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भगवई
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श. १२ : उ.६ : सू. १७६-१८१
एवं तिसु पुढवीसु उववज्जति, सेसाओ एवं तिसृभ्यः पृथिवीभ्यः उपपद्यन्ते, खोडेयवाओ॥
शेषाः खोडेयव्वाओ।
इसी प्रकार प्रथम तीन पृथ्वियों से उपपन्न होते हैं, शेष चार पृथ्वियों से उपपन्न नहीं होते।
१७६. जइ देवेहितो?
वेमाणिएमु सव्वेसु उववज्जंति जाव सन्वट्ठसिद्धत्ति, सेसा खोडेयव्वा॥
यदि देवेभ्यः? वैमानिकेभ्यः सर्वेभ्यः उपपद्यन्ते यावत् सर्वार्थसिद्धः इति शेषाः खोडेयव्वाओ।
१७६. यदि देवों से?
सर्व वैमानिक देवों से उपपन्न होते हैं, यावत् सवार्थसिद्ध देवों से उपपन्न होते हैं, शेष देवों का निषेध करना चाहिए।
भावदेवाः! कुतः उपपद्यन्ते?
१७७. भंते ! भाव देव कहां से उपपन्न होते हैं?
१७७. भावदेवा णं भंते! कओहिंतो
उववज्जति ? एवं जहा बक्कंतीए भवणवासीणं उववाओ तहा भाणियब्यो।
एवं यथा अवक्रान्त्यां भवनवासिनाम उपपातः तथा भणितव्यः।
इसी प्रकार जैसे प्रज्ञापना (६/१२) अवक्रांति पद की भांति भवनवासी देवों का उपपात वक्तव्य है।
भाष्य १. सूत्र १६६-१७७
पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य। भव्यद्रव्यदेव की उत्पत्ति नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-इन ये सब मृत्यु के पश्चात् भाव देव बनते हैं इसलिए इनकी चारों स्थानों से होती है। अपवाद सूत्र के अनुसार निम्न जीव निर्दिष्ट उत्पत्ति भव्यद्रव्यदेव के रूप में नहीं होती। स्थानों से मरकर भव्य द्रव्यदेव के रूप में उपपन्न नहीं होते
३. सर्वार्थसिद्ध से च्युत होने वाले देव मनुष्य बनकर मुक्त हो १.असंख्यात वर्ष आयुवाले कर्मभूमिज, पंचेन्द्रिय तिर्यंच और जाते हैं इसलिए उनकी उत्पत्ति भव्यद्रव्यदेव के रूप में नहीं होती। मनुष्य।
इस विषय में प्रज्ञापना का वक्कंति नामक छट्ठा पद द्रष्टव्य है।' २. असंख्यात वर्ष आयुष्य वाले अकर्मभूमिज एवं अंतीपज भावदेव की उत्पत्ति के लिए पण्णवणा ६/८१ सूत्र द्रष्टव्य है। पंचविह-देवाणं ठिइ-पदं
पञ्चविध-देवानां स्थिति-पदम पंचविध देवों का स्थिति पद १७८. भवियदव्वदेवाणं भंते ! केवतियं भव्यद्रव्यदेवानां भदन्त! कियत्कालं १७८. भंते ! भव्यद्रव्यदेवों की स्थिति कालं ठिती पण्णता? स्थितिः प्रज्ञप्ताः?
कितने काल की प्रज्ञप्त है? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहूत्त, गौतम! जघन्येन अन्तर्मुहर्तम्, गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई॥ उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि?
तीन पल्योपम।
१७६. नरदेवाणं-पुच्छा।
गोयमा ! जहण्णेणं सत्त वाससयाई, उक्कोसेणं चउरासीई पुव्वसयसहस्साई॥
नरदेवानां-पृच्छा? गौतम! जघन्येन सप्त वर्षशतानि, उत्कर्षेण चतुरशीतिः पूर्वशतसहस्राणि।
१७६. नरदेवों की पृच्छा।
गौतम ! जघन्यतः सात सौ वर्ष, उत्कृष्टतः चौरासी लाख पूर्व।
१८०. धम्मदेवाणं-पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी॥
धर्मदेवानां-पृच्छा? गौतम! जघन्येन अन्तर्मुहर्तम्, उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिः।
१८०. धर्मदेवों की पृच्छा।
गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः कुछ कम पूर्व कोटि।
१८१. देवातिदेवाणं-पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं बावतरं वासाई, उक्कोसेणं चउरासीई पुवसयसहस्साई॥
देवातिदेवानां-पृच्छा? गौतम! जघन्येन द्वासप्ततिः वर्षाणि, उत्कर्षेण चतुरशीति पूर्वशतसहस्राणि।
१८१. देवातिदेवों की पृच्छा।
गौतम ! जघन्यतः बहत्तर वर्ष, उत्कृष्टतः चौरासी लाख पूर्व।
१. पण्ण. ६/८५।
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