगवई द्रष्टव्य यंत्र १. द्रव्य आत्मा के साथ कषाय आत्मास्यात् है, स्यात् नहीं है। योग आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। उपयोग आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा स्यात् है स्यात् नहीं है। दर्शन आत्मा नियमत: है । चारित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। ४. उपयोग आत्मा के साथद्रव्य आत्मा नियमतः है। कषाय आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। योग आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। ज्ञान आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। दर्शन आत्मा नियमतः है। चरित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। वीर्य आत्मास्यात् है, स्वात् नहीं है। ७. चरित्र आत्मा के साथ द्रव्य आत्मा नियमतः है। कषाय आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। योग आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। उपयोग आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा नियमतः है। दर्शन आत्मा नियमतः है। वीर्य आत्मा नियमतः है। अट्ठविह-आयाणं अप्पाबहुत्त-पदं २०५. एयासि णं भंते! दवियायाणं, कसायायाणं जाव वीरियायाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा ६ ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ चरित्तायाओ, नाणायाओ अनंतगुणाओ, अनंतगुणाओ, कसायायाओ जोगायाओ विसेसाहियाओ वीरियायाओ विसेसाहियाओ उवओगदवियदसणायाओ तिण्णि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥ Jain Education International ६३ २. कषाय आत्मा के साथद्रव्य आत्मा नियमतः है। योग आत्मा नियमतः है। उपयोग आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। दर्शन आत्मा नियमतः है। चरित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। वीर्य आत्मा नियमत: है । ५. ज्ञान आत्मा के साथद्रव्य आत्मा नियमतः है। कषाय आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। योग आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। उपयोग आत्मा नियमतः है। दर्शन आत्मा नियमतः है। चारित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। वीर्य आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। ८. वीर्य आत्मा के साथ द्रव्य आत्मा नियमत: है । कषाय आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। योग आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है । उपयोग आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। दर्शन आत्मा नियमतः है। चरित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। अष्टविध-आत्मनाम् अल्पबहुत्व- पदम् एतेषां भदन्त ! द्रव्यात्मनां कषायात्मनां यावत् वीर्यात्मनां च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा? विशेषाधिकाः वा? गौतम ! सर्वस्तोकाः चारित्रात्मानः, ज्ञानात्मानः अनन्तगुणाः कषायात्मानः अनन्तगुणाः, योगात्मानः विशेषाधिकाः वीर्यात्मानः विशेषाधिकाः, उपयोगद्रव्य - दर्शनात्मानः त्रयोऽपि तुल्याः विशेषाधिकाः । For Private & Personal Use Only श. १२ : उ. १० : सू. २०५ ३. योग आत्मा के साथ द्रव्य आत्मा नियमतः है। कषाय आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। उपयोग आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। दर्शन आत्मा नियमतः है। चरित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। वीर्य आत्मा नियमतः है। ५. दर्शन आत्मा के साथद्रव्य आत्मा नियमतः है। कषाय आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। योग आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। उपयोग आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। चरित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। वीर्य आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। अष्टविध - आत्मा का अल्पबहुत्व-पद २०५. भंते! द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा यावत् वीर्य आत्मा- इनमें कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम! सबसे अल्प चरित्र आत्मा, ज्ञान आत्मा उससे अनंतगुण अधिक, कषाय आत्मा उससे अनंतगुण अधिक, योग आत्मा उससे विशेषाधिक, वीर्य आत्मा उससे विशेषाधिक, उपयोग आत्मा, द्रव्य आत्मा और दर्शन आत्मा-ये तीनों वीर्य आत्मा से विशेषाधिक और परस्पर तुल्य हैं। www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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