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भगवई
उप्पण्णनाण-दंसणधरा अरहा जिणा उत्पन्नज्ञान-दर्शनधराः अर्हाः जिनाःकेवली तीयपचुप्पन्नमणागयवियाणया । केवलिनः अतीतप्रत्युत्पन्नागतसवण्णू सव्वदरिसी। से तेणटेणं विज्ञायकाः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनः। तत् गोयमा! एवं बुचइ-देवातिदेवा- तेनार्थेन गौतम! , एवमुच्यतेदेवातिदेवा॥
देवातिदेवा-देवातिदेवाः।
श. १२ : उ. ६ : सू. १६३-१७० दर्शन के धारक, अर्हत्, जिन, केवली, अतीत, वर्तमान और भविष्य के विज्ञाता सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होते हैं, गौतम ! इस अपेक्षा से उन्हें कहा जाता है-देवातिदेव देवातिदेव।
भावलेवा
१६८. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-
भावदेवा-भावदेवा ! गोयमा ! जे इमे भवणवइ-वाणमंतर- जोइस-वेमाणिया देवा देवगतिनामगोयाई कम्माई वेदेति। से तेणटेणं गोयमा! एवं बूचड़-भावदेवा-भावदेवा॥
तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- भावदेवा-भावदेवाः? गौतम! ये इमे भवनपति-वानमन्तरज्यौतिष-वैमानिकादेवाः देवगतिनामगोत्राणि कर्माणि वेदयन्ति। तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यते-भावदेवाभावदेवाः।
१६८. भंते ! भावदेव भावदेव-यह किस अपेक्षा
से कहा जा रहा है? गौतम ! जो ये भवनपति, वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक देव देवगति नाम-गोत्र कर्मों का वेदन करते हैं, गौतम! इस अपेक्षा से उन्हें कहा जाता है-भावदेव भावदेव।
भाष्य
१. सूत्र १६३-१६८
२. नरदेव-चक्रवर्ती। प्रस्तुत प्रकरण में पांच प्रकार के देव बतलाए गए हैं
३. धर्मदेव-अनगार, गृहत्यागी मुनि। १. भव्यद्रव्य देव-देव पर्याय में उत्पन्न जीव देव कहलाता है। ४. देवातिदेव-अर्हत्, तीर्थंकर। भव्य शब्द इस अर्थ का सूचक है कि अमुक जीव देव पर्याय में उत्पन्न ५. भाव देव-देव पर्याय में उत्पन्न जीव। होने वाला है। द्रव्य शब्द इस अर्थ का सूचक है कि अभी वह देव शब्दार्थ मीमांसा के लिए तत्त्वार्थाधिगम सूत्र ४/१ पर्याय में उत्पन्न नहीं हुआ है। वृत्तिकार ने भूत भावपक्ष और भावी भाष्यानुसारिणी (पृ. २७३-२७४) द्रष्टव्य है। भाव पक्ष-दो दृष्टियों से एक शब्द को समझाने का प्रयत्न किया है। शब्द-विमर्श जो जीव देव पर्याय से च्युत हो गया है, वह भूत द्रव्य देव है। जो चक्र रत्न-द्रष्टव्य जंबूद्वीप पण्णत्ती ३/४-५ जीव देवता के रूप में उपपन्न होने वाला है, वह भव्य द्रव्य देव है। नव निधि-द्रष्टव्य ठाणं:/२१-२२। यहां भव्य द्रव्य देव प्रस्तुत है।'
जंबूद्वीप पण्णत्ती ३/१६७। पंचविह-देवाणं उबवाय-पदं
पञ्चविध-देवानाम् उपपात-पदम्
पंचविध देवों का उपपात-पद १६६. भवियदव्वदेवा णं भंते ! कओहितो भव्यद्रव्यदेवाः भदन्त! कुतः १६६. भंते ! भव्यद्रव्य देव कहां से उपपन्न होते
उववज्जंति-किं नेरइएहितो उववज्जंति? उपपद्यन्ते-किं नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते? हैं-क्या नैरयिकों से उपपन्न होते हैं ? क्या तिरिक्खमणस्सदेवेहिंतो उववज्जंति ? तिर्यग्-मनुष्य-देवेभ्यः उपपद्यन्ते? तिर्यंच, मनुष्य और देवगति से उपपन्न होते गोयमा! नेरइएहितो उववजंति, गौतम! नैरयिकेभ्यः उपपद्यन्ते, तिर्यग्तिरिक्ख-मणुस्स-देवेहितो वि मनुष्य-देवेभ्यः अपि उपपद्यन्ते। भेदो गौतम ! नैरयिकों से उपपन्न होते हैं, तिर्यंच, उववज्जति। भेदो जहा वक्कंतीए यथा अवक्रान्त्यां सर्वेषु उपपादयितव्या मनुष्य और देवगति से भी उपपन्न होते हैं। सन्वेसु उववाएयव्वा जाव अणु- यावत् अनुत्तरोपपातिकः इति, नवरम्- जैसे प्रज्ञापना पद (६/८८-६२) अवक्रांति त्तरोवाइय त्ति, नवरं-असंखेज्ज- असंख्येयवर्षायुष्क-अकर्मभूमिक- के अनुसार सब गतियों से उपपन्न होने के बासाउयअकम्मभूमग . अंतरदीवग- अन्तीपक सर्वार्थसिद्धवर्ज यावत् भेद वक्तव्य है यावत् अनुत्तरोपपातिक, सब्वट्ठसिद्धवजं जाव अपरा- अपराजितदेवेभ्यः अपि उपपद्यन्ते । इतना विशेष है-असंख्येय वर्ष आयु वाले जियदेवेहितो वि उववति॥
अकर्मभूमिज, अन्तीपज और सर्वार्थसिद्ध को छोड़कर यावत् अपराजित देवों से भी उपपन्न होते हैं।
१७०. नरदेवा णं भंते कओहिंतो नरदेवाः भदन्त! कुतः उपपद्यन्ते-किं १७०. भंते ! नरदेव कहां से उपपन्न होते हैं क्या उववजंति-किं नेरइएहितो-पुच्छा। नैरयिकेभ्यः-पृच्छा ।
नैरयिकों से ? पृच्छा । १. भ. वृ १२/१६३-भूतभावपक्षे तु भूतस्य देवत्वपर्यायस्य प्रतिपन्नकारणा योग्या देवतयोत्पत्स्यमाना द्रव्यदेवाः, तत्र भाविभावपक्षपरिग्रहार्थमाह
भावदेवत्वाच्च्युता द्रव्यदेवाः, भाविभावपक्षे तु भाविनो देवत्वपर्यायस्य भव्याश्च ते द्रव्यदेवाश्चेति भव्यद्रव्यदेवाः।
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