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________________ भगवई श. १२ : उ. ६ : सू. १७१-१७५ गोयमा ! नेरइएहिंतो उववज्जति, नो गौतम! नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते, नो तिरिक्खजोणिएहितो, नो मणुस्सेहितो, तिर्यग्योनिकेभ्यः, नो मनुष्येभ्यः, देवेहितो वि उववज्जति॥ देवेभ्यः अपि उपपद्यन्ते। गौतम! नैरयिकों से उपपन्न होते हैं। तिर्यक्योनिक और मनुष्यों से उपपन्न नहीं होते। देवों से भी उपपन्न होते हैं। १७१. जह नेरइएहिंतो उवज्जंति-किं रयणप्पभापूढविनेरइएहितो उववज्जति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो उववज्जति? गोयमा! रयणप्पभापढविनेरइएहितो उववज्जंति, नो सक्करप्पभापुढविनेरइएहितो जाव नो अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो उववज्जति॥ यदि नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते-किं रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते, यावत् अधःसप्तमी पृथिवीनैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते? गौतम! रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते, नो शर्कराप्रभापृथिवीनैरयिकेभ्यः यावत् नो अधःसप्तमीपृथिवी-नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते । १७१. यदि नैरयिकों से उपपन्न होते हैं तो क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न होते हैं यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न होते हैं। शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न नहीं होते यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी के नैरयिकों से उपपन्न नहीं होते। १७२. जइ देवेहिंतो उववज्जंति किं भवण- यदि देवेभ्यः उपपद्यन्ते किं भवन- वासिदेवेहिंतो उववज्जति ? वासिदेवेभ्यः उपपद्यन्ते? वानमन्तरवाणमंतर - जोइसिय-वेमाणियदेवेहिंतो ज्योतिष्क-वैमानिकदेवेभ्यः उपपद्यन्ते? उववज्जंति? गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि गौतम! भवनवासिदेवेभ्यः अपि उववज्जंति, वाणमंतरदेवेहितो, एवं उपपद्यन्ते, वानमन्तरदेवेभ्यः, एवं सव्वदेवेसु उववाएयब्वा, वक्कंतीए सर्वदेवेभ्यः उपपादयितव्या अवक्रान्त्यां भेदेणं जाव सब्वट्ठसिद्धत्ति॥ भेदेन यावत् सर्वार्थसिद्धः इति । १७२. यदि देवों से उपपन्न होते हैं तो क्या भवनवासी देवों से उपपन्न होते हैं? वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों से उपपत्र होते हैं ? गौतम! भवनवासी देवों से भी उपपन्न होते हैं, वाणमंतर देवों से उपपन्न होते हैं, इसी प्रकार समस्त देवों के विषय में प्रज्ञापना पद (६/२२) अवक्रांति की भांति समस्त उपपात वक्तव्य है यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों से। १७३. भंते ! धर्मदेव कहां से उपपन्न होते हैं क्या नैरयिकों से उपपन्न होते हैं ?-पृच्छा। . १७३. धम्मदेवा णं भंते ! कओहिंतो धर्मदेवाः कुतः उपपद्यन्ते-किं उववज्जति-किं नेरइएहिंतो उव- नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते-पृच्छा। वजंति-पुच्छा। एवं वक्कंतीभेदेणं सब्वेसु उववाएयब्वा एवं अवक्रान्तिभेदेन सर्वेषु उपपादजाव सव्वट्ठसिद्धत्ति, नवरं-तम- यितव्या यावत् सर्वार्थसिद्ध इति, अहेसत्तम-तेउ-वाउ-असंखेज्जवासा- नवरम्-तमा - अधःसप्तमी - तेजस्- उयअकम्मभूमग-अंतरदीवगवज्जेसु॥ वायु - असंख्येयवर्षायुष्क - अकर्म भूमक-अन्तीपकवर्जेभ्यः। इसी प्रकार अवक्रांति भेद से सर्व देवों का उपपात वक्तव्य है यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों से, इतना विशेष है-तमःप्रभा, अधःसप्तमी, तेजस्काय, वायुकाय, असंख्येय वर्ष आयु वाले अकर्मभूमिज और अन्तीपज को छोड़कर। १७४. भंते ! देवातिदेव कहां से उपपन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से उपपन्न होते हैं-पृच्छा। १७४. देवातिदेवा णं भंते ! कओहिंतो देवातिदेवाः भदन्त! कुतः उपपद्यन्ते- उववज्जति-किं नेरइएहितो उववज्जंति- किं नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते-पृच्छा? पुच्छा। गोयमा ! नेरइएहितो उववज्जंति, नो गौतम! नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते, नो तिरिक्खजोणिएहितो, नो मणुस्से- तिर्यग्योनिकेभ्यः, नो मनुष्येभ्यः, हितो, देवेहितो वि उववज्जति॥ देवेभ्यः अपि उपपद्यन्ते। गौतम! नैरयिकों से उपपन्न होते हैं। तिर्यक्योनिकों और मनुष्यों से उपपन्न नहीं होते। देवों से भी उपपन्न होते हैं। १७५. जइ नेरइएहितो ? यदि नैरयिकेभ्यः? १७५. यदि नैरयिकों से उपपन्न होते हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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