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________________ श. १२:उ. १०. सू. २०४ भगवई उपरिल्लाहि सम भाणियब्वा। जस्स भणितव्या। यस्य ज्ञानात्मा तस्य नाणाया तस्स दसणाया नियम अस्थि, दर्शनात्मा नियमम् अस्ति, यस्य पुनः जस्स पुण दमणाया तस्स नाणाया दर्शनात्मा तस्य ज्ञानात्मा भजनया। भयणाए। जस्स नाणाया तस्स यस्य ज्ञानात्मा तस्य चरित्रात्मा स्यात् चरित्ताया सिय अस्थि सिय नत्थि, अस्ति स्यात् नास्ति, यस्य पुनः जस्स पुण चरित्ताया तस्स नाणाया चरित्रात्मा तस्य ज्ञानात्मा नियमम नियम अत्थि। नाणाया वीरियाया दो अस्ति। ज्ञानात्मा वीर्यात्मा द्वौ अपि वि परोप्परं भयणाए। जस्स दंसणाया परस्परं भजनया। यस्य दर्शनात्मा तस्य तस्स उवरिमाओ दो वि भयणाए, उपरितनौ द्वौ अपि भजनया, यस्य पुनः जस्स पुण ताओ तस्स दंसणाया नियम तौ तस्य दर्शनात्मा नियमम् अस्ति। अत्थि। जस्स पुण चरित्ताया तस्स यस्य पुनः चरित्रात्मा तस्य वीर्यात्मा वीरियाया नियमं अस्थि, जस्स पुण नियमम् अस्ति, यस्य पुनः वीर्यात्मा वीरियाया तस्स चरित्ताया सिय अस्थि तस्य चरित्रात्मा स्यात् अस्ति स्यात् सिय नथि॥ नास्ति। की वक्तव्यता ऊपरवर्ती आत्माओं के साथ वक्तव्य है। जैसे द्रव्य आत्मा की वक्तव्यता कही गई है वैसे ही उपयोग आत्मा की वक्तव्यता ऊपरवर्ती आत्माओं के साथ वक्तव्य है। जिसके ज्ञान आत्मा है उसके दर्शन आत्मा नियमतः है। जिसके दर्शन आत्मा है उसके ज्ञान आत्मा की भजना है। जिसके ज्ञान आत्मा है उसके चरित्र आत्मा स्यात् है स्यात् नहीं है। जिसके चरित्र आत्मा है, उसके ज्ञान आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा और वीर्य आत्मा-ये दोनों परस्पर भजनीय है। जिसके दर्शन आत्मा है उसके उपरिवर्ती दो आत्मा-चरित्र आत्मा और वीर्य आत्मा की भजना है। जिसके चरित्र और वीर्य आत्मा हैं, उसके दर्शन आत्मा नियमतः है। जिसके चरित्र आत्मा है, उसके वीर्य आत्मा नियमतः है। जिसके वीर्य आत्मा है उसके चरित्र आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। भाष्य १. सूत्र २०१-२०४ प्रस्तुत प्रकरण में आठ आत्माओं की उपलब्धि और अनुपलब्धि पर स्याद्वाद की दृष्टि से विचार किया गया है। द्रव्य आत्मा मूल आधार है इसलिए उसकी उपलब्धि का सर्वत्र विवरण है। द्रव्य आत्मा के साथ कषाय आत्मा की उपलब्धि की भजना/ विकल्प है। सकषाय जीव के कषाय आत्मा होती है। वीतराग के कषाय आत्मा नहीं होती। इस दृष्टि से कहा गया है-कषाय आत्मा स्यादस्ति स्यानास्ति। __ मन, वचन, काया की प्रवृत्ति वाले जीव के योग आत्मा होती है। अयोग अवस्था वाले और मुक्त जीवों के योग आत्मा नहीं होती। उपयोग जीव का लक्षण है इसलिए द्रव्य आत्मा और उपयोग आत्मा के साहचर्य का नियम है। ज्ञान आत्मा सम्यग् दृष्टि के होती है, मिथ्या दृष्टि के नहीं होती इसलिए द्रव्य आत्मा के साथ उसकी उपलब्धि का विकल्प है-स्यादस्ति स्यान्नास्ति। दर्शन आत्मा की द्रव्य आत्मा के साथ नियमतः उपलब्धि है इसलिए दोनों का साहचर्य है। अभयदेव सूरि ने दर्शन आत्मा के संदर्भ में चक्षु दर्शन आदि १. भ. वृ. १२/२०३-यथा चक्षुर्दर्शनादिदर्शनवतां जीवत्वमिति। २. भ. जो ४/२६८/१६: का उल्लेख किया है। यह विमर्शनीय है। दर्शन का संबंध दो कर्मों के साथ है १. दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम और क्षय से होने वाला सामान्य बोध-अनाकार उपयोग दर्शन है। २. मोहनीय कर्म के उपशम, क्षयोपशम और क्षय से होने वाला दृष्टिकोण दर्शन है। यहां मोह के विलय से संबद्ध दर्शन विवक्षित है। जयाचार्य ने वृत्तिकार के मत की समीक्षा में लिखा है-दसवें गुणस्थान में अनाकार उपयोग नहीं होता। यदि दर्शन का संबंध दर्शनावरणीय कर्म के विलय के साथ माना जाए तो द्रव्य आत्मा और दर्शन आत्मा के साहचर्य का नियम नहीं हो सकता।' द्रव्य आत्मा के साथ चरित्र आत्मा की उपलब्धि का विकल्प है। विरत के चरित्र आत्मा होती है, अविरत और मुक्त के चरित्र आत्मा नहीं होती। मुक्त जीव के करण वीर्य नहीं होता इसलिए द्रव्य आत्मा के साथ वीर्य आत्मा की उपलब्धि का विकल्प है। योग आत्मा के साथ कषाय आत्मा की उपलब्धि का विकल्प है। वह सकषाय और अकषाय-दोनों के होती है। शतक पचीसम जोग, आख्यो सप्तमुद्देशके। अनाकार उपयोग, दशमें गुणठाणे तणी॥ ३. वही, ४/२६८/२७-३६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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